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Photograph: (young Bharat)
प्रयागराज, वाईबीएन नेटवर्क।
नदियों को बेहतर बनाने के काम लगे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े संगठन गंगा समग्र ने गंगा की निर्मलता के लिए उसके प्रवाह को जीवंत और तार्किक बनाने की मांग रखी है। परिस्थितिकी बनाए रखने के लिए हर हाल में न्यूनतम जल की उपलब्धता सुनिश्चित करने का प्रस्ताव पारित किया गया। साथ ही, इसकी निगरानी और नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय नदी प्राधिकरण बनाने की जरूरत बताई। महाकुंभ में गंगा समग्र का राष्ट्रीय कार्यकर्ता संगम सम्पन्न हो गया। राष्ट्रीय संगठन मंत्री रामाशीष ने गंगा समग्र के कार्य का आधार बताया। उन्होंने कहा कि संगठन, जनजागरण और रचनात्मक कार्य के आधार पर गंगा समग्र अपने लक्ष्य के संधान में लगा है।
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छोटी धाराओं की अविरलता के लिए योजनाएं बनाएं
संगठन मंत्री रामाशीष कार्यकर्ताओं का आह्वान किया कि छोटी धाराओं की अविरलता के लिए योजनाएं बनाएं। गंगा समेत सभी बड़ी नदियों के लिए छोटी धाराओं का स्वस्थ्य होना आवश्यक है। भूमिगत जल का अंधाधुंध दोहन इन धाराओं के लिए ठीक नहीं है। इसके शासन, प्रशासन पर दबाव बनाएं। समाज को जागृत करें। जल धाराओं का प्रवाह सतत करने में स्वार्थ और परमार्थ दोनों सिद्ध होते हैं। कार्यकर्ता कार्य के विस्तार के लिए समान विचारधारा के लोगों को जोड़ें। भारत में नदियों को हमेशा मां का दर्जा दिया गया है, लेकिन विदेशी संस्कृति के अनुकरण के कारण नदियों के प्रति लोगों के श्रद्धा भाव में कमी आई है। श्रद्धा में कुछ विकृति भी दिखती है। इसके लिए समाज जागरण आवश्यक है। प्रत्यक्ष रचनात्मक कार्य के जरिए कार्य को आगे बढ़ाना चाहिए।
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प्रकृति की अपनी योजना
राष्ट्रीय अध्यक्ष अमरेंद्र सिंह ने कहा कि प्रकृति की अपनी योजना है। ऋषियों ने इसका संविधान लिखा है। इसका पालन आवश्यक है। गंगा समग्र के कार्यकर्ताओं की मेहनत का फल है कि इस क्षेत्र में काम दिखने लगा है। जल सभी के लिए आवश्यक है। इसलिए सभी को इस चिंता में शामिल होना चाहिए। उन्होंने गंगा समग्र के कार्यकर्ताओं का आह्वान किया कि हर प्रांत में योजना बनाएं और लक्ष्य तय करें। लक्ष्य हासिल करने में अथक प्रयास करना होगा। तभी जल तीर्थों की शुचिता सुनिश्चित हो पाएगी। समापन पर महामंत्री डॉ. आशीष गौतम ने कहा कि किसी भी कार्य को सिद्ध करने के लिए संकल्प आवश्यक है। गंगा समग्र के कार्यकर्ता अनूठे हैं। 12 साल से संकल्प सिद्धि में लगे हैं। उन्होंने कहा कि किसी भी समस्या के प्रति मन दुखी होने लगे, संवेदना आए तो समझो समस्या के हल का प्रथम सोपान पूरा हुआ। दूसरा सोपान है, उसके निराकरण का उपाय खोजा जाए। जब काम में लगेंगे तो व्यवधान आएंगे लेकिन काम में सतत लगे रहो। सफ़लता मिलेगी।
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कई प्रस्ताव पारित
राष्ट्रीय मंत्री अवधेश कुमार ने आम सभा में प्रस्ताव प्रस्तुत किया, जिसे ध्वनि मत से पास किया गया। प्रस्ताव में गंगा जल को सिर्फ उपयोगी मान कर उसका अविवेकपूर्ण दोहन करने पर चिंता जताई गई। प्रस्ताव में कहा गया कि नदी के रास्ते रोककर उसका प्रवाह रोकना अवैज्ञानिक है। इससे नदी की परिस्थितिकी खत्म हो रही है। नदी की परिस्थितिकी खत्म होने का मतलब है नदी के प्राण खत्म होना।
