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Children Victims of Aggression: खुशहाल बचपन के लिए एकजुटता और सुरक्षा सबसे जरूरी

दुनियाभर में बच्चे हिंसा, उत्पीड़न और शोषण का शिकार बन रहे हैं।  बच्चों के प्रति होने वाली हिंसा उनसे उनका बचपन छीन लेती है। ऐसे में जरूरी है कि हम सभी मिलकर बच्चों के सुरक्षित और खुशहाल जीवन दें।

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Mukesh Pandit
children victims of Aggression

आक्रामकता के शिकार बच्चों का अंतरराष्ट्रीय दिवस प्रत्येक वर्ष 4 जून को मनाया जाता है। यह दिन उन बच्चों को समर्पित है जो युद्ध, हिंसा, और शोषण का शिकार होते हैं। इसका महत्व इस बात में निहित है कि यह वैश्विक स्तर पर बच्चों के प्रति होने वाली हिंसा के खिलाफ जागरूकता बढ़ाता है और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए सरकारों, संगठनों, और समुदायों को प्रेरित करता है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 19 अगस्त 1982 को इस दिवस की स्थापना की थी, जिसका उद्देश्य 1982 के लेबनान-इजरायल युद्ध में प्रभावित फलस्तीनी और लेबनानी बच्चों की पीड़ा को उजागर करना था।

एकजुट होने का अवसर है यह दिवस

आक्रामकता के शिकार मासूम बच्चों का अंतरराष्ट्रीय दिवस 2025 हमें बच्चों के प्रति होने वाली हिंसा के खिलाफ एकजुट होने का अवसर देता है। भारत में बच्चों की स्थिति में सुधार के लिए कानूनों का प्रभावी कार्यान्वयन, सामाजिक जागरूकता, और सामुदायिक सहयोग आवश्यक है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि बच्चों का बचपन सुरक्षित और खुशहाल होना चाहिए, और यह हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है कि हम उनके अधिकारों की रक्षा करें।

बच्चे ही समाज का सबसे कमजोर वर्ग

यह दिन हमें याद दिलाता है कि बच्चे समाज का सबसे कमजोर वर्ग हैं, जो सशस्त्र संघर्षों, घरेलू हिंसा, यौन शोषण, और मानव तस्करी जैसी आक्रामकता का शिकार हो सकते हैं। यह बच्चों के शारीरिक, मानसिक, और भावनात्मक स्वास्थ्य पर दीर्घकालिक प्रभाव डालता है, जिससे उनकी शिक्षा, सामाजिक विकास, और भविष्य की संभावनाएँ प्रभावित होती हैं। यह दिवस बच्चों के अधिकारों को बढ़ावा देने और हिंसा से उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर बल देता है।

जागरूकता बढ़ाना आवश्यक

यह दिन युद्ध, हिंसा, और शोषण के कारण बच्चों द्वारा सहन की जाने वाली पीड़ा के प्रति वैश्विक जागरूकता फैलाने का प्रयास करता है। यह समाज को बच्चों के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझाने में मदद करता है।

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बाल अधिकारों की रक्षा: यह संयुक्त राष्ट्र के संकल्प को पुनः पुष्ट करता है कि बच्चों को शिक्षा, स्वास्थ्य, और सुरक्षित वातावरण का अधिकार है। यह सरकारों को बाल संरक्षण नीतियों को लागू करने के लिए प्रेरित करता है।

हिंसा की रोकथाम: हिंसा के मूल कारणों, जैसे गरीबी, अशिक्षा, और सामाजिक असमानता, को संबोधित करने के लिए यह दिन समुदायों और नीति निर्माताओं को प्रोत्साहित करता है।  यह उन बच्चों को सम्मान देता है जो हिंसा और युद्ध के शिकार हुए हैं, और उनके लिए बेहतर भविष्य की दिशा में काम करने का संकल्प लेता है।यह विभिन्न देशों, गैर-सरकारी संगठनों, और सामाजिक कार्यकर्ताओं को एकजुट होकर बच्चों के खिलाफ हिंसा को समाप्त करने के लिए कार्य करने का अवसर प्रदान करता है।

