CWG: अब ईडी ने भी माना कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाला नहीं हुआ, कोर्ट भी रजामंद
कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाला, जिसे सबसे बड़ा घोटाला बताया जा रहा था, सीबीआई के बाद अब ईडी ने भी यह मान लिया है कि कॉमनवेल्थ गेम्स में कोई घोटाला नहीं हुआ, बड़ी बात है कि कोर्ट ने भी यह बात मान ली है।
नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क। ऐसे तमाम लोग होंगे जिन्हें यह याद नहीं होगा कि 2010 में नई दिल्ली में आयोजित कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत ने सौ से अधिक मेडल जीते थे लेकिन यह बात सबको याद होगी कि कॉमनवेल्थ गेम्स के आयोजन में सबसे बड़ा घोटाला हुआ था, पर यह जानकारी सही नहीं है। ईडी द्वारा क्लोजर रिपोर्ट दाखिल करने के बाद राउज एवेन्यू कोर्ट ने भी इस बात पर मुहर लगा दी है। ईडी ने सोमवार को अपनी क्लोजर रिपोर्ट पेश की, लेकिन यह बड़ी खबर दबे पांव निकल गई और कोई हो- हल्ला नहीं हुआ, शायद भारत - पाक विवाद के चलते ऐसा हुआ हो, पर खबर है बड़ी।
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ईडी बोली- सुरेश कलमाड़ी के खिलाफ सबूत नहीं
2011 में प्रकाश में आए कॉमनवेल्थ घोटाला प्रकाश में आने के बाद अप्रैल 2011 में CBI ने सुरेश कलमाड़ी को गिरफ्तार कर लिया था। करीब नौ माह का समय उन्हें दिल्ली की तिहाड़ जेल में गुजारना पड़ा था। उसके बाद हाईकोर्ट से कलमाड़ी को जमानत मिली थी। करीब तीन साल तक जांच करने के बाद सीबीआई ने 2014 में क्लोजर रिपोर्ट दे दी थी। केंद्र में सत्ता परिवार हुआ। उसके बाद यह मामला जांच के लिए प्रवर्तन निदेशालय को दिया गया था। कॉमनवेल्थ गेम्स आयोजन समिति के प्रमुख सुरेश कलमाड़ी पर मनी लॉड्रिंग का आरोप था। ईडी ने पूरे 10 साल जांच में लगाए, लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात ही रहा। ईडी को भी मामले में सुरेश कलमाड़ी के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला और अंततः ईडी ने भी क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी।
Photograph: (Google)
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जानिए सुरेश कलमाड़ी पर क्या थे आरोप
सुरेश कलमाड़ी पर आरोप था कि उन्होंने टाइम स्कोरिंग मशीन की टेंडरिंग में घोटाला किया। स्पेन और स्विस कंपनी की निविदा उन्हें मिली थीं। उन्होंंने 157 करोड़ निविदा स्विस कंपनी के नाम कर दी थी, जबकि स्पेन की कंपनी की बिड 95 करोड़ रुपये कम की थी। मामले में मनी लॉड्रिंग के आरोपों में घिरे सुरेश कलमाड़ी को उस समय कॉमनवेल्थ गेम्स का बिलेन साबित कर दिया गया था। कलमाड़ी न केवल जेल गई बल्कि उनकी राजनैतिक हत्या भी हो गई, लेकिन करीब 15 साल बाद अब यह बात साफ हो पाई कि सुरेश कलमाड़ी ने ऐसा कुछ किया ही नहीं था, कॉमनवेल्थ गेम्स में कोई घोटाला हुआ ही नहीं था।
Step by step ऐसे समझें पूरा मामला
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2003-2007: आयोजन की तैयारी 2003 में भारत को 2010 कॉमनवेल्थ गेम्स की मेजबानी मिली। इस मेजबानी के लिए कनाडा का भी दावा था, लेकिन मेजबानी भारत को मिली। सुरेश कलमाड़ी को आयोजन समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया।2004-2007: बुनियादी ढांचे और स्टेडियमों के निर्माण की योजना शुरू हुई। इस दौरान ठेकों और निविदाओं की प्रक्रिया शुरू हुई, जो बाद में विवाद का केंद्र बनी।
2008-2009: अनियमितताओं की शुरुआत
