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'नरेंद्र जी सरेंडर' को लेकर भाजपा-कांग्रेस में छिड़ा संग्राम

भारत की राजनीति में नारे का इतिहास रहा है। इंदिरा गांधी के गरीबी हटाओ से लेकर हर छोटे-बड़े दलों नेताओं ने नारे दिए। वर्तमान में नारों की शक्‍ल बदल गई और अब व्‍यक्तिगत लांछन ने उसकी जगह ले ली है।

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Narendra Aniket
gaurav bhatia VS Rahul gandhi
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नई दिल्‍ली, वाईबीएन डेस्‍क। कांग्रेस सांसद और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी की मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर की गई टिप्‍पणी को लेकर मचे बवंडर ने अब तूफान का रूप ले लिया है। भाजपा और कांग्रेस के बीच छिड़े संग्राम में दोनों पार्टियों के नेता एक दूसरे के नेता को निशाने पर लेकर नीचा दिखाने में जुटे हैं। लेकिन इससे इतर नारे, वादे और आरोप-प्रत्‍यारोप पर टिके भारत से जैसे लोकतांत्रिक देश में राहुल की टिप्‍पणी और उसपर सफाई के अपने निहितार्थ हैं।

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प्रधानमंत्री के दिए नारे को लोगों ने सराहा था

ग्‍यारह साल पहले सत्‍ता में आने से पहले प्रधानमंत्री भी कई नारे दिए और उसे जनमानस ने सराहा, स्‍वीकार था। स्‍वयं को चौकीदार बताया और भ्रष्‍टाचार पर प्रहार किया था। पाकिस्‍तान को निशाने पर लेते हुए उन्‍होंने खुद को 56 इंच का सीना वाला कहा। कांग्रेस में नेपथ्‍य में जा चुके नेता मणिशंकर अय्यर द्वारा कथित रूप से नीच कहे जाने के बाद प्रधानमंत्री स्‍वयं को पिछड़ा और वंचित बता एक समुदाय विशेष की सहानुभूति लूट ली थी। 

अभी तक के कार्यकाल में राहुल और सोनिया रहे हैं निशाने पर

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सत्‍ता में आने के बाद प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा ने कांग्रेस और उसके शीर्षस्‍थ नेताओं राहुल एवं सोनिया को निशाना बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। राहुल को शहजादा, युवराज कहा तो सोनिया को उनके इतालवी मूल को मुद्दा बनाने से बाज नहीं आए। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अगुआई में चली यूपीए सरकार को रिमोट कंट्रोल से चलने वाली सरकार कहकर भी सोनिया गांधी को निशाने पर लिया गया।

अल्‍पमत में आई भाजपा तो सीन बदल गया

तीसरी बार बहुमत से पीछे रह गई भाजपा की वर्तमान सरकार छोटी पार्टियों की बेयरिंग पर टिकी है। वर्तमान संसद में कांग्रेस विपक्षी पार्टी का दर्जा हासिल करने में कामयाब हुई है। ऐसे में नेता प्रतिपक्ष के रूप में राहुल का आक्रामक होना स्‍वाभाविक है। मोदी की नारेबाजी और तंज के उत्‍तर में राहुल पहले भी टिप्‍पणियां करते रहे हैं उनकी हर बात को जनता ने भाव नहीं दिया था। राहुल ने मोदी सूट-बूट सरकार, अदाणी-अंबानी की सरकार, चौकीदार चोर है के नारे दिए थे। लेकिन इस बार जिस अंदाज में उन्‍होंने 'नरेंद्र सरेंडर' कहा है उसका राजनीतिक निहितार्थ है।

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राहुल की टिप्‍पणी के राजनीतिक मायने क्‍या हैं

