Advertisment

Pandit Devendra Upadhyay: भगवान की कथा से ही जीवन की व्यथा का निराकरण

प्राचीनतम बाबा त्रिवटी नाथ मंदिर में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के सप्तम दिवस श्रीमद्भागवताचार्य पूज्य पंडित देवेंद्र उपाध्याय ने गंगा की महिमा पर प्रकाश डाला।

author-image
Sudhakar Shukla
katha of be
Listen to this article
0.75x 1x 1.5x
00:00 / 00:00

बरेली, वाईबीएन संवाददाता

Advertisment

बरेली। प्राचीनतम बाबा त्रिवटी नाथ मंदिर में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के सप्तम दिवस श्रीमद्भागवताचार्य पूज्य पंडित देवेंद्र उपाध्याय ने गंगा की महिमा पर प्रकाश डाला।

भगवान की कथा को 'गंगा' क्यों कहा जाता है?

उन्होनें बताया कि गंगा हमेशा प्रवाहित होती रहती है इसलिए उसे गंगा कहते हैं। ठीक इसी तरह भगवान की कथा को भी गंगा कहते हैं। कथा भी हमेशा होती रहती है। एक स्थान पर बंद हुई तो कहीं दूसरी जगह प्रारंभ हो गई। जहां पर बंद होती है तो तीसरी जगह हमेशा होती रहती है क्योंकिकथा में पवन पुत्र हनुमान के प्राण बसते हैं। भगवान श्री राम जब धरा धाम छोड़कर साकेत धाम जाने लगे तो उन्होनें अयोध्या वासियों से कहा कि जिनको साकेत चलना हो, वह विमान में बैठे। सब लोग विमान में जा करके बैठ गए, लेकिन हनुमान जी सब से अलग हो गए तो भगवान ने कहा पवन पुत्र आप नहीं चलेंगे। हनुमान जी बोले नहीं प्रभु ,साकेत में आप तो मिलेंगे लेकिन आप की कथा नहीं मिलेगी। इसलिए मैं तो यहीं रह करके आप की कथा सुनूंगा। प्रभु एक वरदान दे दीजिए। जिस दिन मुझे आप की कथा सुनने न मिले, उस दिन मेरे प्राण निकल जाएं। इसीलिए प्रभु ने ऐसी व्यवस्था कर दी, कि राम की कथा एक जगह बंद तो दूसरी जगह चालू। कहीं पवन पुत्र के प्राण संकट में न निकल जाएं।

Advertisment

इसे भी पढ़ें-वर पक्ष बोला- सात लाख रुपये और कार नहीं तो शादी नहीं... जानिए फिर क्या हुआ

भगवान श्रीकृष्ण के 16108 विवाह: एक दिव्य लीला

भागवत आचार्य देवेंद्र उपाध्याय ने बताया कि भगवान श्री कृष्ण के 16108 विवाह हुए। प्रत्येक रानी  के लिए प्रथक प्रथक महल बनाया गया था। बड़े आनंद के साथ भगवान द्वारकाधीश बन कर निवास करने लगे। एक बार देवर्षि नारद के मन में विचार आया श्री कृष्ण इतनी पत्नियों के साथ कैसे रहते होंगे। यह देखने के लिए वह वही चले आए ।भगवान रुक्मणी के महल में नारद जी से मिले। फिर सत्यभामा के महल में मिले। जामवती के महल में भी श्री कृष्ण मिले । सभी महलो में नारद जी ने जाकर देखा और श्रीकृष्ण को पाया। अंत में लौट करके रुक्मणी के महल में आए तो वहां भी मिले और बोले प्रभु ,आपकी अद्भुत लीलाओं को देखकर मेरा जीवन सफल हो गया। जिस तरह से आपने 16108 रूप धारण कर रखें है। कथा व्यास कहते हैं कि लक्ष्मी स्वरूपा रूकमणि का विवाह नारायन स्वरूप श्री कृष्ण से ही हो सकता है। शिशुपाल ने भरसक प्रयास किया कि ऐसा ना हो। रुक्मिणी जी के पत्र भेजने पर द्वारकाधीश दौड़े चले आते हैं।  उनको अपने साथ ले जाते हैं।शिशुपाल का कुसित प्रयास असफल हो जाता है।

Advertisment

इसे भी पढ़ें-कमिश्नर और डीएम ने भी देखा बरेली का ऐतिहासिक Flower Show

गंगा जैसी नदियों में श्रेष्ठ, श्रीमद्भागवत पुराणों में सर्वोच्च

कथाव्यास कहते हैं कि जैसे मनुष्यों में राजा श्रेष्ठ होता है। नदियों में गंगा जी श्रेष्ठ ,वैष्णव में भगवान शंकर सर्वोपरि, शरीर में मस्तक सबसे ऊंचा ,इसी तरह पुराणों में सर्वोपरि श्रीमद् भागवत महापुराण है। इसके दर्शन एवं पूजन से श्री कृष्ण की पूजा का फल मिलता है और समस्त मनोकामना पूर्ण होती है। कथा व्यास बताते हैं कि हर युग में परमात्मा की नकल कर अपने आप को परमात्मा के सद्रश्य दिखाने का प्रयास करते हैं। हम सबको ऐसे विधर्मियों से सावधान रहने की आवश्यकता है । जो कल्याण परमात्मा के सुमिरन से सम्भव है। वह किसी और तरीके से नहीं हो सकता। कथा के उपरांत काफी संख्या में उपस्थित भक्तों ने श्रीमद्भागवत की आरती तथा प्रसाद वितरण किया।

Advertisment

इसे भी पढ़ें-महिला दिवस : शहर की प्रमुख महिलाओं को किया सम्मानित 

कथा का विश्राम 

आज कथा का विश्राम हो गया। बाबा त्रिवटीनाथ मन्दिर सेवा समिति के मीडिया प्रभारी संजीव औतार अग्रवाल ने कथा व्यास पं देवेन्द्र उपाध्याय का श्री मद्भागवत के लिए  धन्यवाद तथा अभिनन्दन किया। आज की कथा में मंदिर कमेटी के  प्रताप चन्द्र सेठ,मीडिया प्रभारी संजीव औतार अग्रवाल,सुभाष मेहरा,हरिओम अग्रवाल तथा विनय कृष्ण अग्रवाल का मुख्य सहयोग रहा।

Advertisment
Advertisment