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ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष में बृहस्पति पूजा और व्रत करना अत्यंत पुण्यदायी है। यह न केवल भौतिक सुख-सुविधाएं प्रदान करता है, बल्कि आध्यात्मिक शांति और मोक्ष की प्राप्ति में भी सहायक है। विधि-विधान और नियमों का पालन करते हुए यह व्रत करने से भगवान विष्णु और बृहस्पति की कृपा प्राप्त होती है। यह व्रत जीवन की सभी बाधाओं को दूर कर सुख, समृद्धि, और सफलता का मार्ग प्रशस्त करता है।
देवगुरु बृहस्पति की पूजा का विशेष महत्व
ज्येष्ठ मास हिंदू पंचांग का तीसरा महीना है, जो मई-जून के बीच आता है। इस माह के शुक्ल पक्ष में गुरुवार को भगवान विष्णु और देवगुरु बृहस्पति की पूजा का विशेष महत्व है। बृहस्पति को बुद्धि, धन, विद्या, और सुख-समृद्धि का देवता माना जाता है। ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष में बृहस्पति पूजा और व्रत करने से जीवन में सकारात्मक बदलाव, वैवाहिक सुख, और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है।
बृहस्पति ग्रह ज्योतिष में ज्ञान प्रतीक
बृहस्पति ग्रह ज्योतिष में ज्ञान, समृद्धि, और धर्म का प्रतीक है। ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष में गुरुवार को व्रत और पूजा करने से कुंडली में गुरु ग्रह के दोष दूर होते हैं, जिससे शिक्षा, करियर, और वैवाहिक जीवन में बाधाएं समाप्त होती हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, बृहस्पति की कृपा से व्यक्ति को धन, संतान, और मान-सम्मान की प्राप्ति होती है। यह व्रत विशेष रूप से उन लोगों के लिए लाभकारी है जो विवाह में देरी, आर्थिक समस्याओं, या शिक्षा में बाधाओं का सामना कर रहे हैं।
पूजा की विधि
बृहस्पति पूजा विधि-विधान के साथ की जानी चाहिए। प्रातःकाल की तैयारी: गुरुवार को सूर्योदय से पहले उठें। नित्यकर्म और स्नान करें। स्नान के पानी में थोड़ा गंगाजल मिलाएं। स्वच्छ पीले वस्त्र धारण करें, क्योंकि पीला रंग बृहस्पति और भगवान विष्णु को प्रिय है। घर और पूजा स्थल को गंगाजल छिड़ककर शुद्ध करें।
पूजा स्थल की व्यवस्था:
एक चौकी पर पीला कपड़ा बिछाएं। उस पर भगवान विष्णु और बृहस्पति देव की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। चौकी के चारों ओर केले के पत्ते बांधें। केले का पौधा बृहस्पति का प्रतीक माना जाता है।
पूजा सामग्री में पीले फूल (गेंदा), चने की दाल, गुड़, हल्दी, पीले चावल, मुनक्का, पीली मिठाई, और फल (विशेष रूप से केला) शामिल करें।
पूजा प्रक्रिया:
भगवान विष्णु और बृहस्पति का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें। संकल्प में अपनी मनोकामना स्पष्ट करें।
मूर्ति पर चंदन, हल्दी, और अक्षत लगाएं। पीले फूलों की माला अर्पित करें।
चने की दाल, गुड़, और पीली मिठाई का भोग लगाएं।
"ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" और "ॐ बृं बृहस्पतये नमः" मंत्रों का 108 बार जप करें। रुद्राक्ष या तुलसी की माला का उपयोग करें।
बृहस्पति व्रत कथा पढ़ें या सुनें।
कथा में एक राजा और रानी की कहानी होती है, जहां रानी की भक्ति से बृहस्पति उनकी गरीबी दूर करते हैं।केले के पेड़ की पूजा करें। पेड़ की जड़ में हल्दी मिश्रित जल, चने की दाल, और मुनक्का चढ़ाएं। दीप जलाकर आरती करें। अंत में भगवान विष्णु और बृहस्पति की आरती करें। सूर्य को जल अर्घ्य दें।
प्रसाद वितरण और उद्यापन:
पूजा के बाद प्रसाद ब्राह्मणों, गरीबों, और परिवारजनों में बांटें। यदि 16 गुरुवार का व्रत रख रहे हैं, तो 17वें गुरुवार को उद्यापन करें। उद्यापन में ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दान-दक्षिणा दें।
व्रत के नियम
व्रत की शुरुआत: ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष के प्रथम गुरुवार से व्रत शुरू करें। पौष माह में व्रत शुरू करना वर्जित है। अनुराधा या पुष्य नक्षत्र में शुरू करना शुभ माना जाता है। दिन में एक बार बिना नमक का भोजन करें। चने की दाल, पीली मिठाई, और केला जैसे पीले खाद्य पदार्थ ग्रहण करें। कम से कम 7, 16, या एक वर्ष तक व्रत करें। 16 गुरुवार का व्रत विशेष फलदायी है। व्रत के दिन क्रोध, झूठ, और नकारात्मक विचारों से बचें। ब्राह्मणों और बुजुर्गों का सम्मान करें।
वर्जित कार्य: केला नहीं खाना चाहिए, क्योंकि यह भगवान को अर्पित किया जाता है। नमक का सेवन और दिन में सोना वर्जित है।
बृहस्पति पूजा और व्रत के फल
आर्थिक समृद्धि: बृहस्पति की कृपा से धन-संपदा में वृद्धि होती है। घर में धन की कमी नहीं रहती।
विवाह और संतान: अविवाहित लोगों के विवाह योग बनते हैं, और दंपतियों को संतान सुख मिलता है।
शिक्षा और करियर: विद्यार्थियों को बुद्धि और एकाग्रता मिलती है, जिससे परीक्षा और करियर में सफलता प्राप्त होती है।
स्वास्थ्यऔरशांति: परिवारमेंसुख-शांतिबनीरहतीहै,औरमानसिकतनावकमहोताहै। आध्यात्मिकउन्नति: बृहस्पतिकीभक्तिसेव्यक्तिकाआध्यात्मिकविकासहोताहै,औरवहधर्मकेमार्गपरचलताहै।web:0
पूजा में शुद्धता का विशेष ध्यान रखें। मन, वचन, और कर्म से पवित्र रहें।
यदि कोई गलती हो जाए, तो भगवान से क्षमा मांगें और अगले गुरुवार को पूजा दोहराएं।
व्रत का उद्यापन अनुराधा नक्षत्र या शुक्ल पक्ष में करें।