नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क।
मणिपुर पिछले कई महीनों से जातीय हिंसा की चपेट में है। कुकी और मैतेई समुदायों के बीच संघर्ष ने राज्य की शांति को बुरी तरह प्रभावित किया है। इस बीच, मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के इस्तीफे की चर्चा ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है। सवाल यह उठता है कि क्या उनका इस्तीफा मणिपुर में हिंसा की आग को बुझा पाएगा या यह महज एक राजनीतिक चाल साबित होगी?
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हिंसा की जड़ें और सरकार की भूमिका
मणिपुर में हिंसा की शुरुआत मई 2023 में हुई जब मैतेई समुदाय ने अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा दिए जाने की मांग उठाई। इस फैसले का कुकी समुदाय ने विरोध किया, जिसके बाद राज्य में दंगे भड़क उठे। सरकार द्वारा शांति बहाल करने के प्रयासों के बावजूद स्थिति लगातार बिगड़ती गई।
मुख्यमंत्री बीरेन सिंह पर एकतरफा कार्रवाई करने और कुकी समुदाय की चिंताओं को नजरअंदाज करने का आरोप लगाया गया है। विपक्षी दलों और सामाजिक संगठनों का कहना है कि सरकार के ढीले रवैये के कारण हिंसा पर काबू नहीं पाया जा सका।
इस्तीफ़े का असर
बीरेन सिंह के इस्तीफ़े की संभावना पर राजनीतिक विश्लेषकों की अलग-अलग राय है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि अगर वे इस्तीफ़ा देते हैं, तो इससे स्थिति को शांत करने में मदद मिल सकती है।
1. नए नेतृत्व की संभावना: अगर राज्य को नया नेतृत्व मिलता है तो इससे हिंसा से प्रभावित सभी समुदायों को यह संदेश जाएगा कि सरकार इस मुद्दे को निष्पक्ष तरीके से सुलझाना चाहती है।
2. सामुदायिक संवाद का रास्ता: नए मुख्यमंत्री को दोनों समुदायों के नेताओं को बातचीत के लिए आमंत्रित करके समाधान निकालने की कोशिश करनी होगी।
3. हिंसा में कमी: अगर प्रशासन इस्तीफे के बाद कानून-व्यवस्था को और सख्ती से लागू करता है तो हिंसा पर काबू पाया जा सकता है।
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क्या इस्तीफा ही एकमात्र समाधान था?
हालांकि, यह भी महत्वपूर्ण है कि सिर्फ मुख्यमंत्री बदलने से स्थिति नहीं सुधरेगी। हिंसा की आग को बुझाने के लिए केंद्र सरकार को भी अधिक सक्रिय भूमिका निभानी होगी।
- संघीय हस्तक्षेप: केंद्र सरकार को इस मामले में प्रभावी हस्तक्षेप करना चाहिए और सुरक्षा बलों को मजबूत करना चाहिए।
- स्थायी समाधान खोजना: कुकी और मीतेई समुदायों के बीच बातचीत करके स्थायी समाधान खोजना बहुत महत्वपूर्ण है।
- संवैधानिक संरक्षण: हिंसा को बढ़ावा देने वाले मुद्दों का कानूनी और संवैधानिक समाधान खोजना होगा।
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