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Pahalgam Terror Attack: मकसद और हमले के पीछे की साजिश, इस एक खबर में जानिए सब कुछ

पहलगाम आतंकी हमले के बाद जरूरी है कि सुरक्षा एजेंसियां अपनी कार्यशैली का रिव्यू करें। दरअसल यह हमला कई मायनों में अलग और गंभीर चुनौतियां लेकर सामने आया है।

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Dhiraj Dhillon
पहलगाम आतंकी हमला, मकसद, खुफिया विफलता, साजिश, अलग और गंभीर चुनौतियां

Photograph: (Google)

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नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क। कश्मीर के पहलगाम में हुए भयावह आतंकी हमले के पीछे कई बड़े कारण सामने आ रहे हैं। 22 अप्रैल को बाईसरन क्षेत्र में हुए इस हमले में 28 पर्यटकों की जान चली गई। हमले की जिम्मेदारी द रेजिस्टेंस फ्रंट (TRF) ने ली है, जिसे पाकिस्तान स्थित लश्कर-ए-तैयबा का छद्म संगठन माना जाता है। कश्मीर मामलों के जानकारों  के अनुसार, हमले का प्राथमिक कारण TRF की विचारधारा और पाकिस्तान की ओर से प्रायोजित आतंकवाद है। TRF ने हमले की जिम्मेदारी लेते हुए कहा भी है कि हमला घाटी में 85,000 से अधिक "बाहरी लोगों" के कश्मीर में आकर बसने के जवाब में किया गया है। जिसे वह जनसांख्यिकीय बदलाव के रूप में देखता है।
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बदलावों की प्रतिक्रिया हो सकती है घटना !

यह बयान अनुच्छेद 370 हटाए जाने और उसके बाद कश्मीर के सामाजिक-सांस्कृतिक परिदृश्य में आए बदलावों से जुड़े तनाव की ओर इशारा करता है। इसके अलावा, पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर द्वारा कश्मीर को "पाकिस्तान की गर्दन की नस" कहे जाने वाले बयान को भी उकसावे की कार्रवाई माना जा रहा है। पर्यटकों को निशाना बनाना कश्मीर में आतंकवाद की रणनीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव की ओर भी इशारा करता है। इससे पहले आतंकी पर्यटकों को अक्सर निशाना नहीं बनाते थे। हमलावरों का उद्देश्य भारत सरकार द्वारा सामान्य स्थिति लौटाने के दावों को कमजोर करना और घाटी की अस्थिरता को वैश्विक स्तर पर उजागर करना हो सकता है। 

हमले के लिए पहलगाम को क्यों चुना?

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हमले के ल‌िए पहलगाम को चुने जाने के पीछे इस प्रसिद्धि भी हो सकती है। बता दें कि पहलगाम को कश्मीर का स्विटजरलैंड कहा जाता है, इसके आकर्षण को देखते हुए कर कोई इसके बारे में जानना चाहता है और आतंकियों का उद्देश्य यही है कि अधिक से लोग वारदात के बारे में जाने तक अधिक टैरर फैले और वे अपने उद्देश्य में कामयाब हो सकें।
हमले को 2019 के बाद बदले राजनीतिक परिदृश्य से भी जोड़ा जा रहा है। अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद से कश्मीर में असंतोष, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश और आतंकवाद विरोधी अभियानों की तीव्रता बढ़ी है। कई स्थानीय मुस्लिम आबादी अलगाववादी विचारों का समर्थन करती है, जबकि पाकिस्तान इन गतिविधियों को स्वतंत्रता संग्राम का नाम देता है।

सुरक्षा में गंभीर चूक का मामला

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जाहिरतौर पर हमले ने घाटी की सुरक्षा व्यवस्था पर कई सवाल खड़े किए हैं। कुछ रिपोर्टों में आतंकियों द्वारा हमले से पहले इलाके की रेकी की जानकारी थी, लेकिन पर्याप्त कार्रवाई नहीं हो सकी। इसे इंटेलीजेंस का फेलियर भी माना जा रहा है। मजबूत सुरक्षा व्यवस्था के बावजूद आतंकियों का हमला कर पाना सुरक्षा रणनीतियों में खामियों की ओर संकेत करता है। बाईसरन जैसे दुर्गम स्थान तक केवल पैदल या टट्टू से पहुंचा जा सकता है, जिससे निगरानी कठिन हो जाती है। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, हमलावर स्थानीय पुलिस की वर्दी में थे, जिससे भ्रम और प्रतिक्रिया में देरी हुई। जानकारों का मानना है कि यह हमला यह हमला पर्यटन को झटका देने वाला होगा। नागरिक सुरक्षा और कश्मीर में सामान्य स्थिति लौटाने के सरकारी प्रयासों को भी इस वारदात से नुकसान होगा, इतना ही नहीं इस घटना सेअंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की आतंकवाद-निरोधक रणनीति पर भी सवाल खड़े हो सकते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि भविष्य में ऐसे हमलों को रोकने के लिए सरकार को सख्त कदम उठाने की जरूरत है।

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