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वाईबीएन डेस्क, नई दिल्ली।राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) द्वारा संविधान की प्रस्तावना से समाजवादी और पंथनिरपेक्ष शब्द पर पुनर्विचार करने या हटाने की मांग पर अपना रुख स्पष्ट कर दिया है। केंद्र सरकार ने कहा कि अभी ऐसी कोई योजना नहीं है। इस मानसून सत्र (Monsoon Session) के दौरान सरकार ने कहा कि संविधान की प्रस्तावना से दोनों शब्दों को हटाने के लिए औपचारिक रूप से कानूनी या संवैधानिक प्रक्रिया भी नहीं शुरू की गई है। कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने राज्यसभा में बताया कि कुछ सार्वजनिक या राजनीतिक क्षेत्रों में इस विषय पर चर्चा की जा सकती है। मगर, सरकार ने इन शब्दों के संशोधन के संबंध में औपचारिक फैसले या प्रस्ताव की घोषणा नहीं की है।
सुप्रीम कोर्ट ने खारिज किया थी याचिका
मंत्री ने बताया कि प्रस्तावना में संशोधन के संबंध में चर्चा के लिए गहन विचार-विमर्श और व्यापक सर्वसम्मति की जरूरत होगी। मगर, सरकार ने इन प्रावधानों में बदलाव के लिए फिलहाल औपचारिक प्रक्रिया नहीं शुरू की है। मेघवाल का कहना है कि नवंबर 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने 1976 के संशोधन को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज किया था। कोर्ट ने कहा था कि संविधान में संशोधन करने की संसद की शक्ति प्रस्तावना तक विस्तारित है।
पंथनिरपेक्ष शब्द संविधान के मूल ढांचे का अभिन्न हिस्सा: कोर्ट
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि भारतीय संदर्भ में समाजवादी शब्द कल्याणकारी शासन को बताता है। निजी क्षेत्र के विकास में बाधा नहीं डालता है। वहीं, पंथनिरपेक्ष शब्द संविधान के मूल ढांचे का अभिन्न हिस्सा है। कुछ सामाजिक संगठनों के पदाधिकारियों द्वारा बनाए माहौल के बारे में मेघवाल ने कहा कि कुछ ग्रुप हो सकता है कि अपना विचार व्यक्त कर रहे हों या इन शब्दों पर पुनर्विचार की वकालत कर रहे हों। ऐसी गतिविधियां, मुद्दे पर सार्वजनिक विमर्श का माहौल तो बना सकती हैं, लेकिन जरूरी नहीं कि सरकार के आधिकारिक रुख या कार्रवाई को प्रतिबिंबित करे।
मूल संविधान में ये शब्द नहीं थे: दत्तात्रेय होसबाले
गौरतलब है कि आपातकाल के 50 वर्ष पूरे होने पर RSS सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने कहा था कि मूल संविधान में सोशलिस्ट और सेक्युलर शब्द नहीं थे। इन शब्दों को आपातकाल के समय संविधान की प्रस्तावना में जोड़ा गया है। इन्हें बाद में निकालने की कोशिश नहीं हुई। जब हमारे मूल संविधान में ये शब्द थे नहीं तो क्या अब इन शब्दों को हमारे संविधान में रहना चाहिए। इस पर विचार होना चाहिए।
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