पहलगाम हमले के बाद ऑपरेशन सिंदूर की सफलता को विपक्ष ने दरकिनार नहीं किया, लेकिन जिस तरह से अचानक संघर्ष विराम हुआ और जिससे पहले कि मोदी देश को कुछ समझा पाते इसका सारा श्रेय अमेरिका के राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप ने लूट लिया। एक बार नहीं बार-बार ट्रंप यह कहते रहे कि उन्‍होंने भारत और पाकिस्‍तान को संघर्ष विराम करने पर राजी किया। भारत को कोई क्षति नहीं हुई यह दलील देने वाली सरकार और भाजपा को सीडीएस जनरल अनिल चौहान के साक्षात्‍कार ने बैकपुट पर ला खड़ा किया। पहले से ही सवाल दाग रही कांग्रेस के लिए यह दोनों स्थितियां अनुकूल हो गईं। इतना ही नहीं भाजपा के कुछ नेताओं के बड़बोलेपन ने सरकार और पार्टी के लिए किरकिरी पैदा कर दी। 

बिहार चुनाव में लाभ लेने में जुटी भाजपा की मुश्किलें बढ़ी

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इसी वर्ष बिहार में विधानसभा चुनाव कराए जाएंगे। पहलगाम हमले के बाद मोदी का बिहार दौरा इसी बात को लेकर सवालों के घेरे में रहा। ऐसा इसलिए हुआ क्‍योंकि लोकसभा चुनाव से ऐन पहले पुलवामा हमला हुआ था और उसके बाद हुए सर्जिकल स्‍ट्राइक को जिस जोरशोर से प्रचारित किया गया उसका लाभ भाजपा को मिला था। पिछले बिहार विधानसभा चुनाव से पहले लद्दाख में भारत-चीन की सेना आमने-सामने हुई और 20 से जयादा भारतीय सैनिक बलिदान हो गए थे। उल्‍लेखनीय है कि यहां बिहार बटालियन ही मोर्चे पर थी और उसका लाभ भाजपा को चुनाव में मिला था। इस बार जो कुछ भी हुआ है उसे लेकर सवाल उठ रहे हैं। ऑपरेशन सिंदूर की कार्रवाई के दौरान पाकिस्‍तानी गोलीबारी से जम्‍मू एवं कश्‍मीर के सीमावर्ती क्षेत्रों में करीब 25 नागरिकों की जान गई है। कांग्रेस के आक्रामक तेवर का निहितार्थ बिहार चुनाव है। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बिहार दौरे में पटना में हुए उनके रोड शो के प्रति लोगों की उदासीनता और नदारद भीड़ भावी तस्‍वीर रख रही है।

नारे में उलझे लोग कहीं परेशान तो नहीं

प्रधानमंत्री के नारे और वादे मीडिया की सुर्खियों में रहे हैं। किसान सम्‍मान निधि, कोरोना के बहाने खाद्य सुरक्षा के नाम पर गरीबों को दिया जा रहा खाद्यान्‍न भाजपा के लिए संजीवनी का काम करता आ रहा है। लेकिन मुफ्त पाने की उद्दाम अभिलाषा का यही विराम नहीं है। शेष मुद्दे भी होते हैं जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। मीडिया के एक पक्षीय रुख ने उसे जनमानस से काट दिया है और वैकल्पिक माध्‍यम ने इसकी जगह ले ली है। आलोचना करने वाले इन मंचों की लोकप्रियता यदि प्रभावी होती है तो सत्‍ता के सामने चुनौती नहीं संकट पैदा जो जाएगा।

'नरेंद्र सरेंडर' से डरी क्‍यों है भाजपा

भाजपा के करीब-करीब सभी नेताओं ने राहुल गांधी की टिप्‍पणी के विरोध में बिगुल फूंक रखा है। इसका कारण यह है कि भाजपा नेताओं को पता है कि नरेंद्र मोदी की छवि के सहारे ही उन्‍हें जीत मिल रही है। इस छवि में 56 इंच की छाती और राष्‍ट्रवाद प्रमुखता से शामिल हैं। यदि राहुल का नारा 'नरेंद्र सरेंडर' चल निकला तो प्रधानमंत्री छवि तार-तार हो जाएगी और भाजपा के लिए वोट जुटाना भारी पड़ेगा।

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