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CAG रिपोर्ट का मुद्दा दिल्ली की सियासत में लंबे समय से विवादों में रहा है। अब आखिरकार दिल्ली विधानसभा में CAG की रिपोर्ट पेश हो गई है, जिसमें कई बड़े खुलासे किए गए हैं। CAG रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली की शराब पॉलिसी बदलने से 2,026.91 करोड़ का नुकसान हुआ है। दिल्ली चुनाव से पहले CAG रिपोर्ट को भाजपा ने बड़ा मुद्दा बनाया था और सत्ता में आने के बाद रिपोर्ट को पेश करने का वादा किया था। आइए जानते हैं कि CAG रिपोर्ट क्या होती है? ये कैसे तैयार की जाती है और आखिर क्यों सरकारें CAG रिपोर्ट पेश करने से कतरातीं हैं?
CAG की ताकत
CAG यानी कंप्ट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल (नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक) एक संवैधानिक पद है, जिसकी नियुक्ति राष्ट्रपति करता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 148 से लेकर 151 तक CAG से जुड़े प्रावधान हैं, जिसमें उनकी नियुक्ति, कर्तव्य और ऑडिट से संबंधित नियम शामिल हैं। 1971 के CAG अधिनियम के तहत उनकी शक्तियां निर्धारित की गई हैं। CAG द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट संसद के दोनों सदनों में प्रस्तुत की जाती है, साथ ही राज्य सरकारों के वित्तीय लेखे-जोखे से जुड़ी रिपोर्ट संबंधित राज्य की विधानसभा में पेश की जाती है।
CAG के कार्य क्या हैं?
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक का प्रमुख काम केंद्र और राज्य सरकारों के खातों का ऑडिट करना है। इसके अलावा CAG राज्य सरकारों के अकाउंट का रखरखाव करना है। सरकारी कर्मचारियों की पेंशन की स्वीकृति देता है और कर्मचारियों के सामान्य भविष्य निधि (GPF) खातों को मैनेज करता है।
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CAG कौन-कौन से ऑडिट करता है?
भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक तीन प्रकार के ऑडिट करता है।
कंप्लायंस ऑडिट: इसमें यह जांच की जाती है कि क्या सरकार और सरकारी संस्थानों ने नियमों, कानूनों, नीतियों और प्रक्रियाओं का सही ढंग से पालन किया है या नहीं।
प्रदर्शन ऑडिट: यह ऑडिट सरकारी योजनाओं, कार्यक्रमों और परियोजनाओं की दक्षता, प्रभावशीलता और अर्थव्यवस्था की जांच करता है। यह मूल्यांकन करता है कि संसाधनों का सही उपयोग हो रहा है या नहीं।
वित्तीय ऑडिट: यह ऑडिट सरकारी खातों, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (PSUs) और अन्य संस्थाओं के वित्तीय विवरणों की जांच करता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे सटीक और पारदर्शी हैं।
CAG ऑडिट के विषय
भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक किसी विषय का ऑडिट करने से पहले कई महत्वपूर्ण कारकों का विश्लेषण करता है। इनमें संबंधित प्रोजेक्ट की लागत, मीडिया में उठाए गए सवाल, और पूर्व की ऑडिट रिपोर्टों में दर्ज निष्कर्ष शामिल होते हैं। CAG अंतर्राष्ट्रीय ऑडिट संस्थानों (INTOSAI) द्वारा जारी दिशानिर्देशों का पालन करते हुए एनुअल ऑडिट प्लान भी तैयार करता है, जिसे विभिन्न फील्ड ऑफिस में लागू किया जाता है। CAG के ऑडिट विषयों और तरीकों पर सुझाव देने के लिए ऑडिट एडवाइजरी बोर्ड भी साल में दो बार बैठक करता है। सरकार या न्यायालय भी किसी विशेष मामले की जांच के लिए CAG को अधिकृत कर सकते हैं।
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सरकार देरी क्यों पेश करती है CAG रिपोर्ट?
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 151 के अनुसार, CAG की रिपोर्ट को संसद या राज्य विधानसभा में पेश किया जाना जरूरी है। हालांकि, इसमें कोई समय सीमा निर्धारित नहीं है, जिसके चलते सरकारें कई बार रिपोर्ट को लंबे समय तक प्रस्तुत नहीं करतीं। CAG रिपोर्ट सार्वजनिक तभी होती है जब इसे सदन में पेश किया जाता है। इसके बाद, लोक लेखा समिति (PAC) रिपोर्ट की जांच कर सरकार से स्पष्टीकरण मांगती है। साथ ही, सरकार को आवश्यक सुधारों को लागू करने और "एक्शन टेकन रिपोर्ट" प्रस्तुत करने के निर्देश दिए जाते हैं। आंकड़ों के अनुसार, 2019 से जुलाई 2023 तक PAC ने लोकसभा में 152 रिपोर्टें प्रस्तुत की गई हैं।
CAG रिपोर्ट से सरकारों पर असर
CAG की रिपोर्ट्स ने कई बार सियासी भूचाल ला दिया है। CAG की रिपोर्ट्स से केंद्र और राज्य सरकारें हिल चुकी हैं। 2010 में CAG की 2G स्पेक्ट्रम घोटाले पर रिपोर्ट ने तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार की साख को गहरा नुकसान पहुंचाया था, जिसके असर से 2014 में यूपीए सरकार सत्ता से बाहर हो गई थी। दिल्ली की सियासत में भी CAG रिपोर्ट का असर देखने को मिला है। 2014-15 में सीएम अरविंद केजरीवाल ने CAG रिपोर्ट के आधार पर पूर्व सीएम शीला दीक्षित पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे। सत्ता में आने के बाद, उन्होंने शीला दीक्षित को जेल भेजने की मांग भी उठाई थी।
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