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TMC सरकार का मुस्लिम आरक्षण केवल सियासी शिगूफा, Amit Malviya बोले- संविधान और कोर्ट से ऊपर हैं क्या ममता

कलकत्ता हाईकोर्ट के 2024 के फैसले के बावजूद टीएमसी सरकार ने बिना प्रक्रिया अपनाए मुस्लिमों को OBC आरक्षण देने की कोशिश की। ममता बनर्जी की यह रणनीति अब सियासी साजिश मानी जा रही है।

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Dhiraj Dhillon
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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क। पश्चिम बंगाल में टीएमसी सरकार और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर यह सवाल उठने लगे हैं कि क्या उन्होंने खुद को भारतीय कानून से ऊपर समझ लिया है या मुस्लिम समुदाय को जानबूझकर गुमराह करने की कोशिश की है? 2024 में दिए गए एक स्पष्ट निर्णय में कलकत्ता हाईकोर्ट ने कहा था कि यदि ओबीसी आरक्षण को दोबारा लागू करना है, तो सरकार को निम्नलिखित प्रक्रियाएं अपनानी होंगी, लेकिन इस पूरी प्रक्रिया की अनदेखी कर सरकार ने हाईकोर्ट के उस फैसले का नजरअंदाज करने का काम किया है।

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हाईकोर्ट ने लगाई थीं चार शर्तें, एक का भी पालन नहीं

भाजपा के आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने एक्स पर एक पोस्ट शेयर कर हाईकोर्ट के आदेश की कॉपी को हाईलाइट करते हुए अटैच किया है। अमित मालवीय ने कहा है कि ‌कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश के मुताबिक पश्चिम बंगाल सरकार को ओबीसी आरक्षण दोबारा लागू करने के लिए चार शर्तों को पूरा करना था, लेकिन एक भी शर्त पूरा न करने वाली सरकार वोटों की राजनीति के लिए जनता को भ्रमित कर रही है।

ममता सरकार को इन चार शर्तों का करना था पालन

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Amit Malviya के मुताबिक कलकत्ता हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि ओबीसी आरक्षण दोबारा लागू करने की सबसे पहली शर्त- जनता के बीच सहमति बनाने की होगी। दूसरी शर्त- यह स्पष्ट करना कि किन वर्गों को ओबीसी में शामिल किया गया और क्यों? तीसरी शर्त- विधिवत अधिसूचना जारी करना और चौथी शर्त- पूरी सूची विधानसभा में पेश करना और यह बताना कि कौन शामिल/वंचित किया गया और किस आधार पर। अमित मालवीय ने कहा है- हैरानी की बात यह है कि ममता सरकार ने इनमें से एक भी शर्त को पूरा नहीं किया। आखिर क्यों?

क्या टीएमसी सरकार कोर्ट की अनदेखी कर सकती है?

अमित मालवीय ने कहा- क्या टीएमसी सरकार को लगा कि वह भारतीय संविधान और न्यायपालिका की अनदेखी कर सकती है? या यह जानबूझकर मुस्लिम समुदाय को आरक्षण का लालच देकर भ्रमित करने की रणनीति थी? कल आए फैसले में अदालत ने साफ तौर पर कहा कि सरकार ने "जल्दबाजी" में आरक्षण लागू करने की कोशिश की, बिना तय प्रक्रियाओं का पालन किए। आखिर इतनी जल्दबाजी की वजह क्या थी?
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सबसे बड़ा सवाल ?

सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या ममता बनर्जी को यह नहीं पता था कि प्रस्तावित नए ओबीसी आरक्षण का 88 प्रतिशत हिस्सा मुस्लिमों को देना संविधान की भावना के खिलाफ है? या वह जानबूझकर ऐसा कर रही थीं, यह जानते हुए कि अदालत इसका संज्ञान लेगी? उन्होंने कहा है- अब यह स्पष्ट हो गया है कि यह एक सोची-समझी रणनीति थी, जिसका मकसद मुस्लिम समुदाय में असुरक्षा की भावना पैदा करना और वोटबैंक को साधना था, जो पूरी तरह असंवैधानिक और राजनीतिक रूप से अवसरवादी कदम है।
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