नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क | देश में जातिगत जनगणना कराने के केंद्र सरकार के फैसले के बाद सियासी लोगों की अलग-अलग प्रतिक्रिया सामने आ रही है। विपक्ष के कई नेता सरकार इस फैसले का समर्थन करते दिख रहे हैं। इसी कड़ी में भाजपा के राष्ट्रीय सूचना एवं प्रौद्योगिकी विभाग के प्रभारी अमित मालवीय ने भी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। मालविया ने अपने एक्श अकाउंट पर एक पोस्ट लिखा जिसमें उन्होंने कहा कि मोदी सरकार द्वारा घोषित नई जातिगत जनगणनाको भारत में सच्चे सामाजिक न्याय की दिशा में एक निर्णायक पहल माना जा रहा है। यह जनगणना पिछली कांग्रेस-नीत 2011 की जनगणना की तुलना में अधिक केंद्रित, सटीक और व्यवहारिक होने का वादा करती है।
मोदी सरकार की जनगणना का उद्देश्य स्पष्ट
मालवीय ने लिखा- 2011 की जनगणना में 46 लाख से अधिक जातियों की सूची जैसे अव्यवहारिक आंकड़े सामने आए थे, जिससे डेटा का कोई ठोस उपयोग नहीं हो पाया। इसके विपरीत, मोदी सरकार की जनगणना का उद्देश्य स्पष्ट है — ओबीसी, एससी और एसटी समुदायों के भीतर सबसे वंचित वर्गों की पहचान कर उपयुक्त उप-वर्गीकरण को लागू करना ताकि कोई भी समुदाय सामाजिक प्रतिनिधित्व से वंचित न रह जाए।
तुष्टिकरण की प्रवृत्ति पर भी लगाम लगेगी
सरकार का मानना है कि इससे आरक्षण प्रणाली अधिक न्यायसंगत और ज़मीनी सच्चाई के अनुरूप बनाई जा सकेगी। खासतौर पर ओबीसी आरक्षण के भीतर धार्मिक आधार पर तुष्टिकरण की प्रवृत्ति पर भी लगाम लगेगी। उल्लेखनीय है कि 2011 में कांग्रेस सरकार ने त्रुटिपूर्ण जातिगत आंकड़ों के आधार पर ओबीसी कोटे में 4.5% का धार्मिक उप-कोटा लागू करने की कोशिश की थी, जिसे न्यायालय ने बाद में असंवैधानिक बताते हुए खारिज कर दिया।
मोदी सरकार की यह पहल इस सिद्धांत को दोहराती है कि आरक्षण केवल सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ेपन के आधार पर दिया जाना चाहिए, न कि धार्मिक पहचान पर। यह कदम न केवल संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करता है, बल्कि आंकड़ों के आधार पर निष्पक्ष प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास है।
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