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न्यायमूर्ति Yashwant Verma पर कानूनी शिकंजा ! कोर्ट में दाखिल हुई याचिका, जल्द सुनवाई

उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ नकदी बरामदगी मामले में प्राथमिकी दर्ज करने के अनुरोध वाली याचिका पर तत्काल सुनवाई के लिए सहमति जताई।

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Suraj Kumar
न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा

Photograph: (Google)

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नई दिल्‍ली, वाईबीएन डेस्‍क।उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ नकदी बरामदगी मामले में प्राथमिकी दर्ज करने के अनुरोध वाली याचिका पर तत्काल सुनवाई के लिए सहमति जताई। प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने वकील और याचिकाकर्ता मैथ्यूज नेदुम्परा की दलीलों पर गौर किया और कहा कि अगर खामियों को दूर कर दिया जाता है तो इसे मंगलवार को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जा सकता है। 

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याचिका में खामियों को दूर किया जाए 

प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘अगर (याचिका में) खामियों को दूर कर दिया जाता है तो इसे कल सूचीबद्ध किया जा सकता है।’’ नेदुम्परा ने कहा कि अगर याचिका में कोई खामी है तो वह उसे दूर करेंगे। उन्होंने पीठ से आग्रह किया कि इसे बुधवार को सूचीबद्ध किया जाए क्योंकि वह मंगलवार को उपलब्ध नहीं हैं। पीठ ने खामियों को दूर करने की शर्त पर इसे बुधवार को सूचीबद्ध करने पर सहमति जताई।

संजीव खन्ना ने वर्मा से की थी इस्‍तीफे की मांग 

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आंतरिक जांच आयोग द्वारा न्यायाधीश को दोषी ठहराए जाने के बाद तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना ने न्यायमूर्ति वर्मा को इस्तीफा देने के लिए कहा था। न्यायमूर्ति वर्मा के इस्तीफा देने से इनकार करने के बाद तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखा था। नेदुम्परा और तीन अन्य लोगों द्वारा दायर याचिका में तत्काल आपराधिक कार्यवाही शुरू करने की मांग करते हुए कहा गया था कि आंतरिक समिति ने न्यायमूर्ति वर्मा के खिलाफ आरोपों को प्रथम दृष्टया सही पाया है। 

याचिका में इस बात पर जोर दिया गया कि आंतरिक जांच से न्यायिक अनुशासनात्मक कार्रवाई हो सकती है, लेकिन यह लागू कानूनों के तहत आपराधिक जांच का विकल्प नहीं है। मार्च में, उन्हीं याचिकाकर्ताओं ने आंतरिक जांच को चुनौती देते हुए और औपचारिक पुलिस जांच की मांग करते हुए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था। हालांकि, शीर्ष अदालत ने आंतरिक कार्यवाही की लंबित प्रकृति का हवाला देते हुए याचिका को समय से पहले दायर बताकर खारिज कर दिया था। अब जांच पूरी हो जाने के बाद, याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि आपराधिक कार्रवाई में देरी अब उचित नहीं है।

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