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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के एक अधिवक्ता द्वारा जूता फेंके जाने की घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। भाजपा समेत सभी सियासी दलों और खुद पीएम मोदी ने भी इस घटना पर प्रकिक्रिया दी है। सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष और वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में हुई उस घटना पर प्रतिक्रिया देते हुए पूरे प्रकरण को झूठी लोकप्रियता हासिल करने का जरिया बताया है और सोशल मीडिया की नकारात्मक भूमिका को भी इंगित किया। उन्होंने कहा है इस पूरी घटना में सोशल मीडिया की भूमिका बेहद नकारात्मक रही, जिसने बात को गलत तरीके से पेश कर अनावश्यक रूप से भड़काया।
बोले- सोशल मीडिया ने मामले को बेवजह तूल दिया
एएनआई की एक रिपोर्ट के मुतातिबक वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने कहा, “सोशल मीडिया ने मामले को हद से ज्यादा बढ़ा दिया। असल में यह एक जनहित याचिका (PIL) थी, जिसमें किसी ने खजुराहो के जावरी मंदिर में भगवान विष्णु की टूटी हुई मूर्ति के पुनर्निर्माण की मांग की थी। CJI ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि यह विषय ASI और संबंधित धार्मिक प्राधिकरणों के अधिकार क्षेत्र में आता है।” विकास सिंह ने कहा कि CJI की इस टिप्पणी को सोशल मीडिया पर गलत ढंग में पेश किया गया। इससे जगा जैसे कि सीजेआई ने देवी-देवता का अपमान किया हो, जिससे गलतफहमियां बढ़ीं।
“अधिवक्ता पर प्रचार पाने के की गई हरकत”
बार एसोसिएशन के अध्यक्ष विकास सिंह ने कहा, “इस वकील (राकेश किशोर) ने केवल प्रचार पाने के उद्देश्य से यह हरकत की। मैं मीडिया और सोशल मीडिया से अपील करता हूं कि उसे प्रचार न दें, क्योंकि उसका पूरा मकसद ही प्रसिद्धि पाना है।” विकास सिंह ने यह भी कहा कि चाहे CJI इस पर कोई कार्रवाई न करने का निर्णय लें, लेकिन बार एसोसिएशन और बार काउंसिल ऑफ इंडिया को इस तरह के व्यवहार पर कठोर रुख अपनाना चाहिए, क्योंकि यह एक अधिवक्ता के लिए अशोभनीय आचरण है।
जानिए क्या है पूरा मामला
घटना सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में उस समय हुई जब 71 वर्षीय वकील राकेश किशोर ने कार्यवाही के दौरान CJI पर जूता फेंकने की कोशिश की। सुरक्षा कर्मियों ने उन्हें तुरंत हिरासत में लेकर कोर्ट से बाहर निकाल दिया। बताया गया कि बाहर ले जाते समय उन्होंने नारा लगाया- “सनातन का अपमान नहीं सहेगा हिंदुस्तान।” बाद में दिल्ली पुलिस ने राकेश किशोर से तीन घंटे तक पूछताछ की और फिर छोड़ दिया। जानकारी के अनुसार, आरोपी वकील जावरी मंदिर मामले में CJI गवई की टिप्पणी से नाराज था। सुनवाई के दौरान CJI ने कहा था कि “अगर मूर्ति पुनः स्थापित करनी है तो भगवान विष्णु से प्रार्थना करें,” और कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी थी। अदालत ने यह भी कहा था कि यह मामला पुरातत्व विभाग (ASI) के अधिकार क्षेत्र में आता है, क्योंकि मंदिर एक संरक्षित धरोहर है।
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