भारत में आक्रामकता के शिकार बच्चों की स्थिति

भारत में बच्चों के खिलाफ हिंसा एक गंभीर समस्या है, जो सामाजिक, आर्थिक, और सांस्कृतिक कारकों से प्रभावित है। यूनिसेफ के अनुसार, दक्षिण एशिया में विश्व के 64% बच्चे गंभीर हिंसा का सामना करते हैं, और भारत इसका एक बड़ा हिस्सा है। बच्चों को घरेलू हिंसा, यौन शोषण, बाल श्रम, तस्करी, और बाल विवाह जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। भारत में तीन में से एक महिला घरेलू हिंसा का शिकार होती है, जिसका असर उनके बच्चों पर पड़ता है। ऐसे बच्चे चिंता, अवसाद, और आत्महत्या की प्रवृत्ति जैसी मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करते हैं।

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यौन शोषण का शिकार बच्चे 

यौन हिंसा के मामले अक्सर रिपोर्ट नहीं किए जाते, जिससे वास्तविक आँकड़े कम दिखाई देते हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार, 2023 में 8414 नाबालिग बच्चियों के खिलाफ हिंसा के मामले दर्ज किए गए। गरीबी और अशिक्षा के कारण कई बच्चे बाल श्रम और मानव तस्करी का शिकार होते हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 24 और बाल श्रम निषेध अधिनियम 1986 के बावजूद, यह समस्या बनी हुई है।  हालांकि भारत में बड़े पैमाने पर सशस्त्र संघर्ष कम हैं, फिर भी कुछ क्षेत्रों में उग्रवाद और हिंसा बच्चों को प्रभावित करती है।

कानून में बच्चों के अधिकार

भारत में बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए कई कानून और नीतियां हैं: मसलन,  भारतीय संविधान के अनुच्छेद 24 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को खतरनाक उद्योगों में काम करने से रोकता है, जबकि अनुच्छेद 39(e) और 39(f) बच्चों को स्वस्थ और सम्मानजनक विकास के अवसर प्रदान करने की बात करता है।
बाल श्रम (निषेध और नियमन) अधिनियम, 1986: यह खतरनाक उद्योगों में बच्चों की नियुक्ति पर प्रतिबंध लगाता है।
पॉक्सो अधिनियम, 2012: यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम यौन शोषण और दुर्व्यवहार के खिलाफ सख्त प्रावधान प्रदान करता है
शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009: यह 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा सुनिश्चित करता है।
राष्ट्रीय बाल नीति, 2013: यह बच्चों के समग्र विकास और संरक्षण पर केंद्रित है।
हालांकि, इन कानूनों के कार्यान्वयन में चुनौतियाँ हैं, जैसे मानव संसाधन की कमी और सामाजिक जागरूकता का अभाव।

बच्चों को हिंसा से बचाने के तरीके

बच्चों को हिंसा से बचाने के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाए जा सकते हैं। स्कूलों, समुदायों, और मीडिया के माध्यम से बच्चों के अधिकारों और हिंसा के प्रभावों के बारे में जागरूकता बढ़ाना। यूनिसेफ जैसे संगठन इस दिशा में काम कर रहे हैं। माता-पिता, शिक्षकों, और कानून प्रवर्तन अधिकारियों को बाल संरक्षण के लिए प्रशिक्षित करना। कानूनी कार्यवाही को मजबूत करना: हिंसा के मामलों की त्वरित जाँच और दोषियों को सजा सुनिश्चित करना।
सुरक्षित वातावरण: स्कूलों और घरों में बच्चों के लिए सुरक्षित स्थान बनाना, जैसे यूनिसेफ का "आरम्भ" कार्यक्रम जो बच्चों के प्रारंभिक विकास पर केंद्रित है
मनोवैज्ञानिक समर्थन: हिंसा के शिकार बच्चों को परामर्श और पुनर्वास सेवाएँ प्रदान करना।
सामाजिक-आर्थिक सुधार: गरीबी और अशिक्षा को कम करने के लिए सरकारी योजनाओं को लागू करना, ताकि बच्चे बाल श्रम और तस्करी से बच सकें।

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