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Mahakumbh 2025: महाकुंभ से जुड़े रोचक तथ्‍य जानें, ऐसे बनते हैं नागा और अघोरी

महाकुंभ मात्र कोई मेला नहीं है। यह पूरी एक दुनिया है। आस्था की दुनिया। परंपरा की दुनिया। सनानत संस्कृति का महासंगम। सनातनियों के लिए महाकुंभ आस्था का एक पवित्र अहसास है।

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Dhiraj Dhillon
Mahakumbh

Mahakumbh Photograph: (Google)

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महाकुंभ नगर, वाईबीएन नेटवर्क।

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महाकुंभ मात्र कोई मेला नहीं है। यह पूरी एक दुनिया है। आस्था की दुनिया। परंपरा की दुनिया। सनानत संस्कृति का महासंगम। सनातनियों के लिए महाकुंभ कई पीढि़याें बाद मिलने वाला आस्था का यह एक पवित्र अहसास है। प्रयागराज में त्रिवेणी संगम पर हर 12 साल में कुंभ का आयोजन होता है और कुंभों के बाद 144 साल में पूर्ण महाकुंभ। प्राचीन ग्रंथों में महाकुंभ को लेकर स्‍पष्‍ट जानकारी तो नहीं है लेकिन इतना जान लें कि ऋग्वेद में कुंभ और अथर्वेद में पूर्ण कुंभ का उल्‍लेख है। आजाद भारत में प्रयागराज में पहला कुंभ प्रयागराज में हुआ था, उस साल तीन फरवरी को मौनी अमावस्या के मौके बड़ी संख्‍या में श्रद्धालु संगम तट पहुंचे थे। माघ के महीने में गंगा स्नान का महत्व आदिकाल से रहा है।  

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नागा और अघोरी साधुओं के बारे में जानिए

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नागा साधुओं के बारे में सुनते तो सब हैं लेकिन उनके बारे में ज्‍यादा कुछ नहीं जानते। दरअसल सनातन धर्म में नागा साधुओं को धर्म का रक्षक माना गया है। अघोरी साधु अपनी अद्भुत और रहस्यमयी शक्तियों के लिए प्रसिद्ध हैं। लेकिन अघोरी और नागा साधुओं के तप, जीवनशैली और आहार सब कुछ अलग होता है। दोनों में एक बात कॉमन है। वह है कि दोनों शिव के उपासक होते हैं। कड़े तप के बाद नागा और अघोरी साधु बनते हैं, इसकी पूरी प्रक्रिया है।

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जानिए कैसे बनते हैं नागा और अघोरी

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नागा साधुओं और अघोरी साधु बनने के लिए 12 वर्षों का कठोर तप करना पड़ता है। अघोरी साधुओं का पूरा तप श्मशान में होता है। पूरे 12 साल तक श्‍मशान में ही रहना होता है। नागा साधु शरीर पर धुनी या भस्म लगाकर रहते हैं और कड़ाके की ठंड में भी पूरी तरह नग्‍न रहते हैं। वह कठोर तप और शारीरिक शक्ति के लिए जाने जाते हैं और अपने आपको भगवान का दूत मानते हैं। नागा संन्यासी बनने की प्रक्रिया बहुत लंबी और कठिन है। अखाड़ों द्वारा नागा संन्यासी बनाए जाते हैं। नागा साधु बनने की प्रक्रिया में छह साल ज्‍यादा महत्वपूर्ण होते हैं। इस दौरान वह नागा साधु बनने के लिए जरूरी जानकारी हासिल करते हैं। इस अवधि में वह सिर्फ लंगोट पहनते हैं। वह कुंभ मेले में प्रण लेने के बाद लंगोट को भी त्याग देते हैं और पूरा जीवन वस्‍त्र धारण नहीं करते हैं और न ही बिस्तर पर सोते हैं।

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अखाड़ों के बारे में भी जानिए

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आदिगुरु शंकराचार्य ने आठवीं शताब्दी में सनातन धर्म की रक्षा के लिए अखाड़ों की स्थापना की थी। भारत में मुकुल 13 अखाड़े हैं। हर अखाडे़ की अपनी मान्यता और पंरपरा होती है और उसी के अनुसार नागा साधु को दीक्षा दी जाती है। कई अखाड़ों में नागा साधुओं को भुट्टो के नाम से भी बुलाया जाता है। 

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