नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क
हाल ही में आदिवासी विकास के लिए केंद्र सरकार द्वारा जारी किए गए बजट में कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं पर चर्चा की गई है। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि केवल धन से आदिवासी विकास संभव नहीं है। इसके लिए एक मजबूत तंत्र की आवश्यकता है, जो समुदाय और सीबीओ (कम्युनिटी बेस्ड ऑर्गनाइजेशन्स) को विकास कार्यक्रमों के हर चरण में भागीदार बनाए। डॉ. प्रवास मिश्रा के अनुसार, आदिवासी विकास के नाम पर बड़े बजट खर्च किए गए, लेकिन बिना स्थानीय समुदायों की संलग्नता के अपेक्षित परिणाम नहीं मिले। विकास की गति धीमी रही और योजना का क्रियान्वयन भी आदिवासी समुदाय की आवश्यकताओं के अनुसार नहीं हुआ।
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ग्रामीण और आदिवासी विकास पर जोर
केंद्रीय बजट 2025-26 में ग्रामीण और आदिवासी विकास पर ध्यान केंद्रित किया गया है। सरकार ने 51.89 लाख करोड़ रुपये के कुल बजट का प्रस्ताव किया है, जिसमें ग्रामीण और आदिवासी समुदाय के लिए कुछ नई योजनाओं की घोषणा की गई है। केंद्रीय बजट में राजकोषीय घाटे को 4.4 प्रतिशत तक सीमित रखते हुए, यह संकेत दिया गया है कि सरकार के पास आदिवासी और ग्रामीण क्षेत्रों के लिए अधिक खर्च करने के लिए अधिक राजकोषीय जगह है। हालांकि, डॉ. मिश्रा का कहना है कि मनरेगा और ग्रामीण विकास के लिए बजट आवंटन अपेक्षाकृत कम है, जिससे यह सवाल उठता है कि क्या सरकार का प्राथमिकता ग्रामीण क्षेत्रों में विकास की ओर है।
आदिवासी उद्यमिता को बढ़ावा देने का प्रयास
इस बजट में आदिवासी उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं। डॉ. जोसेफ मारियानस कुजूर के अनुसार, बजट में अनुसूचित जनजाति के उद्यमियों के लिए 10,000 करोड़ रुपये अलग से निर्धारित किए गए हैं, जिससे अगले पांच वर्षों में 2 करोड़ रुपये तक के ऋण का प्रस्ताव है। यह कदम आदिवासी समुदाय की आर्थिक स्थिति सुधारने और उन्हें स्वावलंबी बनाने के लिए एक सराहनीय प्रयास माना जा सकता है।
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आदिवासी समुदाय की चिंताएं
हालांकि, बजट में आदिवासी समुदाय के लिए कुछ सकारात्मक कदम उठाए गए हैं, लेकिन कई महत्वपूर्ण मुद्दे अभी भी अनदेखे हैं। आदिवासी भूमि अधिकार, विस्थापन, पलायन, शिक्षा, स्वास्थ्य, और पर्यावरण संरक्षण जैसे मुद्दों पर सरकार ने विशेष ध्यान नहीं दिया है। डॉ. कुजूर ने इसे लेकर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि वर्तमान बजट के क्रियान्वयन में आने वाली चुनौतियों का ध्यान नहीं रखा गया है, जिससे आदिवासी समुदाय की वास्तविक समस्याओं का समाधान नहीं हो पाएगा।
आदिवासी विकास के लिए सरकार का यह बजट कुछ सकारात्मक पहलुओं को उजागर करता है, लेकिन साथ ही इसमें कई बुनियादी मुद्दों की अनदेखी की गई है। यदि इन योजनाओं को सफलतापूर्वक लागू करना है, तो जरूरी है कि इन मुद्दों को प्राथमिकता दी जाए और आदिवासी समुदाय की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित की जाए।
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