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राष्ट्रपति के संवैधानिक सवाल पर Supreme Court ने केंद्र और राज्यों से मांगा जवाब

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संविधान के अनुच्छेद 143(1) के तहत सुप्रीम कोर्ट से यह राय मांगी है कि क्या राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर राष्ट्रपति के निर्णय के लिए समयसीमा तय की जा सकती है।

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Ranjana Sharma
SUPREME COURT 19 august 2025

Photograph: (Google)

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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क: राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकोंपर राष्ट्रपति द्वारा निर्णय लेने की समयसीमा निर्धारित की जा सकती है या नहीं—इस संवैधानिक प्रश्न पर विचार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और सभी राज्यों से जवाब मांगा है। यह मामला राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा अनुच्छेद 143(1) के तहत सुप्रीम कोर्ट से राय मांगने के बाद सामने आया है।

29  जुलाई तक जवाब दाखिल करने को कहा

मंगलवार को मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अनुपस्थिति में न्यायमूर्ति बी. आर. गवई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि यह विषय केवल किसी एक राज्य तक सीमित नहीं है, बल्कि राष्ट्रीय महत्व का मसला है। पीठ में न्यायमूर्ति सूर्यकांत, विक्रम नाथ, पी. एस. नरसिम्हा और ए. एस. चंदुरकर भी शामिल हैं। पीठ ने केंद्र और राज्यों को अगले मंगलवार (29 जुलाई) तक अपने जवाब दाखिल करने को कहा है और इसी दिन आगे की सुनवाई की तिथि तय की जाएगी। अदालत की योजना है कि इस संवैधानिक मसले पर अगस्त मध्य तक नियमित सुनवाई शुरू कर दी जाए।

राष्ट्रपति ने अनुच्छेद 143(1) के तहत मांगी थी राय

मामले की पृष्ठभूमि में, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने मई 2025 में संविधान के अनुच्छेद 143(1) के तहत अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल करते हुए सुप्रीम कोर्ट से 14 महत्वपूर्ण सवाल पूछे थे। ये सवाल 8 अप्रैल को दिए गए एक ऐतिहासिक फैसले से जुड़े हैं, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार यह तय किया था कि यदि किसी राज्य का राज्यपाल किसी विधेयक को राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजता है, तो उस पर तीन महीने के भीतर निर्णय लिया जाना चाहिए।

तमिलनाडु केस बना था आधार

यह निर्णय तमिलनाडु सरकार द्वारा पारित विधेयकों को लेकर हुआ था, जिन्हें राज्यपाल ने मंजूरी नहीं दी थी और राष्ट्रपति के विचारार्थ भेज दिया था। इसके बाद अदालत ने स्पष्ट किया कि राष्ट्रपति द्वारा ऐसे संदर्भ प्राप्त होने के तीन महीने के भीतर फैसला लेना अनिवार्य है। इस संदर्भ में राष्ट्रपति ने न्यायालय से यह जानना चाहा कि क्या राज्यपालों एवं राष्ट्रपति को अनुच्छेद 200 और 201 के तहत मिलने वाली शक्तियों के क्रियान्वयन में कोई निर्धारित समयसीमा होनी चाहिए, और क्या अदालत की पूर्व सलाह इस पर संवैधानिक रूप से बाध्यकारी है।

अनुच्छेद 143(1) क्या है?

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अनुच्छेद 143(1) भारत के संविधान में राष्ट्रपति को यह अधिकार देता है कि यदि उन्हें कोई ऐसा कानून या तथ्य संबंधी प्रश्न उत्पन्न होता दिखे जो सार्वजनिक महत्व का हो, तो वे उसे सर्वोच्च न्यायालय के विचारार्थ भेज सकते हैं। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट उस प्रश्न पर सुनवाई कर राष्ट्रपति को अपनी संविधान सम्मत राय दे सकता है।

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