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Maharashtra: फिर साथ आएंगे चाचा-भतीजा, मंत्री बनेंगी सुप्रिया सुले, महाराष्ट्र में क्या सियासी खिचड़ी पक रही है!

क्या शरद पवार और अजीत पवार फिर से एक साथ आ सकते हैं। सूत्रों की मानें तो आने वाले दिनों में महाराष्ट्र की सियासत में बड़े बदलाव के संकेत हैं।

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Aditya Pujan
ajit-sharad pawar

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मुंबई, वाईबीएन नेटवर्क।
नए साल की शुरुआत के साथ महाराष्ट्र में सियासी समीकरणों में बड़े बदलाव की आहट मिलनी शुरू हो गई है। एनसीपी के शरद और अजीत पवार गुटों के एक साथ आने के संकेत मिल रहे हैं। जानकारी के मुताबिक महाराष्ट्र के एक बड़े उद्योगपति की शह पर चाचा-भतीजा को एक साथ लाने की रणनीति बन रही है। इसका इशारा सुप्रिया सुले के हालिया बयान से भी मिला है जिसमें उन्होंने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की तारीफ की थी। इसके लिए अभी कोई समयसीमा तय नहीं है, लेकिन यदि ऐसा हुआ तो शरद पवार की बेटी और बारामती की सांसद सुप्रिया सुले केंद्र की नरेंद्र मोदी कैबिनेट में मंत्री बन सकती हैं। इतना ही नहीं, उन्हें कोई महत्वपूर्ण मंत्रालय भी मिल सकता है।

अजीत पवार की मां ने जताई इच्छा

पिछले दिनों अजीत पवार की मां आशाताई पवार ने परिवार के एकजुट होने की इच्छा जताई थी। तब शरद पवार गुट की ओर से कहा गया था कि अजीत जब तक बीजेपी के साथ हैं, तब तक ऐसा संभव नहीं है। लेकिन राजनीति में समय बदलते देर नहीं लगती। इसके ठीक बाद शिवसेना यूबीटी के मुखपत्र सामना में देवेंद्र फडणवीस को देवाभाऊ लिखा गया तो सुप्रिया सुले ने भी उनकी तारीफ की थी। सियासी हलकों में सुप्रिया के इस बयान को महाराष्ट्र में नए समीकरण बनने की दिशा में पहला कदम माना गया था।

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कैसे कम होगी समर्थकों की कड़वाहट?

हालांकि, शरद और अजीत पवार का फिर से साथ आना इतना आसान भी नहीं है। दोनों पार्टियां राज्य में प्रतिद्वंद्वी हैं। पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव में अजीत पवार के गुट को केवल एक सीट मिली थी जबकि शरद पवार की पार्टी को आठ सीटें मिली थीं। इसके बाद जब विधानसभा चुनाव हुए तो शरद पवार की पार्टी को अजीत पवार से ज्यादा सीटें मिलीं। दोनों के समर्थकों के बीच कड़वाहट का ये आलम था कि कई मौकों पर दोनों आमने-सामने आ गए थे।

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शरद पवार की मजबूरी!

दूसरी ओर, अपने सियासी करियर के अंतिम पड़ाव पर पहुंच चुके शरद पवार के लिए अजीत पवार को साथ लाना मजबूरी भी हो सकती है। विधानसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन के बाद उनकी पार्टी में एक और टूट की आशंका जताई जा रही है। सच्चाई ये है कि बीजेपी भी अंदरखाने दोनों गुटों के एक साथ आने की मुहिम को बढ़ावा दे रही है। दोनों साथ आए तो केंद्र सरकार को चलाने के लिए नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू पर उसकी निर्भरता कम हो जाएगी।

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