ट्रांस हिंडन, बाईबीएन संवाददाता। यूपीएसआईडीसी-लीज्ड प्रोजेक्ट अंसल एस्टेट लोनी, गाजियाबाद में प्लाट आवंटन के 18 वर्षों से बिल्डर अंसल हाउसिंग लिमिटेड द्वारा धोखाधड़ी, उत्पीडन, अवैध वित्तीय मांग आदि जैसे गंभीर आरोप लगाए गए हैं। इस मामले में सेवानिवृत जिला जज के पुत्र ने बिल्डर के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया है।
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डीसीपी ट्रांस हिंडन, गाजियाबाद को दी तहरीर में विशाल सिंह निवासी केए-24, प्रथम तल, कौशाम्बी ने कहा कि यूपीएसआईडीसी-लीज्ड प्रोजेक्ट अंसल एस्टेट लोनी, गाजियाबाद में प्लाट आवंटन के 18 वर्षों से बिल्डर अंसल हाउसिंग लिमिटेड द्वारा धोखाधड़ी, उत्पीडन, अवैध वित्तीय मांग और यातना आवंटित पाट की उप-पंजीकरण रोकना और अवैध वितीय मांगों के लिए मजबूर करना। अंसल हाउसिंग लिमिटेड, इसके निदेशक कुशाग्र अंसल और करूं अंसल तथा उनकी इन-हाउस रखरखाव एजेंसी सनराइज एस्टेट मैनेजमेंट सर्विसेज के खिलाफ पिछले 18 वर्षों से चल रहे धोखाधड़ी, उत्पीड़न और मानसिक यातना के मामले में एक शिकायत दर्ज करते हैं। यह प्लाट नंबर डीबी-143 से संबंधित है, जो हमारी दिवंगत माता श्रीमती पुष्पा सिंह, पूर्व जिला न्यायाधीश (सेवानिवृत) बहम सिंह की पत्नी को 2007 में आवंटित किया गया था और अब यह प्लाट डा विशाल सिंह, डा. मनीषा सिंह और डा. मोनिका सिंह को विरासत में मिला है। यह प्लॉट अंसल एस्टेट प्रोजेक्ट, द्वारा दिल्ली सिग्नेचर सिटी ट्रॉनिका सिटी लोनी, गाजियाबाद में स्थित है। प्लाट का पूरा भुगतान 2007 में कर दिए जाने के बावजूद, बिल्डर और उसकी रखरखाव एजेंसी ने प्लाट के उप-पंजीकरण की प्रक्रिया को रोक रखा है। इसके बजाय, उन्होंने ब्लैकमेल, धमकी और उत्पीड़न का सहारा लिया है और अवैध वित्तीय मांगें की हैं जो रखरखाव शुल्क और अन्य अनुचित शुल्कों के नाम पर की जा रही हैं। हमें तो प्लाट को छोड़ने के लिए मजबूर किया जा रहा है या इसे रदद करने की धमकी दी जा रही है, जो कि आवंटी के रूप में हमारे अधिकारी कर स्पष्ट उल्लंघन है। इस प्रोजेक्ट के लिए समझौता ज्ञापन (एमओयू) 07 जुलाई. 1997 की असल हाउसिंग एड कंस्ट्रक्शन लिमिटेड और यूपीएसआईडीसी (अब यूपीएसआईडीए) के बीच हस्ताक्षरित किया गया था।
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बिल्डर को प्रोजेक्ट को विकसित करने का अधिकार और किया उल्लंघन
जिसमें बिल्डर को प्रोजेक्ट को विकसित करने और बेचने के लिए लीज होल्ड अधिकार दिए गए थे। परियोजना को 5 वर्षों के भीतर पूर्ण रूप से लाइसेंसी के रूप में विकसित किया जाना था। यदि 5 वर्षों मे परियोजना पूरी नहीं होती, तो आवंटन रदद कर दिया जाएगा और 90 वर्षों के लिए पट्टे पर दिया गया था। 28 वर्षों के बाद भी प्रोजेक्ट अधूरा और अविकसित है और यूपीएसआईडीसी द्वारा कोई पूर्णता प्रमाणपत्र (कम्प्लीशन सर्टिफिकेट) जारी नहीं किया गया है। हमारे स्वामित्व अधिकारों को रोका जा रहा है। बिल्डर 36 लाख रुपये रखरखाव शुल्क की मांग कर रहा है, जिसमें मूल अवैध मांग 80,000 रुपये पर 24% मासिक चक्रवृद्धि ब्याज शामिल है, जोकि यूपीएसआईडीसी बिल्डर एमओयू या समझौते के तहत अधिकृत नहीं है।
यूपीएसआईडीसी ने कोई कार्रवाई नहीं की
यूपीएसआईडीसी ने बिल्डर के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की है. जबकि बिल्डर ने प्रोजेक्ट को विकसित करने में पूरी तरह से विफल रहा है। यूपीएसआईडीसी अभी भी प्रमुख पट्टेदार के रूप में अपनी जवाबदेही और जिम्मेदारी से हाथ धोने की कोशिश रहा है। पुलिस ने मामले की रिपोर्ट दर्ज कर ली है।