/young-bharat-news/media/media_files/2025/04/28/1Wouw5FvRxmlV0n51osW.jpg)
नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क। बिहार में विधानसभा को लेकर होने जा रहे चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के लिए बेहद अहम साबित होने जा रहे हैं। बीजेपी के लिए जरूरी है कि वो अपने दम पर बिहार में सरकार बनाए। बिहार में सरकार चाहें इंडिया गठबंधन की बने या फिर बीजेपी को नीतीश कुमार की बैसाखी पर चलना पड़े, दोनों ही तरह के हालात पार्टी के लिए मुफीद नहीं होंगे। खास बात है कि बिहार नतीजे की गूंज यूपी के चुनावों तक सुनाई देगी। बिहार चुनावों से पहले बीजेपी को नया अध्यक्ष नहीं मिल पाता है तो नतीजे की आड़ में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) मोदी-शाह की जोड़ी पर शिकंजा कसने का मौका नहीं चूकेगा। वैसा भी बिहार चुनाव कई अन्य नजरियों से भी काफी अहम है। इसके नतीजे के दूरगामी परिणाम केंद्र सरकार के भविष्य को भी तय करने वाले साबित हो सकते हैं।
बहुमत से दूर है नरेंद्र मोदी की सरकार
2024 के लोकसभा चुनाव के नतीजे बीजेपी के लिए हताश करने वाले साबित हुए। कहने को तो एनडीए ने 272 के जादुई आंकड़े से ज्यादा 294 सीटें हासिल कीं और नरेंद्र मोदी फिर से देश के प्रधानमंत्री बन गए। अलबत्ता उनकी ताकत पहले से काफी कम होती दिखी, क्योंकि बीजेपी बमुश्किल 240 तक पहुंच पाई। सरकार की चाभी नीतीश कुमार, आंध्र प्रदेश के सीएम चंद्रबाबू नायडू, एलजेपी सुप्रीमो चिराग पासवान और शिवसेना के सर्वेसर्वा एकनाथ शिंदे के हाथों में जाती दिखी। 2024 चुनाव में नायडू को 16, नीतीश को 12, शिंदे को 7 और चिराग पासवान को 5 सीटें हासिल हुईं। हालांकि नायडू और नीतीश जब तक बीजेपी के साथ हैं तब तक सरकार को कोई खतरा नहीं है। लेकिन इनमें से एक भी दाएं बाएं हुआ तो सरकार की सेहत पर असर पड़ना स्वाभाविक है। क्योंकि तब शिंदे और चिराग की कीमत काफी बढ़ जाएगी। शिंदे को जिस तरह से सीएम की कुर्सी से हटा दिया गया और चिराग के साथ जो सलूक उनके पिता की मौत के बाद हुआ, दोनों इसका बदला लेने से बाज नहीं आएंगे। चिराग सरकार के कुछ फैसलों की तीखी आलोचना कर चुके हैं तो शिंदे इस कदर नाराज चल रहे हैं कि सीएम देवेंद्र फडणवीस को निशाना बनाने का वो कोई मौका नहीं चूकते।
नायडू और नीतीश को नहीं माना जा सकता भरोसेमंद
नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू को भारतीय राजनीति में कभी विश्वस्त दोस्त नहीं माना गया है। दोनों अपनी सुविधा के हिसाब से पाला बदल करते रहते हैं। नीतीश पहले भी लालू के साथ जाकर बीजेपी को चौंका चुके हैं। उधर नायडू के पहले बीजेपी वाईएसआर के साथ खड़ी थी। नायडू और नीतीश भी जानते हैं कि बीजेपी अपनी सुविधा के हिसाब से राजनीति करती है। खासकर सहयोगी दलों को खत्म करने के मामले में वो काफी बदनाम है। हालिया समय में हरियाणा में जो हाल जेजपी का हुआ है या फिर महाराष्ट्र में जो सलूक एकनाथ शिंदे के साथ किया गया है उससे साफ है कि बीजेपी ने अपने रवैये में रत्ती भर भी बदलाव नहीं किया है। इससे पहले बीजेपी ने महबूबा मुफ्ती, उद्धव ठाकरे, वाईएसआर और चिराग पासवान के साथ भी इसी तरह का बर्ताव किया था। पिता रामविलास पासवान के निधन के बाद उनके चाचा पशुपति नाथ पारस को ना केवल केंद्रीय मंत्री बना दिया गया। बल्कि सरकार के इशारे पर चलने वाले चुनाव आयोग ने पार्टी पर भी उनका कब्जा कराने की कोशिश करी।
