नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क। एक ओर से जहां भारत के सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल पूरी दुनिया में घूमकर पाकिस्तान के काले कारनामों का चिठ्ठा खोल रहे हैं और आतंकवाद के खिलाफ सभी सियासी दलों के एक साथ होने का संदेश दे रहे हैं,वहीं इस बीच
भाजपा सांसद डॉ. निशिकांत दुबे द्वारा साझा किए गए एक पुराने पत्र ने देश में हलचल मचा दी है।
भारत- पाक मामले में अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के रोल पर उठ रहे सवालों के बीच जारी किए गए इस गोपनीय दस्तावेज के हवाले से ब्रिटेन और अमेरिकी दवाब की बात भी कही गई है। इससे पहले भाजपा सांसद निशिकांत दुबे राहुल गांधी पर पाखंड का आरोप लगाते हुए 1991 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए सैन्य पारदर्शिता समझौते पर कांग्रेस को घेर चुके हैं। उन्होंने कहा था कि कांग्रेस लंबे समय से ‘पाकिस्तानी वोट बैंक’ की राजनीति कर रही है।
1963 में करांची से लिखा गया था पत्र
यह पत्र 1963 का है और इसमें खुलासा हुआ है कि भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर विवाद को सुलझाने के लिए विदेश मंत्री स्वर्ण सिंह और पाकिस्तानी विदेश मंत्री ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो के बीच गुप्त वार्ताएं हो रही थीं। इन चर्चाओं का उद्देश्य कश्मीर की विभाजन रेखा (Partition Line) तय करना था, जिसे आगे चलकर लाइन ऑफ कंट्रोल (LOC) का रूप दिया जा सकता था।
किशनगंगा घाटी देने की बात आई
पत्र के मुताबिक यह खुलासा तब हुआ जब भुट्टो ने यूके उच्चायुक्त जेम्स और एक अन्य राजनयिक को अचानक दोपहर में बुलाकर बताया कि सिंह ने भारत सरकार की ओर से एक "शांति और सहयोग की रेखा" का प्रस्ताव रखा है। यह रेखा मौजूदा सीज़फायर लाइन के करीब थी लेकिन कुछ बदलावों के साथ। उदाहरण के लिए, किशनगंगा घाटी का बड़ा हिस्सा पाकिस्तान को देने की बात थी और बदले में भारत को कारगिल के आसपास कुछ क्षेत्रों में रियायतें मिलतीं।
भुट्टो ने भारत के प्रस्ताव पर गहरी आपत्ति जताई और चार प्रमुख कारण गिनाए:
1. आत्म-निर्णय का अधिकार नदारद था।
2. चिनाब नदी क्षेत्र की अनदेखी की गई।
3. कश्मीर घाटी, जो विवाद का केंद्र है, का कोई उल्लेख नहीं था।
4. लद्दाख का नाम शामिल करना भी आपत्तिजनक माना गया।
भुट्टो के प्रस्ताव का भी है जिक्र
भुट्टो ने पाकिस्तान की ओर से जो प्रस्ताव पेश किया, उसमें कश्मीर को स्पष्ट रूप से विभाजित करने की बात थी। इस प्रस्ताव में देग नदी से शुरू होकर उधमपुर, तवी, भद्रवाह, और अंत में चिनाब नदी होते हुए राज्य की सीमा तक रेखा खींचने का खाका था।
भारत पर अमेरिका और ब्रिटेन का दबाव था
गौरतलब है कि यह बातचीत ऐसे समय हो रही थी जब भारत पर अमेरिका और ब्रिटेन का मध्यस्थ दबाव था, और
इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार कई नीतिगत मोर्चों पर नरमी दिखा रही थी। आज जब डॉ. निशिकांत दुबे जैसे सांसद इस प्रकार के दस्तावेज़ सामने ला रहे हैं, तब यह सवाल फिर उठ रहा है:
क्या कांग्रेस ने कश्मीर सौंपने का मन बना लिया था?