नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने जेल में बंद सांसद अब्दुल रशीद शेख उर्फ इंजीनियर रशीद को संसद की कार्यवाही में शामिल होने के लिए दो दिन की कस्टडी पैरोल दी और स्पष्ट किया कि इस राहत को अनुकरणीय नहीं माना चाहिए। न्यायमूर्ति विकास महाजन ने स्पष्ट किया कि यह आदेश इसलिए पारित किया गया कि रशीद के पास जमानत याचिका पर सुनवाई के लिए अदालत उपलब्ध न होने के कारण कोई अन्य उपाय नहीं था और इस राहत को अनुकरणीय नहीं माना जाना चाहिए। न्यायमूर्ति विकास महाजन ने कहा कि रशीद 11 और 13 फरवरी को संसद की कार्यवाही में शामिल हो सकते हैं।
कभी भी गिरफ्तार हो सकते हैं AAP विधायक Amatullah, क्राइम ब्रांच की रेड जारी
NIA कोर्ट में अगस्त 2014 से लंबित है मामला
न्यायमूर्ति महाजन ने 16 पृष्ठों के फैसले में कहा कि जेल में बंद सांसदों को संसद की कार्यवाही में शामिल होने का कोई वैधानिक अधिकार नहीं होने के मुद्दे पर कानून स्पष्ट है। न्यायाधीश ने कहा कि अदालत इस बात को नजरअंदाज नहीं कर सकती कि नियमित या अंतरिम जमानत के लिए उनकी याचिका अगस्त 2014 से एनआईए अदालत में लंबित है। न्यायालय ने कहा कि त्वरित सुनवाई सुनिश्चित किए बिना व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित करना भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुरूप नहीं है और समय पर न्याय प्रदान करना मानवाधिकार का हिस्सा है। रशीद पर जमानत के रूप में कुछ शर्तें लगाई गई हैं, जिनमें मोबाइल फोन का इस्तेमाल न करना और मीडिया को संबोधित न करना भी शामिल है।
यह भी पढ़ें: Delhi New CM: क्या नई दिल्ली सीट से फिर मिलेगा सीएम या फिर टूटेगी परंपरा?
संसद में सुरक्षा का दायित्व महासचिव पर होगा
कोर्ट ने कहा कि रशीद को लोकसभा ले जाया जाएगा और वापस लाया जाएगा तथा संसद के अंदर सुरक्षा का निर्णय लोकसभा महासचिव के परामर्श से लिया जाएगा। बारामूला के सांसद पर आतंकवाद के वित्तपोषण के मामले में मुकदमा चल रहा है। उन पर आरोप है कि उन्होंने जम्मू-कश्मीर में अलगाववादियों और आतंकवादी समूहों का वित्त पोषण किया। अदालत ने सात फरवरी को अभिरक्षा पैरोल पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था। रशीद ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर दावा किया कि पिछले वर्ष लोकसभा के लिए निर्वाचित होने के बाद राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) अदालत ने उनकी जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए उन्हें असमंजस में डाल दिया था क्योंकि यह विशेष एमपी/एमएलए अदालत नहीं थी और इस तरह उन्हें कोई राहत नहीं मिली।
यह भी पढ़ें: Delhi Election 2025: अमानतुल्लाह खान की बढ़ीं मुश्किलें, दर्ज हुई FIR
पैरोल के लिए पुलिस कस्टडी जरूरी
अंतरिम राहत के तौर पर उन्होंने अभिरक्षा पैरोल दिये जाने का अनुरोध किया। एनआईए की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा और अधिवक्ता अक्षय मलिक ने अभिरक्षा पैरोल दिये जाने का विरोध करते हुए कहा कि रशीद को संसद की कार्यवाही में शामिल होने का कोई निहित अधिकार नहीं है और उन्होंने राहत मांगते समय कोई 'विशिष्ट उद्देश्य' नहीं बताया है। लूथरा ने रशीद को संसद में प्रवेश की अनुमति दिए जाने पर सुरक्षा संबंधी चिंताओं को उजागर करते हुए कहा कि अभिरक्षा पैरोल के लिए पुलिस सुरक्षा की आवश्यकता होती है तथा परिसर में सशस्त्र कर्मियों पर प्रतिबंध के कारण जटिलताएं उत्पन्न होती हैं। उन्होंने कहा, अभिरक्षा में पैरोल किसी सांसद का निहित अधिकार नहीं है। उन्होंने इस मामले को उन मामलों से अलग बताया जहां अभिरक्षा में पैरोल व्यक्तिगत कारणों जैसे विवाह या शोक के लिए दी गई थी।
देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने के आरोप हैं
लूथरा ने दलील दी, उनके साथ सशस्त्र कर्मियों का होना जरूरी है। आप सशस्त्र कर्मियों को संसद में कैसे प्रवेश करा सकते हैं? हथियार लेकर कोई भी व्यक्ति प्रवेश नहीं कर सकता। मेरी आपत्ति का कोई मतलब नहीं है। वह एक अलग संस्था के मानदंडों के अधीन हैं। उन्होंने कहा, 'कुछ सुरक्षा संबंधी मुद्दे एनआईए के अधिकार क्षेत्र से बाहर हैं। अभिरक्षा में पैरोल किसी सांसद का अधिकार नहीं है। इसके विपरीत, वरिष्ठ अधिवक्ता एन हरिहरन ने दलील दी कि रशीद को संसद की कार्यवाही में शामिल होने की अनुमति दी जानी चाहिए, क्योंकि बजट सत्र के दौरान उनके निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व नहीं हो रहा है जबकि उनके राज्य को आवंटित धनराशि में 1,000 करोड़ रुपये की कमी हो गई है। उन्होंने सांसद पप्पू यादव से जुड़े एक पुराने मामले का जिक्र किया, जिन्हें 2009 में संसद सत्र में शामिल होने की अनुमति दी गई थी। रशीद को 2019 में धनशोधन के एक मामले में शामिल होने और देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने के आरोपों के बाद गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया गया था। उनका मामला जम्मू कश्मीर में अलगाववादी गतिविधियों को वित्तपोषित करने से जुड़ा है।