2008 में क्वींस बैटन रिले की तैयारियों के दौरान लंदन में अनुचित खर्चों के आरोप सामने आए। ब्रिटिश कंपनी AM Films को बिना निविदा के लाखों पाउंड का ठेका दिया गया।2009 में टाइम स्कोरिंग रिजल्ट (TSR) मशीन के लिए स्विस कंपनी को 157 करोड़ रुपये का ठेका दिया गया, जबकि स्पेन की MSL कंपनी इसे 62 करोड़ रुपये में करने को तैयार थी।यह ठेका 12 अक्टूबर, 2009 को दे दिया गया, जबकि निविदा 4 नवंबर, 2009 को खोली गई और भारतीय ओलंपिक संघ के तत्कालीन अध्यक्ष और राष्ट्रमंडल खेल आयोजन समिति के प्रमुख सुरेश कलमाड़ी पर यही सबसे बड़ा आरोप था।
MCD के चार अधिकारियों को सजा सुनाई गई
2009: स्ट्रीट लाइटिंग और अन्य बुनियादी ढांचे के ठेकों में MCD अधिकारियों पर फर्जीवाड़े के आरोप लगे। इन आरोपों में कोर्ट ने चार अधिकारियों को सजा भी सुनाई। एमसीडी में उस समय भाजपा सत्ता में थी। सितंबर 2015 में स्ट्रीट लाइटिंग घोटाले में MCD के चार अधिकारियों और एक फर्म के प्रबंध निदेशक को 4-6 साल की सजा सुनाई गई। यह CWG से जुड़ा पहला दोषसिद्धि वाला मामला था।
2010: घोटाले का खुलासा और जांच
जुलाई-अगस्त 2010: केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) ने स्टेडियम निर्माण और अन्य कार्यों में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार की रिपोर्ट दी। जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम के पास नवनिर्मित पैदल यात्री पुल ढहने से आयोजन की तैयारियों पर सवाल उठे। अगस्त 2010 में आयोजन समिति के संयुक्त निदेशक टीएस दरबारी और एम जयचंद्रन को निलंबित किया गया। कोषाध्यक्ष अनिल खन्ना पर अपने बेटे की कंपनी को टेनिस कोर्ट का ठेका देने का आरोप लगा।
अक्टूबर 2010 में हुआ था गेम्स का आयोजन
गेम्स का आयोजन 3-14 अक्टूबर तक हुआ। आयोजन के दौरान स्टेडियमों की खराब स्थिति, टपकती छतें और कुप्रबंधन की खबरें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में रहीं।नवंबर 2010: CBI ने घोटाले की जांच शुरू की और कम से कम 19 FIR दर्ज कीं। सुरेश कलमाड़ी और अन्य अधिकारियों पर जांच का दायरा बढ़ा।
2011: गिरफ्तारियां और कानूनी कार्रवाई
अप्रैल 2011 में CBI ने सुरेश कलमाड़ी को गिरफ्तार किया। उन पर TSR सिस्टम के ठेके में 95 करोड़ रुपये के नुकसान का आरोप लगा। वे लगभग 9 महीने तिहाड़ जेल में रहे।जुलाई 2011: घोटाले को भारत के सबसे बड़े घोटालों में से एक घोषित किया गया, जिसमें 70,000 करोड़ रुपये की हेराफेरी का अनुमान लगाया गया। 2011 में प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने मनी लॉन्ड्रिंग की जांच शुरू की, जिसमें क्वींस बैटन रिले और विदेशी मुद्रा के लेनदेन पर ध्यान केंद्रित किया गया।
2012-2013: आरोप तय और जमानत 2012 में दिल्ली हाईकोर्ट ने सुरेश कलमाड़ी को जमानत दी। 2013 में CBI कोर्ट ने कलमाड़ी और अन्य के खिलाफ आपराधिक साजिश, धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत आरोप तय किए। जनवरी,2014 में CBI ने कोर्ट में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी। सीबीआई ने अपनी क्लोजर रिपोर्ट में कहा था कि दो महत्वपूर्ण ठेकों (Games Workforce Service और Games Planning, Project & Risk Management Services) में कोई ठोस सबूत नहीं मिले।
अप्रैल, 2025: अंतिम समापन राउज एवेन्यू कोर्ट ने ED की क्लोजर रिपोर्ट स्वीकार की, जिसमें कहा गया कि मनी लॉन्ड्रिंग के कोई सबूत नहीं मिले। सुरेश कलमाड़ी, ललित भनोट और अन्य को क्लीन चिट मिली।
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