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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क।महाराष्ट्र की सियासत में उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे वो शख्सियत हैं जो बाल ठाकरे से सीधे जुड़ी हुई हैं। उद्धव राज के बेटे हैं जबकि राज भतीजे पर सालों से ये एक दूसरे से बात भी नहीं कर रहे थे। हाल ही में दोनों हिंदी के विरोध के नाम पर एक साथ आए तो माना गया कि सूबे की सियासत को दोनों मोड़ने की ताकत रखते हैं। लेकिन अब वो वक्त आ गया है जब इन दोनों की ताकत का पता लगने वाला है। मुंबई का एक छोटा सा चुनाव दोनों के लिए लिटमस टेस्ट की तरह रहने वाला है।
शिवसेना (यूबीटी) और मनसे ने BEST सहकारी ऋण समिति के चुनावों के लिए गठबंधन करने का फैसला किया है। समिति के लगभग 15 हजार मतदाता हैं। इसका कारोबार 1 हजार करोड़ रुपये का है। 21 सीटों के लिए चुनाव 18 अगस्त को होंगे। चुनाव के नतीजे यह बताएंगे कि क्या मुंबई का मराठी मानुष ठाकरे ब्रदर्स के साथ है भी या नहीं। खास बात है कि बेस्ट के कर्मचारी मराठी हैं। मराठी अस्मिता के नाम पर ही दोनों भाई एक साथ आए हैं। यानि लिटमस टेस्ट बिलकुल सामने है। उद्धव की शिवसेना ने BEST की 21 में से 2 सीटें मनसे को दी हैं। मनसे के मुंबई शहर अध्यक्ष संदीप देशपांडे ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा कि मनसे को 21 सीटों में से दो पर चुनाव लड़ने का मौका मिलेगा।
दोनों का साथ अन्य पार्टियों के लिए बन सकता है खतरा
चुनाव में शिवसेना (यूबीटी) और मनसे गठबंधन की ताकत का पता चलेगा क्योंकि सामने जो हैं वो भी कम नहीं हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता नारायण राणे, भाजपा एमएलसी प्रसाद लाड, बेस्ट श्रमिक संघ के नेता शशांक राव और उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना दोनों भाईयों के खिलाफ मजबूती से चुनाव लड़ने जा रही है। बीजेपी को पता है कि दोनों एक चुनाव जीते तो मजबूत हो जाएंगे। लिहाजा देवेंद्र फडणवीस भी बैक डोर से दोनों की काट करने वाले हैं। बेस्ट कामगार सेना पिछले नौ सालों से 84 साल पुरानी इस क्रेडिट सोसाइटी को नियंत्रित कर रही है। इससे पहले बेस्ट क्रेडिट सोसाइटी पर पूर्व केंद्रीय मंत्री जॉर्ज फर्नांडीस के करीबी सहयोगी नारायण फेनानी जैसे समाजवादी नेताओं का नियंत्रण था।
नाराज ठाकरे ने 2005 में छोड़ा शिवसेना का साथ
राज ठाकरे पहले शिवसेना का हिस्सा हुआ करते थे। जब बाल ठाकरे थे तब वो शिवसेना की अब भंग हो चुकी छात्र शाखा भारतीय विद्यार्थी सेना (बीवीएस) के अध्यक्ष थे। राज ठाकरे को शिवसेना सुप्रीमो बाल ठाकरे का राजनीतिक उत्तराधिकारी माना जाता था। हालांकि, जब बाल ठाकरे ने बेटे उद्धव को तरजीह देनी शुरी कर दी तो उन्होंने 2005 में शिवसेना छोड़ दी और अगले साल मनसे की स्थापना की। पिछले साल हुए विधानसभा चुनावों में शिवसेना (यूबीटी) और मनसे को करारी हार का सामना करना पड़ा था। विधानसभा में शिवसेना (यूबीटी) की संख्या घटकर केवल 20 रह गई, जबकि 2019 में एक सीट जीतने वाली मनसे का सफाया हो गया। राज के बेटे अमित माहिम सीट भी हार गए।
भाषा विवाद उद्धव और राज ठाकरे को एक मंच पर लाया
विधानसभा चुनाव में हार के बाद दोनों ने एक-दूसरे के साथ बातचीत शुरू की। दोनों ने महायुति सरकार के कक्षा 1 से 5 तक के छात्रों के लिए हिंदी को अनिवार्य तीसरी भाषा बनाने के विवादास्पद कदम को एक राजनीतिक अवसर के रूप में देखा। 5 जुलाई को उद्धव और राज ने मुंबई के वर्ली में एक विरोध सभा में मंच साझा किया। उसके बाद से दोनों भाई एक साथ दिख रहे हैं। ये बीजेपी को रास नहीं आ रहा। बीजेपी को पता है कि दोनों मजबूत हुए तो एकनाथ शिंदे निपट सकते हैं। शिंदे गए तो असर बीजेपी पर भी देर सवेर पड़ने ही वाला है। माना जा रहा है कि ठाकरे परिवारों का साथ आना मुंबई और आसपास के इलाकों में उनके मूल मराठी मतदाताओं को एकजुट कर सकता है। इसका असर इस साल होने वाले बीएमसी चुनावों पर भी पड़ता दिख सकता है। लेकिन इसके लिए दोनों भाईयों को BEST का चुनाव जीतना होगा।