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Ghaziabad News -आरडीसी में आदित्य बिल्डिंग आग की चपेट में: सुरक्षा मानकों पर फिर उठे सवाल

गाजियाबाद के इस हादसे ने हमें एक बार फिर याद दिलाया कि सुरक्षा सिर्फ कागजों पर नहीं, हकीकत में होनी चाहिए। अब वक्त है कि प्रशासन, बिल्डर, और नागरिक मिलकर यह सुनिश्चित करें कि ऐसी त्रासदी दोबारा न हो।

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Kapil Mehra
फोटो जर्नलिस्ट सुनील कुमार

आरडीसी क्षेत्र में लगी भयानक आग

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गाजियाबाद, वाईबीएन संवाददाता 

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गाजियाबाद के राजनगर डिस्ट्रिक्ट सेंटर (आरडीसी) में स्थित आदित्य बिल्डिंग, एक व्यस्त कमर्शियल कॉम्प्लेक्स, दोपहर अचानक आग की लपटों में घिर गया। यह हादसा इतना भयावह था कि इसकी तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गए। आग की लपटों और धुएं के बीच फंसे लोगों की चीख-पुकार ने पूरे इलाके को दहशत में डाल दिया।

फोटो जर्नलिस्ट सुनील कुमार

हादसे का भयानक मंजर

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दमकल विभाग की 15 गाड़ियाँ, एक क्रेन, और 20 से अधिक एंबुलेंस तुरंत मौके पर पहुँचीं। घंटों की कड़ी मशक्कत के बाद, दमकल कर्मियों और रेस्क्यू टीमें 100 से अधिक लोगों को सुरक्षित निकालने में सफल रहीं। लेकिन इस दौरान जो दृश्य सामने आए, वे रोंगटे खड़े करने वाले थे। इमरजेंसी निकास मार्ग के अभाव में लोग खिड़कियों पर लटकते दिखे। कुछ लोग जान बचाने के लिए खिड़कियों से नीचे कूदने को मजबूर हुए, कई लोग घायल भी हुए।आग की शुरुआत बिल्डिंग की निचली मंजिल पर स्थित एक दुकान से बताई जा रही है, जो तेजी से ऊपरी मंजिलों तक फैल गई। प्रारंभिक जांच में शॉर्ट सर्किट को आग का कारण माना जा रहा है, लेकिन पूर्ण जांच अभी बाकी है।

फोटो जर्नलिस्ट सुनील कुमार

फायर सेफ्टी पर सवाल

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यह हादसा एक बार फिर फायर सेफ्टी के दावों की पोल खोलता है। हर बार जब कोई इमारत आग की चपेट में आती है, यही सवाल उठता है कि आखिर सुरक्षा मानकों का पालन क्यों नहीं होता? आदित्य बिल्डिंग में इमरजेंसी निकास मार्ग का अभाव इस हादसे को और घातक बना सकता था। बिल्डिंग को मंजूरी देते समय क्या फायर सेफ्टी नियमों की अनदेखी की गई? क्या नियमित ऑडिट और निरीक्षण सिर्फ कागजों तक सीमित हैं?

स्थानीय लोगों और दुकानदारों का कहना है कि इस तरह के कमर्शियल कॉम्प्लेक्स में भीड़भाड़ आम बात है, लेकिन आपातकालीन स्थिति से निपटने की कोई व्यवस्था नहीं होती। एक प्रत्यक्षदर्शी ने बताया, "धुआँ इतना घना था कि कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। लोग खिड़कियों से मदद की गुहार लगा रहे थे। अगर दमकल समय पर न पहुँचती, तो अनहोनी हो सकती थी।

फोटो जर्नलिस्ट सुनील कुमार

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"जाँच होगी" का पुराना राग

हर अग्निकांड के बाद प्रशासन का एक ही जवाब होता है "जाँच होगी।" लेकिन क्या ये जाँचें कभी ठोस नतीजे लाती हैं? गाजियाबाद में पहले भी कई इमारतों में आग लगने की घटनाएँ हो चुकी हैं, लेकिन हर बार वही कहानी दोहराई जाती है। नियमों की अनदेखी, अवैध निर्माण, और सुरक्षा उपकरणों की कमी जैसे मुद्दे बार-बार सामने आते हैं, पर बदलाव की कोई ठोस पहल नहीं दिखती।

आगे क्या?

आदित्य बिल्डिंग अग्निकांड ने एक बार फिर हमें सोचने पर मजबूर किया है। क्या हम अगले हादसे का इंतजार करेंगे, या अब समय है कि फायर सेफ्टी को गंभीरता से लिया जाए? इमारतों को मंजूरी देने से पहले कड़े नियम लागू करने, नियमित ऑडिट करने, और आपातकालीन निकास मार्ग सुनिश्चित करने की जरूरत है।यह हादसा सिर्फ एक चेतावनी है। अगर अब भी नहीं जागे, तो अगली बार शायद खिड़कियों पर लटकते लोग और भयावह मंजर देखने पड़ें। सवाल यह नहीं कि अगली आग कब लगेगी, सवाल यह है कि हम उससे बचने के लिए कितने तैयार हैं।

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फोटो जर्नलिस्ट सुनील कुमार

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