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धेनुपुरीश्वरर मंदिर: जहां शिव पूजा से कपिल मुनि हुए शापमुक्त, शिवलिंग पर आज भी हैं दिव्य निशान

तमिलनाडु के मदुरै के पास स्थित धेनुपुरीश्वरर मंदिर प्राचीन शिव मंदिरों में से एक है, जो अपनी पौराणिक कथा और रहस्यमय शिवलिंग के लिए प्रसिद्ध है। मान्यता है कि यहां कपिल मुनि ने भगवान शिव की कठोर तपस्या कर शाप से मुक्ति पाई थी।

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YBN News
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DhenupureeswararTemples Photograph: (ians)

नई दिल्ली। तमिलनाडु के मदुरै के पास स्थित धेनुपुरीश्वरर मंदिर प्राचीन शिव मंदिरों में से एक है, जो अपनी पौराणिक कथा और रहस्यमय शिवलिंग के लिए प्रसिद्ध है। मान्यता है कि यहां कपिल मुनि ने भगवान शिव की कठोर तपस्या कर शाप से मुक्ति पाई थी। कहा जाता है कि आज भी मंदिर के शिवलिंग पर उस घटना के निशान मौजूद हैं। मंदिर की वास्तुकला द्रविड़ शैली की है और यहां हर वर्ष शिव भक्त बड़ी संख्या में दर्शन करने पहुंचते हैं। यह स्थान आध्यात्मिक शांति और आस्था का प्रतीक माना जाता है।

आस्था का प्रतीक

सनातन धर्म और हमारे शास्त्रों में हमेशा मनुष्य जीवन को मोक्ष से जोड़ा गया है। मोक्ष प्राप्ति के लिए दान, पूजा-पाठ और अनुष्ठान करने के लिए कहा जाता है। चेन्नई शहर के पास एक ऐसा मंदिर है, जहां दुखों से मुक्ति और मोक्ष प्राप्ति के लिए भक्त दूर-दूर से आते हैं। ये मंदिर सिर्फ धर्म की दृष्टि से ही नहीं, बल्कि भारतीय पुरातत्व के लिए भी खास है।

1000 साल से भी ज्यादा पुराना

चेन्नई के मदंबक्कम और तांबरम के पास प्राचीन धेनुपुरीश्वरर मंदिर है, जिसे 1000 साल से भी ज्यादा पुराना बताया जाता है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है, जिन्हें यहां मोक्ष के देवता के रूप में पूजा जाता है। मंदिर के गर्भगृह में 6 इंच के शिवलिंग विराजमान हैं, जिन्हें धेनुपुरीश्वर कहा गया है। मंदिर के गर्भगृह में भगवान शिव मां पार्वती के अन्य रूप 'धेनुकंबल' के साथ विराजमान हैं। भक्तों के बीच मान्यता है कि मंदिर में आकर धेनुपुरीश्वर और 'धेनुकंबल' की पूजा करने से सारे पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा

मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा की मानें तो महान ऋषि कपिल मुनि भगवान शिव के भक्त थे। उन्होंने बाएं हाथ से भगवान की आराधना की थी, जिसकी वजह से उन्हें अगले जन्म में गाय का जन्म लेने का श्राप मिला। गाय होकर भी कपिल मुनि ने लगातार भगवान शिव की आराधना की और मिट्टी में दबे शिवलिंग की पूजा की। एक बार ग्वाले ने गाय को दूध अर्पित करने के लिए दंडित किया और इतना मारा कि उसके खुर से निकलने वाला रक्त शिवलिंग पर अर्पित हो गया। गाय की पीड़ा को कम करने के लिए भगवान शिव स्वयं प्रकट हुए और कपिल मुनि को श्राप से मुक्त किया। इसी वजह से मंदिर का नाम धेनुपुरीश्वरर पड़ा। यहां धेनु से तात्पर्य गाय से है।

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शिवलिंग पर आज भी गाय के खुर

मंदिर में विराजमान छोटे से शिवलिंग पर आज भी गाय के खुर का निशान है और शिवलिंग को स्वयं प्रभु माना जाता है। शिवलिंग के पास एक गड्डा भी है। मंदिर में भगवान विष्णु भी विराजमान हैं, लेकिन वे मुख्य गर्भगृह के पीछे की तरफ स्थापित हैं।

मंदिर की वास्तुकला

मंदिर की वास्तुकला देखने लायक है, क्योंकि मंदिर के हर खंभे पर चोल राजा सुंदर चोल के समय की नक्काशी है। मंदिर के प्रवेश द्वार पर ही भगवान गणेश और कार्तिकेय की प्रतिमा बनी है, जो हाथों में बाण लिए खड़े हैं। इसके अलावा मंदिर में एक नक्काशी ऐसी भी है जिसमें ब्रह्मा, विष्णु, सूर्य और भगवान गणेश की प्रतिमा एक साथ विराजमान है। इस नक्काशी को वहां के लोग शक्ति का प्रतीक मानते हैं।

इसके अलावा एक खंभे पर कपिल मुनि को अपनी बाईं भुजा में शिवलिंग और दाईं भुजा में माला धारण करते हुए दिखाया गया है। धेनुपुरीश्वरर मंदिर के पास ही 18 सिद्धों का मंदिर है और थोड़ी ही दूरी पर शुद्धानंद आश्रम और इनकॉन फाउंडेशन भी देखने को मिल जाएगा।

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 (इनपुट-आईएएनएस)

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