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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उस जनहित याचिका को खारिज कर दिया जिसमें पूरे देश में 20% एथनॉल मिश्रित पेट्रोल (E20) लागू किए जाने को चुनौती दी गई थी। याचिका में आरोप लगाया गया था कि देशभर में लाखों वाहन मालिकों को ऐसा ईंधन इस्तेमाल करने के लिए मजबूर किया जा रहा है जो उनके वाहनों के अनुकूल नहीं है, और उन्हें एथनॉल-मुक्त पेट्रोल का कोई विकल्प नहीं दिया जा रहा। मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि इसमें हस्तक्षेप की कोई जरूरत नहीं है।
क्या है मामला?
वरिष्ठ अधिवक्ता शादान फरासत ने याचिकाकर्ता अक्षय मल्होत्रा की ओर से बहस करते हुए नीति आयोग की 2021 की रिपोर्ट 'भारत में एथनॉल मिश्रण का रोडमैप 2020-25' का हवाला दिया। रिपोर्ट में कहा गया था कि E20 ईंधन, चार पहिया वाहनों की ईंधन दक्षता में 6-7% और दोपहिया वाहनों में 3-4% तक की कमी ला सकता है। अधिवक्ता ने स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता एथनॉल मिश्रण नीति का विरोध नहीं कर रहे, बल्कि सिर्फ इतना चाहते हैं कि अप्रैल 2023 से पहले बने उन वाहनों के लिए एथनॉल-मुक्त पेट्रोल का विकल्प बना रहे जो E20 के अनुकूल नहीं हैं। वहीं सरकार की ओर से दलील देते हुए याचिका को "स्वार्थ से प्रेरित बताया और कहा कि यह याचिका "क्लीन फ्यूल ट्रांजिशन" में बाधा डालने वाली लॉबी का हिस्सा है। यह नीति हमारे गन्ना किसानों को फायदा पहुंचा रही है और कीमती विदेशी मुद्रा की बचत कर रही है। क्या अब बाहरी देश तय करेंगे कि भारत किस तरह का ईंधन इस्तेमाल करे?
ई20 ईंधन का देशव्यापी क्रियान्वयन
भारत में 2023 से ई20 को धीरे-धीरे लागू किया गया है, जिसने पुराने ईंधन मिश्रण जैसे E5 और E10 की जगह ले ली है। अब देश के लगभग 90,000 पेट्रोल पंपों पर केवल E20 ही उपलब्ध है। केंद्र सरकार का मानना है कि इससे कार्बन उत्सर्जन में कमी और कच्चे तेल पर निर्भरता घटेगी। हाल ही में पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय ने E20 को बढ़ावा देते हुए कहा था कि इससे बेहतर पिकअप और राइड क्वालिटी मिलती है। साथ ही यह किसानों की आजीविका को मजबूत करता है। सरकार ने यह भी स्पष्ट किया कि E20 के इस्तेमाल से वाहन बीमा की वैधता पर कोई असर नहीं पड़ेगा। याचिकाकर्ता ने दलील दी कि यह नीति उन वाहन मालिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है जिनके वाहन E20 के अनुकूल नहीं हैं।
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