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डॉ. सतेंद्र, आई.एफ.एस.
पूर्व कार्यकारी निदेशक, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान (एनआईडीएम), भारत सरकार
एवं निदेशक, सार्क आपदा प्रबंधन केंद्र
4 जून 2025 को बेंगलुरु में आईपीएल जीत के जश्न की शाम मातम में बदल गई जब एक भयावह भगदड़ में 11 युवाओं की जान चली गई और दर्जनों लोग घायल हो गए। यह हादसा एक बार फिर यह दिखाता है कि भारत में बड़े जनसमूहों को सुरक्षित रूप से संभालने की गंभीर कमी है। यह कोई एक बार की घटना नहीं है, बल्कि देश में बार-बार घटने वाली एक खतरनाक प्रवृत्ति है।
भारत में धार्मिक आयोजनों, राजनीतिक रैलियों और सार्वजनिक उत्सवों में भयावह भगदड़ों का लंबा इतिहास रहा है। इन हादसों का मुख्य कारण मानवीय भूलें रही हैं — जैसे कि कमजोर योजना, अपर्याप्त संवाद व्यवस्था और खराब बुनियादी ढांचा। बेंगलुरु की घटना इस बात का कड़ा स्मरण है कि भीड़ प्रबंधन के लिए एक वैज्ञानिक और संरचित दृष्टिकोण अपनाना अब बेहद जरूरी हो गया है।
पिछले दशकों में भारत में दुनिया की सबसे घातक भगदड़ों में से कई घटी हैं। 1954 में इलाहाबाद में कुंभ मेले के दौरान 800 से अधिक लोगों की मौत हुई थी। 2005 में महाराष्ट्र के मंढार देवी मंदिर में भगदड़ में 350 से अधिक लोग मारे गए। 2008 में जोधपुर के चामुंडा देवी मंदिर में 120 लोग मारे गए। 2011 में केरल के सबरीमाला में 106 श्रद्धालुओं की जान गई। 2013 में मध्य प्रदेश के रतनगढ़ मंदिर के पास भगदड़ में 115 लोग मारे गए। हाल के वर्षों में, 2022 में वैष्णो देवी में 12 और 2023 में उत्तर प्रदेश के हाथरस में 100 से अधिक लोगों की मौत हुई।
इन सभी घटनाओं में कुछ सामान्य कारण रहे— भीड़ का अत्यधिक जमाव, निकासी मार्गों की कमी, आपातकालीन योजनाओं का अभाव, और संवाद व्यवस्था की विफलता। ये आपदाएं प्राकृतिक नहीं बल्कि मानवीय प्रणाली की विफलता का परिणाम हैं।
भगदड़ केवल भीड़ की अधिकता नहीं
भगदड़ केवल भीड़ की अधिकता नहीं है, यह भय और अफवाहों की तेज़ी से फैलने की प्रक्रिया है। एक अफवाह, कोई तेज आवाज, या किसी के बेहोश होने का दृश्य भीड़ में अचानक डर पैदा कर सकता है। लोग इधर-उधर भागने लगते हैं, धक्का-मुक्की शुरू होती है और लोग कुचल जाते हैं। इस स्थिति को और खराब तब कर दिया जाता है जब सुरक्षा या पुलिस कर्मी बिना मनोवैज्ञानिक समझ के बल का प्रयोग करते हैं।
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के अनुसार, भीड़ को जबरन नियंत्रित करने की कोशिश या प्रवेश/निकासी मार्गों को अवरुद्ध करना स्थिति को और खराब कर सकता है। बेंगलुरु की घटना में भी कुछ निकासी मार्गों के बंद होने और संवादहीनता जैसी गंभीर कमियां सामने आईं, जो योजना की विफलता का स्पष्ट संकेत हैं।
आयोजक अक्सर भीड़ के आकार का गलत अनुमान लगाते हैं
भीड़ प्रबंधन में बार-बार असफलता का मुख्य कारण यह है कि कार्यक्रम से पहले औपचारिक जोखिम मूल्यांकन नहीं किया जाता। आयोजक अक्सर भीड़ के आकार का गलत अनुमान लगाते हैं, स्थल का गलत चयन करते हैं, और सुरक्षा की बुनियादी योजना को नज़रअंदाज़ कर देते हैं। सरकारी एजेंसियां भी बिना वास्तविक स्थिति का आकलन किए अनुमति दे देती हैं। पुलिस और आपातकालीन कर्मचारी अक्सर भीड़ मनोविज्ञान, आपातकालीन निकासी या प्राथमिक चिकित्सा जैसी आवश्यक बातों में प्रशिक्षित नहीं होते। कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) से लैस कैमरे, GPS आधारित हीट मैप्स, ड्रोन, और डिजिटल भीड़ अलर्ट जैसी आधुनिक तकनीकें केवल वीआईपी आयोजनों तक सीमित रहती हैं। आम जनता को यह जानकारी ही नहीं होती कि आपात स्थिति में भीड़ में कैसे व्यवहार करें।
भगदड़ आपदा प्रबंधन के लिए प्रमुख सिफारिशेंजो प्रशासन द्वारा किसी भी बड़े जनसमूह आयोजन के दौरान अपनाई जानी चाहिए ताकि भगदड़ की घटनाओं को रोका जा सके या उनके जोखिम को कम किया जा सके:
