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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क: भारत की वायुसेना को आत्मनिर्भर और अधिक सशक्त बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया गया है। नासिक स्थित हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड की वह फैक्ट्री, जो वर्षों तक रूसी लड़ाकू विमानों के असेंबली हब के रूप में जानी जाती थी, अब पूरी तरह स्वदेशी विमानों के निर्माण पर केंद्रित हो चुकी है। इस फैक्ट्री ने अब तक लगभग 1000 रूसी मूल के विमान जैसे मिग-21 और सुखोई-30MKI तैयार किए हैं, लेकिन अब इसका फोकस भारत में डिजाइन और विकसित किए गए लड़ाकू और ट्रेनर विमानों पर है जिनमें प्रमुख हैं तेजस LCA MK1A और HTT-40 ट्रेनर।
नासिक फैक्ट्री को मिला नया रूप
एचएएल की यह फैक्ट्री अब आधुनिक असेंबली लाइन के साथ तैयार है। पुराने हैंगरों को आधुनिक रूप दिया गया है, पुराने उपकरण हटाकर नई तकनीकों से लैस जिग्स, फिक्स्चर और टूल्स लगाए गए हैं जो स्वदेशी विमानों के निर्माण के लिए उपयुक्त हैं। इस बदलाव पर 500 करोड़ रुपये का निवेश किया गया है। फैक्ट्री का परिसर लगभग 13 लाख वर्ग फुट में फैला है। तेजस हल्का, अत्याधुनिक और पूरी तरह भारत में विकसित लड़ाकू विमान है। नासिक की नई असेंबली लाइन पर पहले वर्ष में 8 तेजस विमान तैयार किए जाएंगे। भविष्य में इस उत्पादन दर को और बढ़ाया जाएगा।
एचटीटी 40: देशी ट्रेनर विमान
एचटीटी -40 एक बेसिक ट्रेनर एयरक्राफ्ट है, जो फाइटर पायलटों की शुरुआती ट्रेनिंग के लिए बनाया गया है। यह विमान भी पूरी तरह स्वदेशी है और बेंगलुरु तथा नासिक में इसका उत्पादन किया जा रहा है, ताकि समय पर डिलीवरी सुनिश्चित की जा सके। नई असेंबली लाइन में 30 से अधिक जिग्स शामिल हैं, जो विमान के प्रमुख हिस्सों जैसे फ्रंट, सेंटर और रियर फ्यूजलेज, विंग्स और एयर इंटेक को जोड़ने का काम करते हैं। भारतीय वायुसेना को हर वर्ष 30 से 40 नए लड़ाकू विमानों की जरूरत है, क्योंकि पुराने विमानों जैसे मिग-21 को सेवा से हटाया जा रहा है। इस मांग को पूरा करने के लिए नासिक और बेंगलुरु दोनों अहम भूमिका निभा रहे हैं। हालांकि अब फोकस स्वदेशी विमानों पर है, फिर भी फैक्ट्री का एक हिस्सा अभी भी सुखोई-30MKI के लिए आरक्षित है। यहां से जल्द ही 15 नए सुखोई विमानों का ऑर्डर भी पूरा किया जाएगा।
मेक इन इंडिया की उड़ान
नासिक की यह फैक्ट्री अब भारत के आत्मनिर्भर रक्षा क्षेत्र का प्रतीक बन चुकी है। एक समय जो केंद्र केवल रूसी तकनीक पर निर्भर था, वहीं अब अपने स्वदेशी लड़ाकू विमानों का निर्माण कर रहा है। यह बदलाव न केवल भारत की रक्षा क्षमता को मजबूती देगा, बल्कि वैश्विक मंच पर देश की तकनीकी आत्मनिर्भरता का भी प्रमाण है।