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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क। उत्तर प्रदेश विधानसभा में बांके बिहारी ट्रस्ट विधेयक 2025 पास होने के साथ ही सुप्रीम कोर्ट का 8 अगस्त का वह आदेश निष्प्रभावी हो गया, जिसमें अदालत ने मथुरा-वृंदावन स्थित प्रसिद्ध श्री बांके बिहारी मंदिर के प्रबंधन को सरकार द्वारा अपने हाथ में लेने संबंधी अध्यादेश के प्रावधानों पर अस्थायी रोक लगाई थी। इससे पहले, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने अध्यादेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं को इलाहाबाद उच्च न्यायालय में स्थानांतरित किया था और उच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में समिति बनाकर मंदिर मामलों की निगरानी का निर्देश दिया था। अदालत ने यह भी कहा था कि राज्य सरकार मंदिर के फंड का गलियारा विकास परियोजना में उपयोग नहीं कर सकेगी।
सरकार का दावा, परंपरा सुरक्षित, सुविधाएं आधुनिक
नए विधेयक के तहत श्री बांके बिहारी मंदिर न्यास का गठन होगा, जो मंदिर के चढ़ावे, दान और सभी चल-अचल संपत्तियों का प्रबंधन करेगा। सरकार का कहना है कि स्वामी हरिदास की परंपरा के अनुसार मंदिर की सभी पूजा, अनुष्ठान, त्योहार और रीति-रिवाज पहले की तरह बिना किसी बदलाव के जारी रहेंगे।
जानें न्यास के अधिकार और कर्तव्य
न्यास के दायरे में दर्शन समय तय करना, पुजारियों की नियुक्ति, वेतन-भत्ते निर्धारण, सुरक्षा व्यवस्था और प्रशासनिक प्रबंधन शामिल होगा। साथ ही, श्रद्धालुओं के लिए विश्वस्तरीय सुविधाएं, जैसे प्रसाद वितरण, वरिष्ठ नागरिकों व दिव्यांगों के लिए विशेष मार्ग, पेयजल, विश्राम स्थल, कतार प्रबंधन कियोस्क, गौशालाएं, अन्नक्षेत्र, होटल, सराय और भोजनालय विकसित किए जाएंगे।
ऐसी होगी न्यास की संरचना
न्यास में 11 मनोनीत और 7 पदेन सदस्य होंगे। मनोनीत सदस्यों में वैष्णव व सनातन परंपरा से प्रतिष्ठित संत-महंत, विद्वान और समाजसेवी शामिल होंगे, जबकि गोस्वामी परंपरा से दो सदस्य (राज-भोग व शयन-भोग सेवादारों के प्रतिनिधि) होंगे। पदेन सदस्यों में मथुरा के जिलाधिकारी, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, नगर निगम आयुक्त, ब्रज तीर्थ विकास परिषद के सीईओ, मंदिर ट्रस्ट के सीईओ और राज्य सरकार का प्रतिनिधि होगा। न्यास को ₹20 लाख तक की संपत्ति स्वयं खरीदने का अधिकार होगा, इससे अधिक के लिए राज्य सरकार की मंजूरी जरूरी होगी। हर तीन महीने में न्यास की बैठक अनिवार्य होगी और मुख्य कार्यपालक अधिकारी एडीएम स्तर के अधिकारी होंगे।
जानिए क्या है बांके बिहारी विवाद
सुप्रीम कोर्ट में देवेंद्र नाथ गोस्वामी ने याचिका दायर कर दावा किया था कि उनका परिवार 500 साल से बांके बिहारी मंदिर का प्रबंधन करता आ रहा है और सरकार की पुनर्विकास योजना अव्यवहारिक है। दरअसल यूपी सरकार ने 2025 में नया श्री बांके बिहारी जी मंदिर न्यास बनाकर मंदिर का प्रबंधन अपने हाथ में लिया था और 500 करोड़ की कॉरिडोर योजना पेश की थी। 15 मई के आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे मंजूरी दे दी थी। सर्वोच्च न्यायालय ने 8 अगस्त को सुनाए गए फैसले जहां 15 मई के अपने फैसले का निरस्त करने की बात कही थी, वहीं उत्तर प्रदेश सरकार के द्वारा जारी किए गए अध्यादेश पर सवालिया निशान लगाते हुए अस्थाई रोक भी लगा दी थी।
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