नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क।
चैत्र नवरात्रि (chaitra navratri 2025) की अष्टमी तिथि का खास महत्व है। नवरात्रि की अष्टमी तिथि 5 अप्रैल को है। यह दिन महागौरी को समर्पित है। नवरात्रि के आठवे दिन आदिशक्ति के आठवे स्वरूप महागौरी की पूजा की जाती है। मान्यता है कि महागौरी की पूजा-आराधना से सभी पापों से मुक्ति मिलती है। आइए जानते हैं कि महागौरी कौन हैं और उनकी आराधना कैसे करें।
शिव की अर्धांगनी श्वेतांबरधरा
महागौरी देवों के देव महादेव की अर्धांगिनी हैं। वे शिव के साथ विराजमान रहती हैं। गौरा वर्ण होने की वजह से उनका नाम महागौरी पड़ा। इसके अलावा उन्हनें श्वेतांबरधरा के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि महागौरी की आराधाना करने वाले भक्तों को सभी प्रकार के कष्टों और पापों से मुक्ति मिलती है। ऐसे व्यक्ति के पास दुख और दरिद्रता नहीं आती है।
कैसा है महागौरी का स्वरूप?
महागौरी शिव की ही तरह सफेद गौवंश पर विराजमान रहती हैं। देवीभागवत पुराण के मुताबिक, देवी के महागौरी स्वरूप के वस्त्र और आभूषण आदि श्वेत हैं। चार भुजाओं वाली माता के एक हाथ में त्रिशूल है और एक हाथ में डमरू। मां के तीसरे हाथ में अभय और चौथे हाथ में वरमुद्रा रहती है।
कैसे करें पूजा-अर्चना?
अष्टमी के दिन महागौरी की विधि-विधान से पूजा करने का महत्व है। स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें और इसके बाद मां की पूजा-अर्चना करें। मां की मूर्ति को गंगाजल से स्नान कराएं। सफेद रंग के वस्त्र चढ़ाएं। रात की रानी मां का प्रिय फूल है, पूजा के दौरान इसे अर्पित करें। माता को भोग लगाने से वे प्रसन्न होती हैं। महागौरी को सफेद भोग पसंद है। खासतौर से नारियल से बनी मिठाई या खीर भोग लगाना शुभ माना जाता है। इसके अलावा काले चने और हलवा का भोग भी लगा सकते हैं। पूजा के दौरान विशेष मंत्र का जाप करना बहुत फलदायक माना जाता है। मंत्र का जाप करने और निष्टापूर्वक ध्यान करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
महागौरी का ध्यानमंत्र
श्वेते वृषेसमारूढा श्वेताम्बरधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेव प्रमोददा॥