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POSH ACT: राजनीतिक दलों में क्यों नहीं लागू हो सकता ये कानून?

कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन शोषण को रोकने के लिए बनाया गया यौन उत्पीड़न रोकथाम निषेध अधिनियम 2013 (POSH ACT) राजनीतिक दलों पर भी लागू किए जाने की  मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दर्ज की गई जनहित याचिका से इस मामले को लेकर एक नई बहस छिड़ गई है।

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Mukesh Pandit
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POSH ACT

Photograph: (google )

दिल्ली वाईबीएन नेटवर्क: कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन शोषण को रोकने के लिए बनाया गया यौन उत्पीड़न रोकथाम निषेध अधिनियम 2013 (POSH ACT) राजनीतिक दलों पर भी लागू किए जाने की  मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दर्ज की गई जनहित याचिका से इस मामले को लेकर एक नई बहस छिड़ गई है। कुछ लोग इसे बेहद जरूरी मानते है, क्योंकि राजनीतिक दलों में जिस तरह महिलाओं की सक्रियता बढ़ी है, ऐसे में जरूरी है कि इनमें भी इस सख्ती से लागू किया जाए, आइए जानते हैं क्या है पॉश एक्ट और क्या-क्यां हैं राजनीतिक दलों में लागू करने में बाधाएं।

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एक्ट को लेकर क्या है स्थिति?

सुप्रीम कोर्ट की वकील योगमाया एमजी ने इस मामले में जनहित याचिका दायर करके राजनीतिक दलों को पॉश एक्ट के दायर में लागू करने की मांग की है। याचिका में कहा गया है कि राजनीतिक दलों को पॉश एक्ट के अंतर्गत कार्यस्थल (Work Palace) पर महिलाओं की सुरक्षा के लिए प्रक्रिया का पालन करने संबंधी आदेश दिए जाएं। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस मनमोहन की बेंच ने याचिकाकर्ता को पहले भारत के निर्वाचन आयोग से संपर्क करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने इस पर जोर दिया है कि राजनीतिक दलों में पॉश एक्ट के प्राविधानों के तहत ऐसा तंत्र विकसित करने के लिए आयोग की सक्षम अथॉरिटी है।

प्राइवेट सेक्टर में बनी हैं शिकायत समितियां

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पब्लिक और प्राइवेट सेक्टर में यौन उत्पीड़न से निपटने के लिए आंतरिक शिकायत समितियां बनी हुई हैं, लेकिन राजनीतिक दलों में अब तक ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। सवाल है कि ऐसे मामलों से राजनीतिक दल कैसे निपटते हैं? हालांकि दफ्तरों में यौन उत्पीड़न पर अंकुश लगाने में यह एक्ट काफी असरदार माना जाता है। लेकिन राजनीतिक दलों में अब तक ऐसा कोई मैकेनिज्म डवलप नहीं किया गया है। जबकि राजनीतिक दलों में यौन उत्पीड़न के मामले लगातार सामने आते रहे हैं।

कार्यस्थल पर महिलाओं की सुरक्षा

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महिलाओं के लिए यौन उत्पीड़न (रोकथाम निषेध अधिनियम 2013) लागू है। लेकिन यह एक्ट राजनीतिक दलों पर लागू नहीं होता है। पॉश एक्ट कार्य़स्थल (Work Palace) पर यौन उत्पीड़न के मामलों से निपटने के लिए वर्ष 2013 में तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार ने बनाया था। पॉश एक्ट की धारा 3(1) में कहा गया है कि किसी भी महिला को भी कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न का शिकार नहीं बनना चाहिए। यह एक्ट काम करने की सभी जगहों पर लागू होता है। खासतौर पर तब जब पीड़ित महिला हो।

क्या है (Work Palace) की परिभाषा

पॉश एक्ट में कार्यस्थल की परिभाषा काफी लंबी-चौड़ी है। इसमें सार्वजनिक क्षेत्र के संगठन, संस्थान शामिल हैं। साथ ही निजी क्षेत्र के संगठन, नर्सिंग होम, अस्पताल,  खेलस्थल और यहां तक काम के लिए दफ्तर के बाहर बनाई जाने वाली जगहें शामिल गई हैं। उल्लखेनीय है कि सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर होने से पहले ऐसी ही एक याचिका केरल हाईकोर्ट में दाखिल की गई थी। केरल हाई कोर्ट ने टेलीविजन, फिल्म, न्यूज चैनल, और राजनीतिक दलों में इंटरनल कंप्लेंट कमेटी(ICC) की स्थापना वाली कई याचिकाओं पर सुनवाई की थी। हालांकि कोर्ट ने माना कि राजनीतिक दलों के साथ कोई नियोक्ता-कर्मचारी संबंध नहीं होता है। राजनीतिक दल कार्यस्थल पर (पॉश एक्ट के तहत) कोई निजी उद्यम या संस्थान का संचालन नहीं करना चाहते। इस तरह कोर्ट ने माना कि राजनीतिक दल कोई आंतरिक शिकायत समिति बनाने के लिए जवाबदेह नहीं हैं।

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कैसे निपटते हैं राजनीतिक दल?

जनप्रतिनिधि अधिनियम 1951 के अनुसार, किसी राजनीतिक दल का रजिस्ट्रेशन कैसे किया जाए, इसकी धारा 29 ए के अंतर्गत भारत के किसी भी नागरिक या  व्यक्तिगत संगठन को जो खुद को राजनीतिक दल कहता है, उसे चुनाव आयोग के पास रजिस्ट्रेशन के लिए आवेदन देना होगा। इसमें पार्टी का नाम, वह राज्य जहां उसका मुख्यालय स्थित है, पदाधिकारियों के नाम, स्थानीय इकाइयों का विवरण आदि देना होगा। राजनीतिक दल के मामले में सबसे बड़ी दुविधा है कि यह तय करना मुश्किल है कि उनका कार्यस्थल क्या है ? राजनीतिक दलों के मामले में एक और पेंच फंसता है, वह है नियोक्ता का है, यदि कोर्ट या निर्वाचन आयोग पॉश एक्ट को राजनीतिक दल के संदर्भ में नियोक्ता कौन है?, क्योंकि कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के मामलों को संभालने के लिए इंटरनल कंप्लेंट कमेटी (ICC) की स्थापना की जिम्मेदारी नियोक्ता की होगी।

भाजपा और कांग्रेस में क्या स्थिति है

भारत की दो प्रमुख राजनीतिक पार्टियों कांग्रेस और भाजपा में अलग-अलग तरह की कमेटियां तो हैं, लेकिन इन कमेटियों में यौन उत्पीड़न के मामलों से निपटने के लिए खास प्राविधान का अभाव है। इनमें महिलाओं को बाहरी सदस्यों को शामिल करना अनिवार्य नहीं है। जैसा की पॉश एक्ट के तहत जरूरी नहीं है। दोनों ही पार्टियां अपने-अपने मामलों को अनुशासन समिति के जरिए सुलझाती हैं। यह समितियां जिला, राज्य और राष्ट्रीय समितियों के के स्तर पर सुलझाती हैं। सबसे बड़ी समस्या है कि इसमें पारदर्शिता का घोर अभाव रहता है।  सुप्रीम कोर्ट के वकील अनुपम सिन्हा का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट की इस मामले में ही कोई व्यवस्था दे सकता है, जिस तरह राजनीतिक दलों में महिलाओं की सक्रियता बढ़ी है। ऐसे में जरूरी है कि राजनीतिक दलों में भी पॉश एक्ट को लागू करने के लिए सुदृढ़ मजबूत ढांचा तैयार किया जाए।

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