आज नदी की सबसे बड़ी चुनौती है उसकी मलिनता लेकिन निर्मलता के लिए बाकी प्रयासों से ज्यादा महत्वपूर्ण है उसकी अविरलता। अविरलता के बिना किसी भी नदी के जीवन को बचाना सम्भव नहीं है। नदी सिर्फ पानी नहीं, अपितु समग्र जीवंत प्रणाली होती है। जैव विविधता, मिट्टी-रेत और जल, ये मिल कर ही किसी पानी की गुणवत्ता निर्धारित करते हैं।
प्रवाह को स्वयं को साफ कर लेने का सामर्थ्य भी यही देते हैं। इसलिए नदी में कम से कम इतना पानी हो कि हम कह सकें कि नदी में जान है। बिजली, सिंचाई, पेयजल और आबादियों को बाढ़ से बचाने के नाम पर नदियों के रास्तों और किनारों पर अनेक अवरोध खड़े कर दिए गए हैं। इन कारणों से नदी में उचित न्यूनतम प्रवाह, जिसे पर्यावरणीय प्रवाह या ई-फ्लो कहते हैं, नहीं बचा है।
पर्यावरणीय प्रवाह के अभाव में नदी के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक जलीय जीवों जैसे मछलियां, घड़ियाल, डॉलफिन आदि के साथ ही जलीय वनस्पति के जीवन खत्म हो रहे हैं। वर्ष 2018 में पर्यावरणीय प्रवाह (ई-फ्लो) के लिए देवप्रयाग से हरिद्वार तक अलग-अलग महीनों में 20 से 30 फीसदी तक पानी छोड़ने का प्रावधान हुआ लेकिन य़ह मात्रा न पर्याप्त है और न ही तार्किक।
इसे बढ़ाने की जरूरत है। इसमें सबसे बड़ी रुकावट जल विद्युत परियोजनाएं हैं, क्योंकि इनका पक्ष है कि अगर हम इतना जल छोड़ेंगे तो विद्युत संयंत्र बंद हो जाएंगे। हमें यह समझना होगा कि नदियां हमारी बिजली, सिंचाई और पेयजल की आपूर्ति भर के लिए नहीं, अपितु इस पर बाकी जीव-जंतुओं का भी अधिकार है।
ई-फ्लो के लिए भूमिगत जल दोहन को भी नियन्त्रित करना पड़ेगा और वर्षा जल संभरण के लिए कड़े नियम बनाने होंगे। ताजा परिस्थितियों में सिर्फ ग्लेशियर के पानी से ई-फ्लो को बनाए रखना सम्भव नहीं है। इसलिए नदी का पर्यावरणीय प्रवाह या ई-फ्लो तय करते समय निम्न बातों का
ध्यान रखना आवश्यक है..
1. नदी में रहने वाले जीव-जंतुओं (मछलियां, कछुए आदि) के लिए पर्याप्त जलस्तर और प्रवाह बना रहे। ऑक्सीजन का स्तर समेत पानी की गुणवत्ता संतुलित रहे।
2. वर्षा का औसत, जलग्रहण क्षेत्र की स्थिति और भूगर्भीय संरचना को ध्यान में रखा जाए। गर्मी और मॉनसून के दौरान न्यूनतम प्रवाह में बदलाव को तार्किक रखा जाए।
3. न्यूनतम प्रवाह तय करते समय सिंचाई, उद्योग, घरेलू उपयोग, सांस्कृतिक और धार्मिक आवश्यकताओं आदि के लिए जल की जरूरत को भी ध्यान में रखा जाए।
गंगा समग्र केंद्र सरकार से यह अनुरोध करता है कि उक्त बातों को व्यापक और सम्यक अध्ययन करके इसके क्रियान्वयन के लिए राष्ट्रीय नदी प्राधिकरण (नेशनल रिवर ट्रिब्यूनल) एनआरटी का गठन किया जाए।
नवीन कार्यकारिणी
गंगा समग्र की नवीन राष्ट्रीय कार्यकारिणी घोषित हुई, जिसमें अमरेन्द्र प्रसाद सिंह अध्यक्ष, डॉ आशीष गौतम महामंत्री, रामाशीष जी संगठन मंत्री, अवधेश कुमार गुप्त संयुक्त महामंत्री, अजय मिश्र कोषाध्यक्ष, रामाशंकर सिंहा व पवन चौहान मंत्री, सर्वेश सिंह संपर्क प्रमुख, प्रकाश मौर्य व गिरीश चतुर्वेदी सह संपर्क प्रमुख, राघवेन्द्र सिंह जल निकासी आयाम प्रमुख, राजेश तिवारी सहायक नदी आयाम प्रमुख, विजय राज जी तालाब आयाम प्रमुख, स्वामी हरिनारायण जी पर्व आयाम प्रमुख, डॉ दिव्या गंगा सेविका आयाम प्रमुख, शम्भू पाण्डेय आरती आयाम प्रमुख, महेश चतुर्वेदी विधि आयाम प्रमुख, प्रचार आयाम प्रमुख अरुण राजपूत, अमिताभ उपाध्याय गंगाश्रित आयाम प्रमुख, श्वेता सिंह राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य घोषित किए गए।