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SankashtiChaturthi Photograph: (IANS)
नई दिल्ली। गणाधिप संकष्टी चतुर्थी व्रत भगवान गणेश को समर्पित विशेष तिथि है। इस दिन व्रतधारी सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनते हैं और गणपति की मूर्ति को दूर्वा, मोदक और लाल फूल अर्पित करते हैं। संध्या के समय गणेशजी की पूजा के बाद चंद्रमा के दर्शन कर व्रत खोला जाता है। मान्यता है कि इस दिन श्रद्धापूर्वक पूजा करने से शारीरिक, मानसिक और आर्थिक कष्टों से मुक्ति मिलती है। भक्त गणेश मंत्रों का जाप करते हैं और गणाधिप गणेश कथा का पाठ करते हैं। इस व्रत से व्यक्ति के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है।
विशेष तिथि
मालूम हो कि मार्गशीर्ष के कृष्ण पक्ष की तृतीय 8 नवंबर सुबह 7 बजकर 32 मिनट तक रहेगी। इसके बाद चतुर्थी शुरू हो जाएगी। इस दिन गणाधिप संकष्टी चतुर्थी है, जो कि भगवान गणेश को समर्पित है।
द्रिक पंचांग के अनुसार
द्रिक पंचांग के अनुसार, शनिवार को सूर्य तुला राशि में और चंद्रमा रात 11 बजकर 14 मिनट तक वृषभ राशि में रहेंगे। इसके बाद मिथुन राशि में गोचर करेंगे। अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 43 मिनट से शुरू होकर 12 बजकर 26 मिनट तक रहेगा और राहुकाल का समय सुबह 9 बजकर 21 मिनट से शुरू होकर 10 बजकर 43 मिनट तक रहेगा।
संकष्टी चतुर्थी का अर्थ
इसका उल्लेख स्कंद पुराण और ब्रह्मवैवर्त पुराण में मिलता है, संकष्टी चतुर्थी का अर्थ होता है, संकटों का नाश करने वाली। जिसमें बताया गया है कि इस दिन विधि-विधान से पूजा और व्रत रखने से जीवन में सुख-शांति का वास होता है। साथ ही मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं।
इस तिथि पर विधि-विधान से व्रत रखने के लिए ब्रह्म-मुहूर्त में उठें। नित्य कर्म-स्नान आदि करने के बाद पीले वस्त्र पहनकर पूजा स्थल को साफ करें। फिर एक चौकी पर गणेशजी की प्रतिमा रखें और उन पर गंगाजल से छिड़काव करें।
गणेश मंत्रों का जाप
इसके बाद भगवान गणेश की प्रतिमा के समक्ष दूर्वा, सिंदूर और लाल फूल अर्पित करने के बाद वह श्री गणपति को बूंदी के लड्डू का भोग लगाएं। इनमें से 5 लड्डुओं का दान ब्राह्मणों को करें और 5 भगवान के चरणों में रखकर बाकी प्रसाद के रूप में वितरित करें। पूजन के समय श्री गणेश स्तोत्र, अथर्वशीर्ष और संकटनाशक गणेश स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। "ऊं गं गणपतये नमः" मंत्र का 108 बार जाप करें। शाम के समय गाय को हरी दूर्वा या गुड़ खिलाना शुभ माना जाता है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस तिथि पर पति की लंबी आयु, सौभाग्य और पारिवारिक खुशहाली के लिए नवविवाहित महिलाएं व्रत रखती हैं। साथ ही अविवाहित कन्याएं भी योग्य वर की प्राप्ति के लिए इस व्रत को कर सकती हैं। पुराणों में उल्लेख है कि इस व्रत से न केवल भौतिक कष्ट दूर होते हैं, बल्कि मानसिक तनाव और आर्थिक संकट भी समाप्त हो जाते हैं।
- (इनपुट-आईएएनएस)
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