नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क।
गणतंत्र दिवस की परेड में सेना की टुकड़ी 61वीं कैवेलरी ने कर्तव्य पथ पर मार्च किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज 26 जनवरी को नई दिल्ली स्थित नेशनल वॉर मेमोरियल पर शहीदों को श्रद्धांजलि देकर गणतंत्र दिवस समारोह की शुरुआत की। उनके साथ रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी मौजूद रहे। प्रधानमंत्री ने शहीदों की स्मृति में पुष्पचक्र अर्पित किया और देश के वीर सैनिकों को याद किया। प्रधानमंत्री द्वारा पुष्पचक्र अर्पित करने के बाद इंटर-सर्विसेज गार्ड के कमांडर अमित राठी ने 21 गार्ड्स और 6 बगुलरों के साथ सलामी शस्त्र और शोक शस्त्र के आदेश दिए। लास्ट पोस्ट की धुन पूरे माहौल को भावुक बना दिया इस दौरान सभी अधिकारियों ने शहीदों को सलामी दी और दो मिनट का मौन रखा।
लेफ्टिनेंट अहान कुमार ने किया रेजिमेंट का नेतृत्व
76वें गणतंत्र दिवस की परेड के दौरान कर्तव्य पथ पर रविवार को ऐतिहासिक 61वीं घुड़सवार टुकड़ी का नेतृत्व जवान लेफ्टिनेंट अहान कुमार ने किया। कर्तव्य पथ पर ऐतिहासिक 61वीं घुड़सवार टुकड़ी का नेतृत्व करते हुए वह अपने पिता के नक्शेकदम पर चलें, जो इस वर्ष के परेड कमांडर हैं। इस प्रतिष्ठित परेड में अहान का यह पहला अवसर होगा, और वह अपने परिवार की सैन्य परंपरा का सम्मान आगे बढ़ा रहे हैं।
1953 में हुई थी स्थापना
61वीं कैवलरी रेजिमेंट भारतीय सेना की एक घुड़सवार रेजिमेंट है। इसकी स्थापना साल 1953 की गई थी। 1953 में स्थापित, 61 कैवलरी दुनिया की एकमात्र सक्रिय घुड़सवार घुड़सवार रेजिमेंट है, जिसमें सभी 'स्टेट हॉर्स्ड कैवलरी यूनाइट' का समामेलन है। इसे इतिहास में दर्ज पहली घुड़सवार सेना का नेतृत्व करने का अनूठा गौरव प्राप्त है, जब इसने "हाइफा" की लड़ाई में तुर्कों से मुकाबला किया था। इस दिन को युद्ध सम्मान दिवस (हाइफा दिवस) के रूप में भी मनाया जाता है। इतना ही नहीं यह दुनिया की सबसे बड़ी और आखिरी ऑपरेशनल घुड़सवार इकाइयों में से भी एक है। पहले सक्रिय संघर्ष में तैनात, 61वीं कैवलरी वर्तमान में औपचारिक अवसरों पर नियोजित है, हालांकि इसे आंतरिक सुरक्षा के लिए या नागरिक शक्ति को सैन्य सहायता प्रदान करने के लिए तैनात किया जा सकता है। रेजिमेंट वर्तमान में जयपुर में स्थित है।
परंपरा को रखा जीवित
ग्वालियर लांसर्स, मैसूर लांसर्स, सेकंड पटियाला लांसर्स, जोधपुर कच्छवाहा लांसर्स और बी स्क्वाड्रन को 1953 में इन सभी 61वीं कैवलरी रेजिमेंट का हिस्सा बनाया गया। रेजिमेंट की खास परंपराओं को जीवित रखने के लिए पंडित नेहरू के आदेश के मुताबिक, इस रेजिमेंट में सिर्फ मराठा, राजपूत और कैमखनी मुस्लिम की नियुक्ति हो सकती थी।
सुनहरा रहा है इतिहास
विजय पथ से राजपथ तक गणतंत्र दिवस की परेड का आगाज हो या सेना दिवस परेड की अगुवानी भारतीय सेना की जयपुर स्थित देश की एकमात्र घुड़सवार सेना (61 कैवलरी) में घोड़ों की टाप हर भारतीय के जहन में अनमोल विरासत और सुनहरें इतिहास के तौर पर दर्ज है। 61वीं कैवलरी रेजिमेंट ने 39 युद्ध सम्मान जीते हैं और घुड़सवारी और पोलो में एक पद्म श्री, एक सर्वोत्तम जीवन रक्षा पदक, 6 विशिष्ट सेवा पदक, 12 अर्जुन अवॉर्ड और 10 एशियन गेम्स अवॉर्ड जीत चुकी है। 2011 और 2017 की वर्ल्ड पोलो चैम्पियनशिप में पहला स्थान जीता। साथ ही रेजिमेंट के 52 सेनाध्यक्ष कमेंडेशन, 2 वायु सेनाध्यक्ष कमेंडेशन, 2 चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी कमेंडेशन, 2 नौसेना सेनाध्यक्ष कमेंडेशन , 9 उप सेनाध्यक्ष कमेंडेशन , 8 एकीकृत रक्षा सेनाध्यक्ष कमेंडेशन, एक उप सेनाध्यक्ष प्रशस्ति और 195 जनरल ऑफिसर कमांडिंग इन चीफ कमेंडेशन के साथ शीर्ष स्थान पर है।1971 के इंडो-पाक युद्ध और 1961 के ऑपरेशन विजय में भी बड़ी भूमिका निभाई थी। 1971 के इंडो-पाक युद्ध और 1961 के ऑपरेशन विजय में भी बड़ी भूमिका निभाई थी। 61वीं कैवलरी रेजिमेंट का आदर्श वाक्य 'अश्व शक्ति यशोबल' है जिसका अर्थ है 'अश्व शक्ति हमेशा सर्वोच्च है।