नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सोमवार को असम की पुश बैक नीति के खिलाफ दायर एक याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया। याचिका में दावा किया गया था कि असम सरकार (Assam Government) बिना पूरी कानूनी प्रक्रिया और नागरिकता की जांच किए लोगों को हिरासत में लेकर जबरन देश से बाहर भेज रही है। सुप्रीम कोर्ट से मांग की गई थी कि किसी भी व्यक्ति को निर्वासित करने से पहले उसे पूरी कानूनी प्रक्रिया, अपील और नागरिकता की जांच का पूरा मौका दिया जाए।
नागरिकता की पुष्टि किए बिना डिटेंशन सेंटर में डाला
याचिका में आरोप लगाया गया था कि सुप्रीम कोर्ट के 4 फरवरी के आदेश के बाद असम सरकार ने कई लोगों को बिना नागरिकता की पुष्टि किए ही डिटेंशन सेंटर में डालकर उन्हें निर्वासित करना शुरू कर दिया है। इनमें से कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्हें विदेशी न्यायाधिकरण (Foreigners Tribunal) ने विदेशी घोषित नहीं किया है और उन्हें अपनी बात रखने का मौका भी नहीं मिला।
क्या है पुश बैक नीति?
असम सरकार की "पुश बैक नीति" (Pushback Policy)का मकसद बांग्लादेश से अवैध रूप से आए लोगों को वापस भेजना है। सरकार का कहना है कि यह कार्रवाई केवल उन पर की जा रही है, जिन्हें विदेशी न्यायाधिकरणों ने अवैध विदेशी घोषित किया है। हाल ही में दर्जनों लोगों को सीमा पार भेजा गया, जिससे विवाद खड़ा हो गया। मानवाधिकार संगठनों और कुछ परिवारों ने इस नीति को चुनौती देते हुए कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया है। आलोचकों का कहना है कि इस प्रक्रिया में कानूनी और मानवाधिकारों का उल्लंघन हो सकता है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, 1985 के असम समझौते के बाद से अब तक करीब 30,000 से ज्यादा लोगों को वापस भेजा जा चुका है।
पहले हाई कोर्ट जाएं
यह याचिका ‘ऑल बीटीसी माइनॉरिटी स्टूडेंट्स यूनियन’ नामक संगठन ने दायर की थी। उनका कहनान्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने याचिकाकर्ता से कहा कि वे पहले गुवाहाटी हाई कोर्ट जाएं। कोर्ट ने कहा कि यह मामला पहले हाई कोर्ट में उठाया जाना चाहिए। याचिकाकर्ता के वकील संजय हेगड़े ने बताया कि यह याचिका सुप्रीम कोर्ट के 4 फरवरी के एक पुराने आदेश के आधार पर दायर की गई थी। लेकिन कोर्ट ने फिर भी मामले की सुनवाई से इनकार कर दिया और याचिका वापस लेने की इजाजत दे दी।
रिटायर्ड स्कूल टीचर को बांग्लादेश भेजा गया
एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए याचिका में बताया गया कि एक रिटायर्ड स्कूल टीचर को भी कथित तौर पर बांग्लादेश भेज दिया गया, जबकि उसकी नागरिकता की पुष्टि नहीं हुई थी। अधिवक्ता अदील अहमद के माध्यम से दायर याचिका में सुप्रीम कोर्ट के 4 फरवरी के आदेश का हवाला दिया गया है, जिसमें एक अलग याचिका पर विचार करते हुए असम को 63 घोषित विदेशी नागरिकों, जिनकी राष्ट्रीयता ज्ञात है, उनके निर्वासन की प्रक्रिया दो सप्ताह के भीतर शुरू करने का निर्देश दिया गया था।
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