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GST की 14 प्रतिशत की एक स्लैब ही होनी चाहिए थी, मोटेंक सिंह बोले, राज्यों को उनका पूरा हक मिले

योजना आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष एवं प्रमुख अर्थशास्त्री मोंटेक सिंह अहलूवालिया का मानना है कि सेवा एवं वस्तुकर के स्लैब में किया बदलाव अर्थव्यवस्था की दृष्टि से वास्तविक सुधार नहीं है। यह सकारात्मक है, परंतु एक देश-एक टैक्स के वादे के अनुरुप नहीं है।

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Mukesh Pandit
Chief Economist Montek Singh Ahluwalia

Economist Montek Singh Ahluwalia

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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क। योजना आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष एवं प्रमुख अर्थशास्त्री मोंटेक सिंह अहलूवालिया का मानना है कि सेवा एवं वस्तुकर(जीएसटी) के स्लैब में किया बदलाव अर्थव्यवस्था की दृष्टि से वास्तविक सुधार नहीं है। यह सकारात्मक है, परंतु एक देश-एक टैक्स के वादे के अनुरूप नहीं है। अहलूवालिया ने कहा, "अगर आप एक ही दर चाहते थे, तो आपको 14 प्रतिशत की दर रखनी चाहिए थी। इसमें केंद्र के लिए छह प्रतिशत, राज्यों के लिए छह प्रतिशत और शहरी स्थानीय निकायों के लिए दो प्रतिशत रहता।"

एकसमान 14 प्रतिशत की दर लागू होनी चाहिए 

एक न्यूज चैनल को साक्षात्कार में मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने कहा  सरकार के सभी स्तरों - केंद्र, राज्य और शहरी स्थानीय निकायों - पर समान 14 प्रतिशत की दर लागू होनी चाहिए थी। "यह एक वास्तविक सुधार होता। चुंगी समाप्त होने पर शहरी निकायों को राजस्व का नुकसान हुआ था, और इससे उन्हें उनका हक़ मिलता।"वरिष्ठ अर्थशास्त्री ने तर्क दिया कि कई स्लैब और उपकर (सैस) संग्रह का वर्तमान ढांचा सरलता और निष्पक्षता, दोनों को कमज़ोर करता है। उन्होंने कहा, "आज भी बहुत सारी दरें हैं। जबकि केवल एक दर होनी चाहिए, हम लगभग सात दरों पर काम कर रहे हैं।"

राजस्व का वास्तविक लक्षय हासिल करना जरूरी 

उन्होंने स्वीकार किया जीएसटी के अनुपालन में सुधार हुआ है, लेकिन राजस्व का वास्तविक लक्षय हासिल करना जरूरी है। उन्होंने कहा, "राजस्व के संदर्भ में, हमें जीडीपी के प्रतिशत के रूप में पिछले लक्ष्य से कम राजस्व प्राप्त हो रहा है। सैस को शामिल करने पर भी, हम जीएसटी लागू होने से पहले के स्तर पर ही पहुंच पाए हैं। उन्होंने कहा, "मेरे विचार से, उपकर एक अपवाद है। इससे कर राजस्व उत्पन्न होता है जिसे राज्यों के साथ साझा नहीं किया जाता। सै

सेस का हिस्सा राज्यों को नहीं मिलता

उन्होंने कहा कि अधिकांश राज्यों की शिकायत यह है कि सैस विभाज्य पूल का हिस्सा नहीं है।" अहलूवालिया ने सुझाव दिया कि यह असंतुलन उस संघीय भावना को कमज़ोर करता है जिसका जीएसटी में समावेश होना चाहिए था। राज्य लंबे समय से शिकायत करते रहे हैं कि जीएसटी ने उनकी स्वतंत्र कर शक्तियों को अपने में समाहित कर लिया है, जबकि उपकर(सैस) संग्रह केंद्र को वह धनराशि रोक लेने देता है जो अन्यथा साझा की जाती।

इनपुट टैक्स क्रेडिट का भी बहुत नुकसान होगा

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मोंटेक सिंह ने दोहरे जीएसटी स्लैब लाने के प्रति सरकार को आगाह किया, "हाँ, दर कम हो जाएगी। लेकिन उत्पादकों को इनपुट टैक्स क्रेडिट का भी बहुत नुकसान होगा। मुझे पूरी तरह से यकीन नहीं है कि इसका क्या प्रभाव होगा?।" उन्होंने कहा कि 5 प्रतिशत की दर "बरकरार रखने के लिए बहुत कम" है। उन्होंने कहा कि इसके बजाय, 14 प्रतिशत का एक समान स्लैब, या ज़्यादा से ज़्यादा दो दरें, निष्पक्षता और राजकोषीय विवेक के बीच संतुलन बनाए रखेगी।

 अहलूवालिया ने आगे कहा, "जीएसटी का उद्देश्य अनुपालन को बढ़ावा देना और जीडीपी के हिस्से के रूप में राजस्व बढ़ाना था। ऐसा नहीं हुआ है। हमें इसे समग्र रूप से देखने की ज़रूरत है।" Motank Singh GST statement | GST Relief 2025 | GST Reforms 2025 | GST Reforms | GST Reform 2025 

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