वट सावित्री व्रत हिंदू धर्म में सुहागिन महिलाओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण व्रत है, जो पति की लंबी आयु, सुखी वैवाहिक जीवन और संतान प्राप्ति के लिए रखा जाता है। यह व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या या पूर्णिमा (पश्चिम और दक्षिण भारत) को मनाया जाता है। यह व्रत 26 मई को पड़ेगा। यह व्रत सावित्री के पतिव्रता धर्म और उनके तप, भक्ति व दृढ़ संकल्प का प्रतीक है, जिन्होंने यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण वापस प्राप्त किए।
वट वृक्ष की पूजा इस व्रत का मुख्य हिस्सा है, क्योंकि पुराणों के अनुसार इसमें ब्रह्मा (जड़), विष्णु (तना) और शिव (शाखाएं) का वास माना जाता है। यह वृक्ष दीर्घायु, ज्ञान और निर्वाण का प्रतीक है, और इसकी पूजा से अखंड सौभाग्य, समृद्धि और कष्टों का नाश होता है।
वट सावित्री व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, मद्रदेश के राजा अश्वपति को संतान न होने के कारण उन्होंने 18 वर्षों तक कठोर तपस्या की। सावित्री देवी ने प्रसन्न होकर उन्हें कन्या प्राप्ति का वरदान दिया। जन्म के बाद कन्या का नाम सावित्री रखा गया। सावित्री अत्यंत रूपवान और तेजस्वी थी। विवाह योग्य होने पर, राजा ने उसे स्वयं वर चुनने को कहा। सावित्री ने जंगल में निर्वासित राजकुमार सत्यवान को चुना, जो द्युमत्सेन के पुत्र थे। सत्यवान गुणवान, धर्मात्मा और बलवान थे पर नारद मुनि ने बताया कि उनकी आयु केवल एक वर्ष शेष है। सावित्री ने फिर भी उनसे विवाह करने का हठ किया, यह कहते हुए कि आर्य कन्याएं पति का एक बार ही वरण करती हैं।
विवाह के बाद सावित्री सत्यवान के साथ जंगल में सास-ससुर की सेवा करने लगीं। नारद मुनि द्वारा बताए गए मृत्यु के दिन, सावित्री सत्यवान के साथ वन गईं। वहां सत्यवान को सिरदर्द हुआ, और वे सावित्री की गोद में लेट गए। तभी यमराज सत्यवान की आत्मा लेने आए। सावित्री उनके पीछे चल पड़ीं। यमराज ने उन्हें वापस लौटने को कहा, पर सावित्री ने अपने पतिव्रता धर्म और तर्कों से यमराज को प्रभावित किया। उनकी भक्ति और दृढ़ता से प्रसन्न होकर, यमराज ने सत्यवान के प्राण लौटाए और कई वरदान दिए, जिसमें सौ पुत्र, सास-ससुर का खोया राज्य और उनकी नेत्र ज्योति शामिल थी। इस कथा को सुनने से सुहागिनों को अखंड सौभाग्य और सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।
वट सावित्री व्रत की पूजा विधि
संकल्प और तैयारी: ब्रह्म मुहूर्त में स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। सोलह शृंगार करें और व्रत का संकल्प लें। वट वृक्ष के पास जाएं। यदि वृक्ष उपलब्ध न हो, तो घर में इसकी टहनी रखकर पूजा करें। वृक्ष को जल, अक्षत, फूल, और धूप-दीप अर्पित करें। वट वृक्ष के चारों ओर कच्चा धागा 7, 11 या 108 बार लपेटते हुए परिक्रमा करें।
मंत्र जपें: “अवैधव्यं च सौभाग्यं देहि त्वं मम सुव्रते। पुत्रान् पौत्रांश्च सौख्यं च गृहाणार्थ्यां नमोऽस्तु ते॥”
कथा और हवन : वट सावित्री कथा का पाठ करें या सुनें। हवन करें और सावित्री-सत्यवान की पूजा करें।
प्रसाद और दान : पूजा के बाद आटे से बने बरगद, हल्दी, दही, और सिंदूर चढ़ाएं। प्रसाद में फल, मिठाई बांटें और ब्राह्मणों को दान दें।
व्रत नियम : निर्जला उपवास करें, पर स्वास्थ्य के अनुसार फलाहार लिया जा सकता है। पूजा के बाद आरती करें।
यह व्रत सावित्री के पतिव्रता धर्म का अनुसरण करते हुए नारी शक्ति और भक्ति को दर्शाता है। इसे विधि-विधान से करने से पति-पत्नी के बीच प्रेम बढ़ता है और परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।