नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क।
दिल्ली का कालकाजी मंदिर देशभर में प्रसिद्ध है। यह एक सिद्धपीठ माना जाता है। मान्यता है कि कालकाजी मंदिर स्वयंभू है, यानी कि देवी कालका की मूर्ति यहां स्वयं प्रकट हुई है। दिल्ली वासियों की इस मंदिर में गहरी आस्था है। यही वजह है कि नवरात्रि (chaitra navratri 2025) के दिनों में यहां बड़ी तादाद में श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं और देवी मां की पूजा-अर्चना करते हैं। काली देवी को समर्पित यह मंदिर 3000 साल से भी ज्यादा पुराना है। सदियों पुराने इस मंदिर का इतिहास बेहद रोचक है।
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सतयुग और महाभारत से जुड़ा है इतिहास
दिल्ली के कालकाजी मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहां देवी काली ने असुरों का संहार किया था, इसी स्थान पर कालकाजी मंदिर बना। मान्यता है कि कालकाजी मंदिर की स्थापना सतयुग में हुई थी और इसका संबंध महाभारत काल से है। किवदंतियों के मुताबिक, देवी कालिका ने सतयुग में अवतार लिया था और असुरों का वध किया था। एक मान्यता यह भी है कि पांडवों ने महाभारत युद्ध से पहले कालकाजी मंदिर में ही देवी की आराधना की थी। कहा जाता है कि कालकाजी मंदिर में श्रद्धाभाव से पूजा करने पर हर मनोकामना पूरी होती है।
12 द्वार और 12 स्वरूप
कालकाजी मंदिर के 12 मुख्य द्वार हैं, जो 12 महीनों के प्रतीक माने जाते हैं। हर द्वार पर माता के अलग-अलग स्वरूप दर्शाए गए हैं। मंदिर पिरामिडनुमा आकार में बना हुआ है। यह मंदिर ग्रहण के दिन भी खुलता है। कालकाजी मंदिर में अखंड ज्योति प्रज्वलित होती है। इस मंदिर में प्रत्येक दिन मां का सुंदर शृंगार किया जाता है। नवरात्रि के दौरान सैकेड़ों किलो फूलों से मंदिर को सजाया जाता है। मां के शृंगार के लिए विदेशों से भी फूल मंगाए जाते हैं। यह मंदिर दिल्ली के दक्षिणी इलाके कालकाजी में स्थित है।
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मराठाओं से लेकर मुगल बादशाहों ने किया पुर्ननिर्माण
मंदिर का प्राचीन हिस्सा 1764 ईस्वी में मराठाओं द्वारा बनाया गया था। इसके बाद 1816 में अकबर के पेशकार राजा केदार नाथ ने मंदिर का पुनर्निमाण करवाया था। कहा जाता है कि मुगल बादशाह अकबर द्वित्तीय ने कालकाजी मंदिर में 84 घंटे लगवाए थे। हर एक घंटे से अलग तरह की आवाज आती है, यह भी किसी चमत्कार से कम नहीं है। मौजूदा मंदिर बाबा बालकनाथ ने स्थापित किया था। इसके बाद 20वीं शताब्दी में, दिल्ली में रहने वाले हिंदू धर्म के अनुयायियों और व्यापारियों ने मंदिर के आसपास कई मंदिरों और धर्मशालाओं का निर्माण करवाया, जिससे मंदिर का वर्तमान स्वरूप बना।