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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क। बिहार में विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण के लिए मंच तैयार है। गुरुवार को सुबह सात बजे से 3.75 करोड़ मतदाता 1,314 उम्मीदवारों के चुनावी भाग्य का फैसला करेंगे, जिनमें इंडिया गठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार तेजस्वी यादव और भाजपा के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी जैसे शीर्ष नेता शामिल हैं। पोलिंग पार्टियां भी बुधवार को अपने-अपने गंतव्य की ओर रवाना हुईं। पटना की चर्चित मोकामा सीट पर इस बार मुकाबला बेहद दिलचस्प है। जिस पर जदयू के बाहुबली अनंत सिंह चुनाव मैदान में हैं, जो इस वक्त हत्या के मामले में सलाखों के पीछे हैं। जहां तक तेजस्वी का प्रश्न है, वे राघोपुर में हैट्रिक बनाने की कोशिश में हैं, जबकि उनके मुख्य प्रतिद्वंद्वी भाजपा के सतीश कुमार ने 2010 में जनता दल-यूनाइटेड के चुनाव चिह्न पर चुनाव लड़ते हुए उनकी मां राबड़ी देवी को हराया था।
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राधोपुर में कांटे की टक्कर
इस सीट पर कांटे की टक्कर होने की उम्मीद थी, क्योंकि जन सुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर ने घोषणा की थी कि वह यादव को उनके ही गढ़ में चुनौती देना चाहते हैं। हालांकि, किशोर ने चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया और उनकी पार्टी ने कम चर्चित उम्मीदवार चंचल सिंह को टिकट दिया। बगल के महुआ में, यादव के बड़े भाई तेज प्रताप, जिन्होंने अपनी अलग पार्टी जनशक्ति जनता दल बनाई है, बहुकोणीय मुकाबले में हैं। राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू प्रसाद के बड़े बेटे मौजूदा राजद विधायक मुकेश रौशन से यह सीट छीनना चाहते हैं, हालांकि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की ओर से लोक जनशक्ति पार्टी-रामविलास के उम्मीदवार संजय सिंह और 2020 की उपविजेता निर्दलीय आशमा परवीन की मौजूदगी ने चुनावी समीकरण बिगाड़ दिए हैं।
कई बाहुबली चुनाव में आजमा रहे किस्मत
इन सबके बीच एक ज्वलंत सवाल फिर बिहार की हवा में तैर रहा है, कि क्या बिहार की राजनीति बाहुबली प्रभाव से मुक्त हो पाएगी? देखा जाए तो राजनीति और बाहुबली नेताओं का रिश्ता इस राज्य में कापी पुराना है। हर चुनाव में कुछ ऐसे नाम सामने आते हैं, जो अपने ताकत, असर और विवादों के कारण सुर्खियां बटोरते हैं। इस बार भी तस्वीर कुछ अलग नहीं है, करीब 22 बाहुबली या उनके परिजन विभिन्न दलों से मैदान में हैं। पहले चरण में जिन क्षेत्रों में मतदान हो रहा है उनमें मोकामा, रघुनाथपुर, एकमा, मंझी, तरैया, बनियापुर और ब्रह्मपुर में बाहुबली परिवारों की सियासी पकड़ अब भी मजबूत दिखाई दे रही है।
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मोकामा से छोटे सरकार बनाम सूरजभान परिवार
पटना की चर्चित मोकामा सीट पर इस बार मुकाबला बेहद दिलचस्प है। लंबे समय से इलाके की राजनीति के केंद्र में रहे बाहुबली अनंत सिंह उर्फ छोटे सरकार इस बार जेडीयू के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। उनके सामने आरजेडी की वीणा देवी हैं, जो बाहुबली सूरजभान सिंह की पत्नी हैं। फिलहाल अनंत सिंह दुलारचंद हत्याकांड में सलाखों के पीछे हैं। अनंत सिंह के जेल जाने के बाद जेडीयू के सीनियर नेता ललन सिंह ने कमान संभाली है, लेकिन एक टिप्पणी के बाद वो भी बुरे फंसते नजर आ रहे हैं। इस बीच मोकामा की लड़ाई शक्ति, प्रतिष्ठा और परंपरागत वर्चस्व तीनों की टक्कर बन गई है।
सीमांचल से सारण तक बाहुबली चेहरों की मौजूदगी
दानापुर सीट से बाहुबली छवि वाले रितलाल यादव फिर आरजेडी के उम्मीदवार हैं। पिछली बार जेल से चुनाव जीतने वाले रीतलाल का स्थानीय असर अब भी कायम है और लालू प्रसाद यादव के रोड शो ने इसे और मजबूती दे दी है। रघुनाथपुर से बाहुबली नेता शहाबुद्दीन के बेटे ओसामा शहाब मैदान में हैं। लंदन से पढ़ाई कर लौटे ओसामा अपने पिता की राजनीतिक विरासत को संभालने की कोशिश कर रहे हैं। एकमा से मनोरंजन उर्फ धूमल सिंह लोजपा के टिकट पर उतरे हैं, जबकि कुचायकोट से चर्चित नाम अमरेंद्र उर्फ पप्पू पांडे जेडीयू से लड़ रहे हैं।
युवा पीढ़ी की एंट्री, लेकिन पुरानी विरासत का असर
बक्सर जिले की ब्रह्मपुर से हुलास पांडे लोजपा के प्रत्याशी हैं, वहीं विशाल प्रशांत, जो बाहुबली सुनील पांडे के पुत्र हैं, भाजपा से मैदान में हैं। वैशाली से शिवानी शुक्ला, बाहुबली मुन्ना शुक्ला की पुत्री, पहली बार आरजेडी के टिकट पर किस्मत आजमा रही हैं। माझी सीट से रणधीर सिंह, बाहुबली प्रभुनाथ सिंह के पुत्र, जेडीयू से उम्मीदवार हैं। वहीं उसी इलाके की अरुणा देवी, जो अखिलेश सिंह सरदार की पत्नी हैं, भाजपा की ओर से मैदान में हैं। प्रभुनाथ परिवार से उनके भाई केदारनाथ सिंह RJD की टिकट पर बनियापार से मैदान में हैं और प्रभुनाथ सिंह के भतीजे सुधीर कुमार सिंह तरैया से निर्दलीय मैदान में ताल ठोंक रहे हैं।
बाहुबली फैक्टर की ताकत और बदलती राजनीति
इन बाहुबली नेताओं का स्थानीय नेटवर्क, संगठन और जातीय समीकरण अब भी कई सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाते हैं। गांवों में इन रसूखदार राजनीतिक परिवारों का असर सिर्फ राजनीतिक के साथ सामाजिक भी है, जहां भय और भरोसा दोनों साथ-साथ चलते हैं। हालांकि बिहार की राजनीति धीरे-धीरे बदल रही है। कई पुराने बाहुबली अब अपनी जगह नई पीढ़ी को दे रहे हैं ताकि इमेज बदले और जनता में स्वीकार्यता बढ़े। शहाबुद्दीन, आनंद मोहन, मुन्ना शुक्ला या राजबल्लभ यादव जैसे नामों के परिवार अब सॉफ्ट इमेज वाली राजनीति की ओर बढ़ रहे हैं, मगर उनकी जड़ें अब भी पुराने असर से जुड़ी हैं।
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