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HDFC Bank CEO की रिट की सुनवाई से हाईकोर्ट के 10 जजों ने खड़े किए हाथ

हाईकोर्ट के दस जजों ने एचडीएफसी बैंक के सीईओ और प्रबंध निदेशक शशिधर जगदीशन की एक याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया है। जगदीशन ने उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग की है।

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Shailendra Gautam
Petition claiming 75 lakh votes were cast after 6 PM dismissed

नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः बॉम्बे हाईकोर्ट के दस जजों ने एचडीएफसी बैंक के सीईओ और प्रबंध निदेशक शशिधर जगदीशन की एक याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया है। जगदीशन ने लीलावती कीर्तिलाल मेहता मेडिकल ट्रस्ट की शिकायत के आधार पर उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग की है। ट्रस्ट मुंबई के जानेमाने लीलावती अस्पताल की देखरेख करता है। ट्रस्ट का आरोप है कि जगदीशन ने वित्तीय सलाह के बदले में 2.05 करोड़ रुपये की रिश्वत ली। उनकी सलाह की वजह से चेतन मेहता समूह की ट्रस्ट में स्थिति मजबूत हुई । ट्रस्ट का आरोप है कि जगदीशन ने एक चैरिटेबल संस्था के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने के लिए एक प्रमुख निजी बैंक के प्रमुख के रूप में अपने पद का दुरुपयोग किया।

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जगदीशन के वकील जजों की नियुक्ति के लिए नए नियम बनाए जाएं

जस्टिस रेवती मोहिते डेरे, जीएस कुलकर्णी, आरिफ डॉक्टर, बीपी कोलाबावाला, एमएम सथाये, आरआई चागला और शर्मिला देशमुख ने पहले ही खुद को मामले से अलग कर लिया था। यह मामला शुरू में 18 जून को जस्टिस एएस गडकरी और राजेश पाटिल की बेंच के सामने पेश किया गया था पर दोनों ने हाथ खड़े कर दिए। गुरुवार को जस्टिस एमएस सोनक और जितेंद्र जैन की बेंच के समक्ष सुनवाई होनी थी। लेकिन जस्टिस जैन ने खुलासा किया कि उनके पास एचडीएफसी बैंक के शेयर हैं। ट्रस्ट के वकील प्रशांत मेहता की आपत्ति के बाद जस्टिस जैन ने भी खुद को अलग कर लिया। सुनवाई के दौरान जगदीशन के वकील अमित देसाई ने जजों के सुनवाई से हटने के पैटर्न की कड़ी आलोचना की और ट्रस्ट पर फोरम शॉपिंग का आरोप लगाया। उन्होंने तर्क दिया कि शेयर रखना मामले की सुनवाई से अलग होने का कारण नहीं बन सकता। देसाई ने कहा कि कॉलेजियम को बॉम्बे में जजों की नियुक्ति के लिए एक नया मानदंड पेश करना चाहिए। केवल उन लोगों का चयन करें जिन्होंने लीलावती के साथ काम नहीं किया है। 

अदालत के हस्तक्षेप के बाद जगदीशन पर दर्ज हुई थी एफआईआर

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मामले में 31 मई को एफआईआर दर्ज की गई थी। बांद्रा पुलिस स्टेशन में दर्ज की गई एफआईआर बांद्रा की अदालत के आदेश के बाद दर्ज की गई थी। शिकायत का मुख्य हिस्सा एक डायरी है जो प्रशांत मेहता को मिली थी। इसमें चेतन मेहता और छह अन्य पूर्व ट्रस्टियों द्वारा शशिधर जगदीशन को किए गए 2.05 करोड़ रुपये के भुगतान का रिकॉर्ड है। अदालत ने माना कि आरोप बहुत गंभीर थे, इसलिए जांच की आवश्यकता थी। इसके बाद ट्रस्ट ने एक नई याचिका दायर की, जिसमें कहा गया कि शशिधर जगदीशन भ्रष्टाचार मामले की जांच पुलिस को नहीं, बल्कि सीबीआई को करनी चाहिए। जगदीशन ने 18 जून को मुंबई के लीलावती अस्पताल के मालिक लीलावती कीर्तिलाल मेहता मेडिकल ट्रस्ट द्वारा उनके खिलाफ दर्ज पुलिस केस (एफआईआर) को रद्द करने का अनुरोध करने के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।


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