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Holi: रंगों के पर्व पर भी बेरंग, जानिए कैसे मान्यताओं और परंपराओं में बंधा है त्यौहार

होली पूरे भारत में उल्लास के साथ मनाई जाती है, लेकिन कुछ स्थानों पर यह विभिन्न मान्यताओं के कारण नहीं मनाई जाती। यह विविधता भारतीय संस्कृति की अनूठी पहचान है।

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Dhiraj Dhillon
Holi

Photograph: (Google)

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होली पूरे भारत में उल्लास और रंगों का पर्व है, लेकिन कुछ स्थानों पर यह विभिन्न धार्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक मान्यताओं के कारण नहीं मनाई जाती। यह विविधता भारतीय संस्कृति की अनूठी पहचान को दर्शाती है। हिंदू धर्म में रंगों के इस त्यौहार की खास महत्ता है। खुशी के मौकों की बात की जाती है तो होली- दिवाली का ही जिक्र होता है, लेकिन होली को लेकर हिंदू धर्म में ही कुछ ऐसी मान्यताएं और परंपराएं भी हैं कि लोग रंगों के इस त्यौहार पर भी बेरंग रह जाते हैं। आज भी ऐसे लोगों और जगहों की बात करेंगे।
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केवल रंगों का त्यौहार नहीं है होली

होली सिर्फ रंगों का त्योहार नहीं है, बल्कि यह अलग-अलग संस्कृतियों और मान्यताओं का प्रतीक भी है। हालांकि, भारत के कुछ हिस्सों में यह पर्व नहीं मनाया जाता, और इसके पीछे बाकायदा धार्मिक एवं सांस्कृतिक कारण हैं और यह विविधता भी भारतीय परंपराओं का अभिन्न हिस्सा है। धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताओं के अलावा, कुछ अनहोनी भी होली न मनाने की वजह बनी हैं।
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उत्तराखंड: देवी की शांति के लिए होली पर प्रतिबंध

उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित क्विली और कुरझन जैसे गांवों में करीब 150 वर्षों से होली नहीं मनाई जा रही है। स्थानीय लोगों का मानना है कि इस क्षेत्र की अधिष्ठात्री देवी त्रिपुर सुंदरी को शोर-शराबा पसंद नहीं है। इसलिए, वहां के लोग होली के दौरान किसी भी तरह के उत्सव से परहेज करते हैं। इसके अलावा उत्तराखंड के चमोली जिले के रमोला गांव में भी होली नहीं मनाई जाती। रमोला में मान्यता है कि होली मनाएंगे तो उनके पूर्वजों की आत्मा अशांत हो सकती हैं।

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झारखंड: शोक में डूबी परंपरा

आपको बता दें कि झारखंड के दुर्गापुर गांव में भी होली नहीं मनाई जाती है। ऐसा कहा जाता है कि प्राचीन काल में होली के दिन स्थानीय राजा और उनके बेटे की मृत्यु हो गई थी। राजा ने अपनी प्रजा को आदेश दिया था कि इस दुखद घटना के कारण गाँव में कोई भी होली न मनाए। इस परंपरा का पालन झारखंड के दुर्गापुर गांव में आज भी किया जा रहा है।

तमिलनाडु में मासी मगम के रूप में मनता है यह दिन

हालांकि परंपरागत तरीके से तमिलनाडु में उत्तर भारत की तरह होली नहीं मनाई जाती, लेकिन पूर्णिमा का दिन होने के कारण, यहां इसे मासी मगम के रूप में मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन दैवीय प्राणी और पूर्वज पवित्र नदियों व जलाशयों में स्नान के लिए धरती पर आते हैं। तमिलनाडु के धर्मपुरी जिले में कुछ गाँवों में भी इस तरह की मान्यता भी है कि उनकी कुलदेवी को शोर-शराबा पसंद नहीं है, इसलिए वहां होली का आयोजन नहीं किया जाता।

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मध्य प्रदेश: संत का श्राप के चलते बेरंग हैं गांव

मध्य प्रदेश के भिंड जिले के कूचीपुरा गांव में सदियों से होली नहीं मनाई जाती। स्थानीय लोगों का कहना है कि किसी संत ने इस गांव को श्राप दिया था कि यदि यहां होली मनाई जाएगी तो गांव पर विपत्ति आ सकती है। बस लोगों ने तभी से यह बात गांठ बांध ली और उसके बाद से आज तक गांव में होली नहीं मनाई गई। इसी प्रकार गुजरात बनासकांठा जिले के रामसन गांव में भी 200 वर्षों से होली नहीं मनाई जाती।

छत्तीसगढ़: 150 वर्षों से होली पर प्रतिबंध

छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले के खरहरी गांव में बीते 150 वर्षों से होली नहीं मनाई जा रही है। इस गांव में एक घटना प्रचलित है कि लगभग 150 साल पहले होलिका दहन के समय गांव में भीषण आग लग गई थी, जिससे पूरे गाँव को भारी नुकसान हुआ था। तभी से यहां होली न मनाने की परंपरा बन गई।

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