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BhaiDooj Photograph: (ians)
नई दिल्ली। राजस्थान के सीकर जिले के पास अरावली की पहाड़ियोंमें स्थित जीण माता और हर्ष भैरव का मंदिर भाई-बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक माना जाता है। कहा जाता है कि जीण माता और हर्ष भैरव भाई-बहन थे, और युद्ध के बाद दोनों ने यहां तपस्या की थी। भक्तों का विश्वास है कि माता जीण आज भी अपने भक्तों की हर मनोकामना पूरी करती हैं। मंदिर में जलती अखंड ज्योति वर्षों से अनवरत प्रज्वलित है, जो श्रद्धा और आस्था का प्रतीक है। चैत्र नवरात्र में यहां लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं।
भाई-बहन के पावन रिश्ते का पर्व भाई दूज
भाई-बहन के पावन रिश्ते का पर्व भाई दूज देशभर में 23 अक्टूबर को मनाया जाएगा। इस पर्व पर बहन अपने भाई की लंबी आयु की कामना करती है और भाई उसकी रक्षा का वचन देता है। भाई दूज के मौके पर आशीर्वाद लेने के लिए लोग कई मंदिर में जाते हैं, लेकिन राजस्थान में एक प्रसिद्ध मंदिर है, जो भाई-बहन के अनोखे प्यार को दिखाता है। इस मौके पर दूर-दूर से लोग मंदिर में दर्शन करने के लिए आते हैं।
जीण माता और हर्ष भैरव का मंदिर
राजस्थान के सीकर जिले के पास जीण माता और हर्ष भैरव का मंदिर है। मंदिर की पौराणिक कथा भाई-बहन के पावन प्रेम को दिखाती है। बताया जाता है कि चूरू जिले के घांघू गांव में बहन जीण और भाई हर्ष का जन्म हुआ था। दोनों भाई-बहन एक-दूसरे पर जान छिड़कते थे, लेकिन भाई हर्ष की शादी के बाद सब कुछ बदल गया।
हर्ष की पत्नी और जीण की भाभी घर में दोनों भाई-बहन को अलग करने के लिए प्रपंच करने लगी। भाभी की हरकतों से परेशान होकर जीण घर छोड़कर एक पहाड़ पर जाकर विलाप करने लगीं। उनके भाई हर्ष उन्हें मनाने के लिए पहुंचे, लेकिन वे नहीं मानीं। बहन जीण ने उसी काजल पहाड़ी के शिखर पर तपस्या की और आदिशक्ति का रूप कहलाई।
आदिशक्ति का रूप
कहा जाता है कि भाई हर्ष ने भी हार नहीं मानी और काजल पहाड़ी के शिखर के सामने बनी पहाड़ी पर शिव की तपस्या करनी शुरू की। तपस्या सालों तक चली, लेकिन अपनी तपस्या को पूरा करने और अपने भाई से दूर जाने के लिए बहन जीण वहां मौजूद जयंती देवी की ज्योति में कूद गईं।
भाई-दूज पर मंदिर में खास भीड़
माना जाता है कि आज भी वहां अखंड ज्योतिजलती है और वहां से जो भी काजल बनाकर लेकर जाता है, उसके नेत्र के दोष दूर होते हैं। भाई-दूज के मौके पर दूर-दूर से लोग जीण माता और हर्ष भैरव मंदिर में दर्शन करने के लिए आते हैं और नेत्रों के लिए काजल लेकर आते हैं। भाई-दूज पर मंदिर में खास भीड़ रहती है।
माना ये भी जाता है कि जो भी माता जीण के दर्शन के लिए आता है, तो उसे हर्ष मंदिर भी जाना होता है। दोनों मंदिर के दर्शन के बाद ही मनोकामना पूर्ण होती है। ये भी कहा जाता है कि खाटूश्याम जाने वाले भक्त भी जीण माता के मंदिर जरूर जाते हैं, क्योंकि खाटूश्याम बाबा भी उनके भाई हैं।
(इनपुट-आईएएनएस)