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नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क । पहलगाम में हुए आतंकी हमले पर रॉबर्ट वाड्रा के विवादित बयान ने नया मोड़ आ गया है। अब वह अपने दिए एक विवदित बयान में फंसते नजर आ रहे हैं। वाड्रा की सफाई बिल्कुल काम नहीं आई।
दरअसल, कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी के पति रॉबर्ट वाड्रा ने 22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के संदर्भ में एक बयान दिया, जिसमें उन्होंने हमले को देश में मुस्लिम समुदाय के कथित उत्पीड़न से जोड़ा। इस बयान के खिलाफ हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस और अन्य ने इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच में याचिका दायर की है, जिसकी सुनवाई शुक्रवार, 2 मई 2025 को होगी।
वाड्रा का बयान बना विवाद का कारण
पहलगाम के बैसारन मीडो में हुए इस आतंकी हमले में 26 लोग मारे गए थे, जिनमें ज्यादातर पर्यटक थे। आतंकवादियों ने कथित तौर पर पीड़ितों की धार्मिक पहचान की जांच की और गैर-मुस्लिम लोगों को निशाना बनाया। इस हमले ने पूरे देश को झकझोर दिया था।
रॉबर्ट वाड्रा ने 23 अप्रैल 2025 को एक बयान में कहा कि आतंकवादी इस तरह की कार्रवाई इसलिए करते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि भारत में मुस्लिम समुदाय के साथ गलत व्यवहार हो रहा है। उन्होंने इसे हिंदू-मुस्लिम विभाजन और केंद्र सरकार की हिंदुत्व नीतियों से जोड़ा।
वाड्रा ने कहा, “जब इस तरह का आतंकी हमला होता है, वे (आतंकवादी) लोगों की पहचान देखते हैं। गैर-मुस्लिमों को निशाना बनाया गया और यह प्रधानमंत्री को एक संदेश है। ऐसा क्यों हो रहा है? क्योंकि उन्हें लगता है कि मुस्लिमों के साथ गलत व्यवहार हो रहा है।” उन्होंने यह भी कहा कि अल्पसंख्यक समुदाय असुरक्षित और परेशान महसूस कर रहे हैं, और सरकार को धर्म और राजनीति को अलग रखना चाहिए।
बीजेपी और जनता की प्रतिक्रिया
वाड्रा के इस बयान पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने तीखी प्रतिक्रिया दी। बीजेपी प्रवक्ता नलिन कोहली ने इसे “आतंकवादियों की भाषा” करार देते हुए वाड्रा से माफी मांगने की मांग की। उन्होंने कहा कि जब पूरा देश आतंकवाद के खिलाफ एकजुट है, तब वाड्रा इस तरह के बयान देकर राजनीति कर रहे हैं। बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव तरुण चुघ ने भी वाड्रा के बयान को “खतरनाक” और “गांधी परिवार की समस्याग्रस्त मानसिकता” का प्रतीक बताया।
पीड़ितों के परिजनों ने भी वाड्रा के बयान पर नाराजगी जाहिर की। मध्य प्रदेश के इंदौर में मारे गए सुशील नथानियल के भाई विकास नथानियल ने कहा कि आतंकवादी हमला किसी राजनीतिक बयानबाजी का परिणाम नहीं, बल्कि एक जघन्य अपराध है। उन्होंने कहा, “मेरे भाई को आतंकियों ने उनकी धार्मिक पहचान पूछकर मारा। इसे किसी भी तरह से जायज नहीं ठहराया जा सकता।”
कोर्ट में याचिका दाखिल कर उठाई यह मांग
हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस और अन्य याचिकाकर्ताओं ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में वाड्रा के खिलाफ याचिका दायर की है। याचिका में मांग की गई है कि केंद्र सरकार को वाड्रा के बयान की जांच के लिए एक विशेष जांच दल (एसआईटी) गठित करने का निर्देश दिया जाए।
इसके अलावा, भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की विभिन्न धाराओं के तहत वाड्रा के खिलाफ कार्रवाई की मांग भी की गई है। याचिका में कहा गया है कि वाड्रा का बयान न केवल आपत्तिजनक है, बल्कि यह राष्ट्रीय एकता और सांप्रदायिक सौहार्द को नुकसान पहुंचाने वाला है।
यह मामला बुधवार को जस्टिस रजत रॉय और ओम प्रकाश शुक्ला की बेंच के समक्ष सुनवाई के लिए सूचीबद्ध था, लेकिन इसे सुनवाई के लिए शुक्रवार तक स्थगित कर दिया गया। कोर्ट के इस फैसले से देशभर की नजरें अब शुक्रवार की सुनवाई पर टिकी हैं।
वाड्रा की सफाई नहीं काम आई
विवाद बढ़ने के बाद 28 अप्रैल 2025 को वाड्रा ने फेसबुक पोस्ट के जरिए अपनी सफाई दी। उन्होंने कहा कि उनके बयान को गलत तरीके से समझा गया और उनकी मंशा को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया। उन्होंने लिखा, “मैं पहलगाम हमले की कड़े शब्दों में निंदा करता हूं।
आतंकवाद किसी भी रूप में मानवता पर हमला है। मेरा बयान देश के लिए मेरे प्यार और एकता की भावना से प्रेरित था।” उन्होंने यह भी कहा कि वह कुछ दिनों तक चुप रहे ताकि भावनाएं शांत हों और वह अपनी बात स्पष्ट रूप से रख सकें।
वाड्रा ने महात्मा गांधी का हवाला देते हुए कहा कि अहिंसा एक साहसी विकल्प है और देश को आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होकर लड़ना होगा। हालांकि, उनकी इस सफाई को बीजेपी ने “देर से की गई औपचारिकता” करार दिया और कहा कि यह उनके मूल बयान के प्रभाव को कम नहीं करता।
अब आगे क्या?
पहलगाम हमला और वाड्रा का बयान दोनों ही देश में सांप्रदायिक तनाव और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के संवेदनशील मुद्दों को उजागर करते हैं। कोर्ट में इस मामले की सुनवाई से यह तय होगा कि क्या वाड्रा के बयान को कानूनी रूप से आपत्तिजनक माना जाएगा। इसके अलावा, यह मामला राजनीतिक दलों के बीच तीखी बहस को और हवा दे सकता है।
जम्मू-कश्मीर में पर्यटन क्षेत्रों की सुरक्षा को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। केंद्र सरकार ने हमले के बाद सैन्य बलों को पूर्ण ऑपरेशनल स्वतंत्रता दी है, और राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) इस मामले की जांच में जुटी है। वहीं, सुप्रीम कोर्ट में भी एक याचिका दायर की गई है, जिसमें पहलगाम हमले की जांच के लिए एक सेवानिवृत्त जज की अध्यक्षता में न्यायिक आयोग के गठन की मांग की गई है।
रॉबर्ट वाड्रा का बयान एक आतंकी हमले के बाद देश में सांप्रदायिक सद्भाव और राजनीतिक बयानबाजी के बीच तनाव को दर्शाता है। इलाहाबाद हाई कोर्ट की सुनवाई इस मामले में एक महत्वपूर्ण कदम होगी। यह देखना बाकी है कि कोर्ट इस याचिका पर क्या फैसला सुनाता है और यह मामला राजनीतिक और सामाजिक माहौल को कैसे प्रभावित करता है। देश की जनता और पीड़ितों के परिजन इस मामले में निष्पक्षता और न्याय की उम्मीद कर रहे हैं।
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