नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क। भारत-पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम को लेकर विदेश मंत्री एस जयशंकर को लगातार विपक्ष घेर रहा है। उनपर कई तरह के आरोप लगाए जा रहे हैं, अब जयशंकर ने सीजफायर की सच्चाई बताई है और हर सवाल का बेबाकी से जवाब दिया। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने संसद की एक समिति को बताया कि भारतीय सेना का 'ऑपरेशन सिंदूर' पाकिस्तान की ओर से आए अनुरोध के बाद ही रोका गया। यह फैसला पूरी तरह से भारत और पाकिस्तान के सैन्य अधिकारियों (DGMO) के बीच हुई बातचीत के आधार पर लिया गया। उन्होंने संघर्षविराम में अमेरिकी हस्तक्षेप क्या रोल क्या रहा, इसके बारे में भी खुलासा किया है।
DGMO के स्तर पर हुई बातचीत, किसी मंत्री की नहीं
जयशंकर ने यह साफ किया कि उन्होंने खुद कभी पाकिस्तान से बातचीत नहीं की। उन्होंने बताया कि केवल भारत और पाकिस्तान के डीजीएमओ (डायरेक्टर जनरल ऑफ मिलिट्री ऑपरेशंस) ने आपस में बात की। किसी भी अन्य भारतीय अधिकारी ने पाकिस्तानी पक्ष से कोई बातचीत नहीं की।
अमेरिकी 'हस्तक्षेप' की अफवाहें गलत
जयशंकर ने कहा कि कुछ लोग यह झूठ फैला रहे हैं कि अमेरिका ने भारत पर दबाव डालकर यह सैन्य ऑपरेशन रुकवाया। उन्होंने इसे पूरी तरह खारिज करते हुए कहा कि भारत ने अमेरिका को स्पष्ट कर दिया था कि पाकिस्तान को भारत से सीधे बात करनी चाहिए, और आतंकवाद के बीच कोई बातचीत नहीं हो सकती।
पाकिस्तान को ऑपरेशन के बाद दी गई जानकारी
जयशंकर ने बताया कि जब भारत ने पाकिस्तान के आतंकी शिविरों पर हमला किया, उसके बाद ही डीजीएमओ ने पाकिस्तान को जानकारी दी। यह आरोप कि भारत ने हमले से पहले पाकिस्तान को बता दिया था, बिल्कुल गलत और भ्रामक है।
राष्ट्रीय सुरक्षा पर राजनीति की जा रही है
जयशंकर ने कहा कि कुछ नेता, जैसे कि कांग्रेस और राहुल गांधी, उनके बयान को तोड़-मरोड़ कर पेश कर रहे हैं, जिससे जनता को गुमराह किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे गंभीर मुद्दों पर भी राजनीति की जा रही है।
पाकिस्तान को दुनिया में बेनकाब करने की अपील
विदेश मंत्री ने सभी सांसदों से अपील की कि वे दुनिया के सामने पाकिस्तान के झूठ और आतंकवाद के समर्थन को उजागर करने में सरकार का साथ दें। उन्होंने कहा कि भारत के खिलाफ पाकिस्तान के झूठे प्रचार पर विश्वास नहीं करना चाहिए। जयशंकर ने कहा कि भारत द्वारा आतंकी शिविरों पर की गई कार्रवाई को दुनिया के ज्यादातर देशों ने समर्थन दिया, जबकि पाकिस्तान के साथ सिर्फ चीन, अजरबैजान और तुर्किए जैसे कुछ देश ही खड़े हुए।
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