नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क। बिहार में इसी वर्ष होने जा रहे विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक कसरत शुरू हो गई है। सभी पार्टियां अपना दमखम दिखाने की तैयारी में जुटी है। हिंदी पट्टी के इस प्रमुख राज्य में राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव सारा दांव अपने हाथ में रखने का प्रयास कर रहे हैं तो जदयू नेता नीतीश कुमार एनडीए में अपना चेहरा सर्वोपरि रखने की कोशिश में पीछे नहीं रहना चाहते।
पिछले विधानसभा चुनाव में एआईएमआईएम को मिली थीं पांच सीटें
समीकरण के इस खेल में महागठबंधन और एनडीए में शामिल छोटी पार्टियां भी अधिकतम लाभ लेने का प्रयास कर रही हैं। राजनीति के इसी खेल में अब असदुद्दीन ओवैसी की अगुआई वाली एआईएमआईएम ने महागठबंधन के सामने पासा फेंका है। उसके इस कदम के पीछे कई कारण हैं। बिहार ही है जहां पार्टी को पिछले विधानसभा चुनाव में पांच सीटों पर सफलता मिली थी।
बिहार के बाद बंगाल में खेला गया दांव विफल रहा
बिहार में पांच सीटें जीतने के बाद ओवैसी की पार्टी का मनोबल बढ़ गया था और हिंदी पट्टी में अपना जानाधार बढ़ने में जुटी पार्टी ने बंगाल में भी दांव खेला। लेकिन बिहार के बाद पार्टी को उत्तर के किसी राज्य में कोई सफलता नहीं मिली।
बिहार के मुस्लिम बहुल क्षेत्र में मिली थी सफलता
बिहार में जिन पांच सीटों पर एआईएमआईएम को सफलता मिली वह पूर्वी बिहार में बंगाल से सटी सीमा क्षेत्र की हैं। यही कारण है कि इस सफलता के बाद पार्टी को बंगाल में भी सीटें मिलने की आशा थी। पूर्वी बिहार का पुर्णिया, कटिहार, किशनगंज आदि जिलों में मुस्लिम आबादी ज्यादा है। इसी को देखते हुए एआईएमआईएम दांव खेलना चाहती है और उसे इस क्षेत्र के मुस्लिम मतदाताओं पर भरोसा है।
बड़ा दिल कैसे दिखाए राजद, मुस्लिम वोट बैंक है उसकी ताकत
महागठबंधन में शामिल होने को आतुर एआईएमआईएम ने राजद नेता तेजस्वी यादव से बड़ा दिल दिखाने को कहा है। राजद बड़ा दिल दिखाए तो कैसे क्योंकि उसकी सबसे बड़ी ताकत माई (मुस्लिम-यादव) समीकरण है। ओवैसी को साथ लेने का अर्थ अपनी ताकत में सेंध लगाने की छूट देना हो जाएगा। एक समय कांग्रेस के वोटर रहे मुस्लिम के ही दम पर राजद ने लंबे समय तक बिहार पर राज किया है। इस वोट बैंक पर कांग्रेस की भी निगाह टिकी है और इसी में पसमंदा मुस्लिम को खड़ा कर नीतीश पटखनी देने में कामयाब हुए हैं।
क्यों चाहती है एआईएमआईएम बिहार में पैठ
एआईएमआईएम को यदि महागठबंधन अपने साथ लेता है तो पार्टी को हिंदी पट्टी में जनाधार मिल जाएगा और वह देश में मुस्लिमों की पार्टी के रूप में अपना पांव पसारने में कामयाब हो जाएगी। बिहार के बाद उसे पड़ोस के उत्तर प्रदेश में भी घुसपैठ करने में कामयाबी मिल जाएगी और बंगाल में दीदी के सामने भी उसके सामने कुछ परोसने की बाध्यता होगी। इन्हीं स्थितियों को देखते हुए ओवैसी ने यह दांव खेला है और अब राजनीति के धुरंधर खिलाडि़यों को तय करना है कि वह इस शह को कैसे मात देते हैं।