• भीड़ नियंत्रण की व्यवस्था: सामूहिक भीड़ जुटने वाले स्थलों पर विशेष सतर्कता रखी जानी चाहिए। इसके लिए सुरक्षित बाड़बंदी, निर्धारित आपातकालीन निकास मार्ग और प्रभावशाली लाउडस्पीकर प्रणाली आवश्यक हैं ताकि भीड़ के व्यवहार को नियंत्रित किया जा सके। अत्यधिक भीड़भाड़ वाले क्षेत्रों में किसी भी घबराहट या अफरा-तफरी के संकेतों की पहचान के लिए निगरानी प्रणाली सक्रिय रहनी चाहिए।
• वीआईपी मूवमेंट का प्रबंधन: भीड़-भाड़ वाले स्थानों पर किसी भी वीआईपी मूवमेंट के लिए विशेष योजना बनाई जानी चाहिए। यदि वीआईपी की आवाजाही से भीड़ में जोखिम उत्पन्न हो रहा हो, तो अधिकारी स्थिति को देखते हुए उनके आगमन को स्थगित या रद्द करने का निर्णय लें और यह जानकारी स्पष्ट रूप से सभी को दी जाए।
• संचार व्यवस्था: कमांड सेंटरों और अन्य सार्वजनिक सेवा विभागों के साथ समन्वय के लिए प्रभावशाली संचार प्रणाली होनी चाहिए। सभी भीड़भाड़ वाले स्थानों पर लाउडस्पीकर की व्यवस्था अनिवार्य रूप से होनी चाहिए ताकि जरूरी सूचनाएं तुरंत प्रसारित की जा सकें।
• चिकित्सा सुविधा: आयोजन स्थल पर एम्बुलेंस और प्राथमिक उपचार की सुविधाएं उपलब्ध होनी चाहिए। NDMA इस बात पर ज़ोर देता है कि प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और आपातकालीन चिकित्सा सेवाएं पहले से तैयार रखी जाएं ताकि आपदा के समय तुरंत उपचार मिल सके।
• अग्नि सुरक्षा प्रबंधन: आयोजकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि स्थल पर बिजली, अग्निशमन यंत्र और अन्य सुरक्षा उपकरण सुरक्षा दिशा-निर्देशों के अनुसार उपलब्ध हों।
• आयोजकों की जिम्मेदारी:आयोजकों और स्थल प्रबंधकों को स्थानीय प्रशासन और पुलिस के साथ मिलकर एक आपदा प्रबंधन योजना तैयार करनी चाहिए और समय-समय पर उसकी समीक्षा करनी चाहिए। संचार, चिकित्सा सहायता और आपातकालीन सुविधाएं सुरक्षा मानकों के अनुरूप सुनिश्चित की जानी चाहिए।
• नागरिक समाज की भूमिका: पुलिस को स्वयंसेवी संस्थाओं (NGOs) और स्थानीय समुदाय को बचाव कार्य, चिकित्सा सहायता और संसाधनों की व्यवस्था में सहयोग हेतु शामिल करना चाहिए। इससे घटनाओं के समय स्थानीय स्तर पर तुरंत प्रतिक्रिया संभव हो सकेगी।
• क्षमता निर्माण: पुलिसकर्मियों और आयोजन स्थल के प्रबंधकों को भीड़ नियंत्रण की तकनीक और नई तकनीकों के उपयोग पर नियमित प्रशिक्षण देना चाहिए। यदि प्रशिक्षित जनशक्ति की कमी हो, तो छात्रों, स्वयंसेवकों और आम नागरिकों को भी इस कार्य में जोड़ा जाना चाहिए। मीडिया को भी ऐसे आपातकालीन समय में संयमित और जिम्मेदार रिपोर्टिंग हेतु प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।
• भविष्य की नीतिगत दिशा: अधिकांश भगदड़ मानव जनित आपदाएं होती हैं जिन्हें उचित योजना और प्रभावी कार्यान्वयन से रोका जा सकता है। प्रशासन को पूर्व घटनाओं से सबक लेते हुए भीड़ प्रबंधन की रणनीतियों में सुधार लाना चाहिए। साथ ही, प्रत्येक नागरिक की यह जिम्मेदारी बनती है कि ऐसे आयोजनों में सावधानी बरतें और दूसरों को भी जागरूक करें। इसलिए पुलिस, जनता और संगठनों के बीच जागरूकता और प्रशिक्षण बेहद जरूरी है ताकि ऐसी त्रासदियों से होने वाले नुकसान को न्यूनतम किया जा सके।
निष्कर्ष: बेंगलुरु की भगदड़ को केवल एक और दुर्घटना मानकर भुला देना भारी भूल होगी। यह हादसा भारत को चेतावनी देता है कि भीड़ प्रबंधन को गंभीरता से लेना अब ज़रूरी है। अधिकतर भगदड़ों के पीछे प्राकृतिक कारण नहीं, बल्कि खराब योजना, समन्वय की कमी और जवाबदेही का अभाव होता है। इन्हें रोका जा सकता है।
भारत में बड़े आयोजन सांस्कृतिक परंपरा का हिस्सा हैं, लेकिन सुरक्षा से समझौता नहीं होना चाहिए। हमें भीड़ की सुरक्षा को एक सार्वजनिक जिम्मेदारी मानकर चलना होगा। यदि हम सेंदाई फ्रेमवर्क से सीख लेकर NDMA की सभी सिफारिशों को लागू करें, तो हम आपदा से निपटने की बजाय उन्हें रोकने की दिशा में काम कर सकते हैं। अब समय आ गया है कि हम ठोस कदम उठाएं और यह सुनिश्चित करें कि कोई भी उत्सव फिर कभी त्रासदी में न बदले। ऐसा भारत बनाना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए जहां लोग मिलकर उत्सव मना सकें और सुरक्षित घर लौट सकें। m chinnaswamy bangalore stampede