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विघ्नराज संकष्टी व्रत: मान्यता है कि संकटनाशक गणेश जी की इस विशेष पूजा से जीवन की बाधाएं होगी दूर

आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को इस वर्ष ‘विघ्नराज संकष्टी व्रत’ मनाया जाएगा। हिंदू मान्यता के अनुसार, यह व्रत सभी संकटों को दूर करने वाला और जीवन में सुख-समृद्धि लाने वाला माना जाता है। 

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YBN News
GANESHPUJA

GANESHPUJA Photograph: (AI)

नई दिल्ली। आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को इस वर्ष ‘विघ्नराज संकष्टी व्रत’ मनाया जाएगा। हिंदू मान्यता के अनुसार, यह व्रत सभी संकटों को दूर करने वाला और जीवन में सुख-समृद्धि लाने वाला माना जाता है। 

मान्यता के अनुसार

‘संकष्टी’ शब्द का अर्थ है “संकटों को हरने वाली”। इस दिन श्रद्धालु गणेश भगवान की विशेष पूजा-अर्चना करते हैं और व्रत रखते हैं। मान्यता है कि विधि-विधान से पूजा करने पर जीवन की बाधाएं, समस्याएं और कष्ट समाप्त हो जाते हैं। खासकर माताएं अपनी संतान की लंबी उम्र, अच्छे स्वास्थ्य और उज्ज्वल भविष्य की कामना से यह व्रत करती हैं। इस अवसर पर भक्त गणपति को दूर्वा, मोदक और लाल फूल अर्पित कर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

पंचांग के अनुसार

पंचांग के अनुसार, आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 10 सितंबर को दोपहर 3 बजकर 37 मिनट पर शुरू होगी और इसका समापन 11 सितंबर को दोपहर 12 बजकर 45 मिनट पर होगा। इस दिन सूर्य देव सिंह राशि में रहेंगे, जबकि चंद्रमा शाम 4 बजकर 3 मिनट तक मीन राशि में और उसके बाद मेष राशि में गोचर करेंगे। ज्योतिष के अनुसार, यह संयोग व्रत की महत्ता को और बढ़ा देता है।

संकंटों से मुक्ति

ऐसे में उदया तिथि के अनुसार, चतुर्थी का व्रत 10 सितंबर (बुधवार) को रखा जाएगा। संकंटों से मुक्ति के लिए चतुर्थी की रात्रि को चंद्रमा को अर्घ्य देते हुए 'सिंहिका गर्भसंभूते चन्द्रमांडल सम्भवे। अर्घ्यं गृहाण शंखेन मम दोषं विनाशय॥' मंत्र बोलकर जल अर्पित करें। यदि संभव हो तो संकष्टी का व्रत रखें, जिससे ग्रहबाधा और ऋण जैसे दोष शांत होते हैं।

विघ्नराज संकष्टी व्रत की शुरुआत

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आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को 'विघ्नराज संकष्टी व्रत' करने का समय है। 'संकष्टी' शब्द का अर्थ 'संकटों को हरने वाली' होता है। विघ्नराज संकष्टी व्रत की शुरुआत करने के लिए जातक ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान करने के बाद पीले वस्त्र पहनकर पूजा स्थल को साफ करें।इसके बाद भगवान गणेश की प्रतिमा के समक्ष दूर्वा, सिंदूर और लाल फूल अर्पित करने के बाद वह श्री गणपति को बूंदी के लड्डू का भोग लगाएं। इनमें से 5 लड्डुओं का दान ब्राह्मणों को करें और 5 भगवान के चरणों में रखकर बाकी प्रसाद के रूप में वितरित करें।

मंत्र का 108 बार जाप

पूजन के समय श्री गणेश स्तोत्र, अथर्वशीर्ष, और संकटनाशक गणेश स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। "ऊं गं गणपतये नमः" मंत्र का 108 बार जाप करें। शाम के समय गाय को हरी दूर्वा या गुड़ खिलाना शुभ माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन विधि-विधान से पूजा करने और व्रत रखने से जीवन में आने वाली सभी बाधाएं, समस्याएं, और कष्ट दूर हो जाते हैं।

(इनपुट-आईएएनएस)

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