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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क। Congress General Secretary Jairam Ramesh ने Rajasthan के सरिस्का टाइगर रिजर्व को लेकर सरकार की नीतियों पर सवाल उठाए हैं। अपनी बातों के समर्थन में उन्होंने टेलीग्राफ में छपा एक आर्टिकल भी एक्स पर अपलोड किया है। कांग्रेस नेता का कहना है कि सरिस्का टाइगर रिजर्व में बाघों की ऐतिहासिक वापसी हुई है लेकिन अब खनन से जंगल का भविष्य फिर खतरे में है। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने X पर लिखा है कि राजस्थान के अलवर जिले के पास स्थित सरिस्का टाइगर रिजर्व एक समय देशभर में चर्चा का विषय बन गया था, जब दिसंबर 2004 तक यहां बाघों की संख्या शून्य हो गई थी। इसका कारण था अवैध शिकार का संगठित नेटवर्क, जिसने इस संरक्षित वन क्षेत्र से बाघों का नामो-निशान तक मिटा दिया।
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मनमोहन सरकार के प्रयासों के बारे में बताया
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने बताया- इस गंभीर संकट के बाद अप्रैल 2005 में 'टाइगर टास्क फोर्स' का गठन किया गया। मई 2005 में तत्कालीन PM Dr. Manmohan Singh ने रणथंभौर में देशभर के वन्यजीव अधिकारियों के साथ एक अहम बैठक की, जिसने भारत में बाघ संरक्षण को नई दिशा दी।इसके परिणामस्वरूप दिसंबर 2005 में नेशनल टाइगर कंजरवेशन अथॉरिटी (NTCA) और जून 2007 में वाइल्डलाइफ क्राइम कंट्रोल ब्यूरो का गठन हुआ। इसके बाद पन्ना और सरिस्का टाइगर रिजर्व में बाघों को दोबारा बसाने का कार्य आरंभ हुआ। हालांकि शुरुआत में कई विशेषज्ञों ने इस प्रयास पर सवाल उठाए थे, लेकिन आज सरिस्का में 48 बाघों की उपस्थिति बताती है कि यह प्रयास सफल रहा।
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अब बाघों के घर पर मंडरा रहा खनन का खतरा
जयराम रमेश ने कहा है कि जहां एक ओर सरिस्का की यह वापसी संरक्षण की मिसाल बनी, वहीं अब सरिस्का टाइगर रिजर्व की सीमा को फिर से निर्धारित करने की योजना बाघों के लिए खतरा बनती दिख रही है। प्रस्ताव के अनुसार, रिजर्व के 48.39 वर्ग किमी क्षेत्र को "मानव-प्रभावित क्षेत्र" बताकर CTH (Critical Tiger Habitat) से हटाया जा सकता है। इसके बदले 90.91 वर्ग किमी क्षेत्र को बफर जोन में जोड़ने की बात की जा रही है।इस बदलाव से 50 से अधिक बंद खनन इकाइयों को फिर से संचालन की अनुमति मिल सकती है, जिनमें संगमरमर, डोलोमाइट, चूना पत्थर और मेसोनिक पत्थर की खदानें शामिल हैं।
"बाघों का रहवास फिर से होगा खंडित"
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कांग्रेस नेता ने कहा- वन्यजीव विशेषज्ञों के अनुसार, यह बदलाव बाघों की पारिस्थितिकी के लिए घातक साबित हो सकता है। इन पहाड़ी क्षेत्रों को "बेकार" मानना एक गंभीर भूल है, क्योंकि यह बाघों और अन्य वन्यजीवों के लिए महत्वपूर्ण कॉरिडोर और मौसमी आश्रय हैं। अगर इन क्षेत्रों को CTH से हटाकर बफर जोन में शामिल कर दिया गया, तो बाघों की आवाजाही बाधित होगी, जो पहले से ही सीमित और अलग-थलग आबादी के लिए घातक है।
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राजनीतिक सवाल और सुप्रीम कोर्ट की भूमिका
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जयराम रमेश ने कहा है कि केंद्रीय पर्यावरण मंत्री और राजस्थान के पर्यावरण मंत्री, दोनों ही अलवर से आते हैं। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या डबल इंजन सरकार खनन कंपनियों को लाभ पहुंचाने के लिए बाघों की सुरक्षा से समझौता कर रही है?सुप्रीम कोर्ट पहले ही सरिस्का में अवैध खनन पर रोक लगा चुका है। लेकिन अगर यह सीमा परिवर्तन स्वीकृत हो जाता है, तो न्यायालय के पुराने आदेशों का उल्लंघन होगा। अंततः इस संवेदनशील मामले में सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप जरूरी नजर आ रहा है।
क्या विकास के नाम पर फिर उजड़ेंगे बाघों के घर?
कांग्रेस नेता ने कहा- सरिस्का में बाघों की वापसी केवल एक आंकड़ा नहीं, बल्कि भारत की पर्यावरणीय प्रतिबद्धता की पहचान है। लेकिन खनन को फिर से शुरू करने की योजना इस पूरी उपलब्धि को दाव पर लगा सकती है। अगर बाघों का रहवास एक बार फिर नष्ट हुआ, तो यह संरक्षण की लड़ाई को पीछे धकेल देगा।
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