नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क।
Supreme Court ने पुलिस सुधारों को लागू करने को लेकर 2006 के अपने फैसले के क्रियान्वयन की मांग करने वाली याचिकाओं पर मई में सुनवाई करेगा। इस फैसले में जांच और कानून-व्यवस्था जैसे कर्तव्यों को अलग करने सहित कई सुधारात्मक कदमों की सिफारिश की गई थी। बाद में शीर्ष अदालत ने यह भी निर्देश दिया था कि राज्य सरकारें पुलिस महानिदेशक (DGP) के पद पर तदर्थ या अंतरिम नियुक्ति नहीं करेंगी। अदालत ने यह व्यवस्था दी थी कि संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) राज्य सरकार और अन्य संबंधित पक्षों के परामर्श से तीन वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की सूची तैयार करेगा, जिनमें से राज्य किसी एक को डीजीपी नियुक्त कर सकेगा।
राज्य सरकारों पर कोर्ट की अवमानना का आरोप
मंगलवार को वकील प्रशांत भूषण और वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ से कहा कि कई राज्य सरकारें न्यायालय के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन कर रही हैं। भूषण ने आरोप लगाया कि "पुलिस प्रमुखों की नियुक्ति में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हो रहा है।" दवे ने कहा कि एक के बाद एक राज्य अदालत के फैसले और निर्देशों का पालन करने से इंकार कर रहे हैं। उन्होंने पीठ से कहा कि "यदि इन सुधारात्मक निर्देशों को लागू नहीं किया गया, तो हम वह सब कुछ खो देंगे, जिसके लिए हम खड़े हैं।"
“नियम- कानूनों को ताक पर रखकर हो रही DGP की नियुक्ति”
वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने यह भी कहा कि डीजीपी की नियुक्ति में कई राज्य कानून अपने हाथ में ले रहे हैं, जिससे स्थिति गंभीर होती जा रही है। इसके बाद, पीठ ने निर्देश दिया कि झारखंड सरकार को अवमानना याचिका दी जाए और सभी याचिकाओं को 5 मई से शुरू होने वाले सप्ताह में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाए। इससे पहले, प्रशांत भूषण ने 2006 में प्रकाश सिंह मामले में दिए गए फैसले का हवाला देते हुए कहा कि उसमें पुलिस के जांच कार्य और कानून-व्यवस्था बनाए रखने के कार्य को अलग करने की सिफारिश की गई थी। उन्होंने तर्क दिया कि कानून-व्यवस्था एक कार्यकारी कार्य है, जबकि जांच आपराधिक न्याय प्रणाली का हिस्सा है।
SC ने दो वर्ष के निश्चित कार्यकाल का प्रावधान किया था
2006 में
सर्वोच्च न्यायालय ने पूर्व डीजीपी प्रकाश सिंह और एन.के. सिंह द्वारा दायर जनहित याचिका पर निर्णय देते हुए कई दिशा- निर्देश जारी किए थे, जिनमें राज्य पुलिस प्रमुखों को दो वर्ष का निश्चित कार्यकाल देने का प्रावधान मुख्य रूप से शामिल था।