आईए समझते हैं बिहार में क्या है सीटों का गणित
बिहार में कुल 243 सीट हैं। बहुमत का आंकड़ा 138 का है। 2020 चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी का तमगा लालू प्रसाद यादव की आरजेडी के मिला था। उनके पास फिलहाल 75 विधायक हैं जबकि भाजपा 74 के साथ नंबर दो की पार्टी है। नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड को 43 और कांग्रेस को 19 सीटों पर जीत मिली थी। नीतीश कुमार ने बीजेपी के सहयोग से सरकार बना ली। फिलहाल मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नीतीश ही काबिज हैं। 2015 की बात की जाए तो लालू प्रसाद यादव की आरजेडी 80 सीटों पर जीती थी। तब भाजपा को 53 और नीतीश कुमार को 71 सीटें मिली थीं। कांग्रेस के टिकट से उस दौरान 27 नेता विधानसभा तक पहुंचे थे। बिहार के समीकरणों से साफ है कि बीजेपी को विधानसभा चुनाव में 138 या उससे ज्यादा सीटें जीतनी होंगी। तभी वो सरकार बना सकती है। नहीं तो उसे नीतीश को ही सीएम बनाना होगा। 2015 के चुनाव के बाद नीतीश कुमार ने जिस तरह से पाला बदलकर लालू यादव का दामन थाम लिया वो बीजेपी उससे अच्छे से वाकिफ है। उसे पता है कि नीतीश अपनी सुविधा के हिसाब से पाला बदलने में माहिर हैं। उनकी मनमानी पर अंकुश लगाने के लिए बीजेपी को किसी भी तरह से बहुमत का आंकड़ा छूना ही होगा।
भाजपा की कठपुतली नहीं बनना चाहेंगे नीतीश कुमार
बिहार के मौजूदा मुख्यमंत्री यूं तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सार्वजनिक मंच पर कह चुके हैं कि अब कहीं नहीं जाएंगे। पहले गलती हो गई थी। लेकिन बीजेपी को पता है कि नीतीश पाला बदलने में पल भर की देर नहीं लगाते। इंडिया गठबंधन को खड़ा करने में उनका अहम योगदान था। वो बीजेपी और नरेंद्र मोदी को किस कदर नापसंद करते हैं इसकी बानगी उनके उस बयान से समझी जा सकती है जो इंडिया बनने से पहले का था। उन्होंने कहा था कि जो 2014 में बन गए थे वो 2024 में नहीं आ पाएंगे। हालांकि उसके बाद राजनीति ने करवट ली और नीतीश फिर से बीजेपी के पाले में लौट आए। लेकिन वो फिर से कब पलटी मार दें इसकी कोई गारंटी नहीं है।
भाजपा के भीतर भी खतरा पहले से ज्यादा तीखा
2024 के चुनावों से पहले नितिन गडकरी अक्सर मोदी-शाह की आलोचना करते देखे जाते थे। राजनाथ सिंह को भी असंतुष्ट खेमे का ही माना जाता है। अपने दम रपर बीजेपी बहुमत से दूर जाती दिखी तो शिवराज सिंह चौहान भी इसी खेमे में शामिल होते दिखे। उनके बेटे ने खुलेआम मोदी-शाह पर तंज कसते हुए कहा कि जो खुद को सबसे बड़ा नेता समझते हैं वो ये बात जान लें कि उनके पापा देश में सबसे ज्यादा मतों से जीतकर लोकसभा पहुंचे हैं। वो उनके बड़े नेता हैं। कहने की जरूरत नहीं कि बिहार में नतीजे उलट होते ही बीजेपी के भीतर का असंतुष्ट खेमा अपनी आवाज को बुलंद करने का मौका नहीं छोड़ेगा और इसका सीधा असर मोदी-शाह पर ही पड़ेगा।