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India's first astronaut Rakesh Sharma ने साझा किए अपने अनुभव, कहा- अंतरिक्ष यात्रा बदल देती है सोच

भारत के पहले अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा ने अपनी अंतरिक्ष यात्रा के अनुभव साझा किए और बताया कि कैसे यह यात्रा सोच को बदल देती है। उन्होंने अपनी और शुभांशु शुक्ला की यात्रा के बीच अंतर भी बताया।

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Dhiraj Dhillon
India's first astronaut Rakesh Sharma

Photograph: (Google)

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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क। Shubhanshu Shukla Axiom-4 Mission 2025: भारत के पहले अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा ने अपनी ऐतिहासिक अंतरिक्ष यात्रा के अनुभव साझा करते हुए कहा- अंतरिक्ष से पृथ्वी को देखना एक अद्भुत अनुभव है। यह आपको एहसास दिलाता है कि यह ग्रह सभी का है, किसी एक का नहीं।" 1984 में अंतरिक्ष में गए शर्मा ने हाल ही में रक्षा मंत्रालय द्वारा रिकॉर्ड किए गए एक पॉडकास्ट में ये बातें कही। इस पॉडकास्ट का रिलीज होना भी खास था, क्योंकि उसी दिन 41 साल बाद भारत के एक और अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला अंतरिक्ष की यात्रा पर निकले।
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राकेश शर्मा की अंतरिक्ष यात्रा

1984 में राकेश शर्मा ने तत्कालीन सोवियत संघ के सहयोग से अंतरिक्ष यात्रा की थी। इस मिशन के तहत वे सैल्यूट-7 अंतरिक्ष स्टेशन पर गए और वहां आठ दिन बिताए। उस समय वे भारतीय वायुसेना में परीक्षण पायलट थे और बाद में विंग कमांडर के पद से सेवानिवृत्त हुए। शर्मा ने बताया, "मैं युवा था, फिट था और योग्य था, इसलिए मुझे चुना गया।"

अंतरिक्ष से पृथ्वी का नजारा

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शर्मा ने अंतरिक्ष से भारत को देखने के अपने अनुभव को याद करते हुए कहा, "यह बहुत सुंदर था।" उन्होंने भारत की भौगोलिक विविधता- समुद्र तट, घाटियां, जंगल, मैदान, पहाड़ और हिमालय की खूबसूरती की तारीफ की। साथ ही, उन्होंने एक रोचक तथ्य साझा किया कि अंतरिक्ष में हर 45 मिनट में सूर्योदय और सूर्यास्त होता है, जो पृथ्वी से बिल्कुल अलग अनुभव है।

शुभांशु शुक्ला की हालिया यात्रा

41 साल बाद, ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला ने एक्सिओम स्पेस मिशन के तहत अमेरिका, पोलैंड और हंगरी के तीन अन्य अंतरिक्ष यात्रियों के साथ अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) की यात्रा की। इस मिशन को लाखों लोगों ने मोबाइल और टीवी पर लाइव देखा। पृथ्वी की कक्षा में पहुंचते ही शुक्ला ने कहा, "कमाल की सवारी थी।" शर्मा ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि उनकी यात्रा के समय (1984 में) बहुत कम लोगों के पास टीवी था, लेकिन आज तकनीकी प्रगति ने इसे सबके लिए सुलभ बना दिया।
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प्रशिक्षण और चुनौतियां

राकेश शर्मा ने अपने पॉडकास्ट में बताया कि अंतरिक्ष यात्रा से पहले उन्हें मास्को के पास स्टार सिटी में 18 महीने का कठिन प्रशिक्षण लेना पड़ा। चूंकि पूरा प्रशिक्षण और अंतरिक्ष में संवाद रूसी भाषा में था, इसलिए उन्हें यह भाषा सीखनी पड़ी। उन्होंने कहा, "इसे सीखने में मुझे करीब दो महीने लगे, जो आसान नहीं था।" यह उनके समर्पण और मेहनत को दर्शाता है।

दोनों यात्राओं का अंतर

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राकेश शर्मा ने अपनी और शुभांशु शुक्ला की यात्रा के बीच अंतर को रेखांकित करते हुए कहा कि तकनीकी विकास और दर्शकों की पहुंच के मामले में बहुत बदलाव आया है। 1984 में अंतरिक्ष यात्रा को लाइव देखना संभव नहीं था, जबकि आज लाखों लोग इसे अपने उपकरणों पर देख सकते हैं। यह भारत की अंतरिक्ष यात्रा में प्रगति का प्रतीक है। शर्मा का मानना है कि अंतरिक्ष यात्रा न सिर्फ वैज्ञानिक उपलब्धि है, बल्कि यह इंसान की सोच को भी बदलती है। यह हमें सिखाती है कि पृथ्वी सभी की साझा धरोहर है और इसे संरक्षित करना हमारी जिम्मेदारी है।
India Astronaut Shubhanshu Shukla
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