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गाजियाबाद, दिल्ली की सीमा से सटा एक ऐसा शहर, जो आधुनिकता की चकाचौंध और इतिहास की गहराइयों का अनोखा संगम है। यह शहर न केवल अपने औद्योगिक विकास और ट्रैफिक जाम के लिए जाना जाता है, बल्कि इसकी जड़ें इतिहास की उन गलियों में छिपी हैं, जहां से निकलती हैं कहानियां कभी राजाओं की, कभी मुगलों की, और कभी मराठों की। आइए, गाजियाबाद की इस अनकही दास्तान को एक हटकर अंदाज में जानें, जहां इतिहास, रहस्य और थोड़ा सा मसाला एक साथ मिलता है!
मुगलकाल से शुरू हुआ सफर
1740 में जब मुगल बादशाह अहमदशाह के वजीर गाजीउद्दीन ने इस शहर की नींव रखी, तब शायद ही किसी ने सोचा होगा कि यह जगह एक दिन दिल्ली-एनसीआर का दिल बन जाएगी। गाजीउद्दीन के नाम पर बने इस शहर का नामकरण तो हुआ, लेकिन इसके पीछे की कहानी सिर्फ एक वजीर की नहीं। पुरातत्वविदों और शोधकर्ताओं ने खोज निकाला कि गाजियाबाद की उम्र 2500 ईसा पूर्व तक जाती है। जी हां, यह शहर कोई नया-नवेला नहीं, बल्कि प्राचीन सभ्यताओं का गवाह है।
शहर की पूर्वी सीमा पर बसा कोट गांव इसका सबूत है। कहा जाता है कि इस गांव को गुप्त साम्राज्य के महान सम्राट समुद्रगुप्त का संरक्षण प्राप्त था। लोनी, जो आज गाजियाबाद का एक हिस्सा है, वहां समुद्रगुप्त और कोट कुलजम के बीच एक ऐतिहासिक युद्ध हुआ। समुद्रगुप्त की जीत के बाद यहां अश्वमेध यज्ञ हुआ, जिसने इस क्षेत्र को धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण बना दिया। सोचिए, उस दौर में घोड़ों की टापों और यज्ञ की धूनी से गूंजता गाजियाबाद आज मेट्रो और मॉल्स की आवाज में खोया है!
चार गेट, एक हवेली और अनगिनत किस्से
गाजियाबाद की बसावट चार प्रमुख दरवाजों—दिल्ली गेट, जवाहर गेट, डासना गेट और सिहरी गेट—के इर्द-गिर्द हुई थी। ये गेट आज भी शहर की शान हैं, हालांकि अब इनकी चमक थोड़ी फीकी पड़ चुकी है। इन गेटों के बीच बनी गाजीउद्दीन की हवेली आज भी इतिहास को अपनी दीवारों में समेटे खड़ी है। अगर आप कभी गाजियाबाद के पुराने इलाकों में घूमें, तो इस हवेली की दीवारें आपको मुगलकाल की वो सैर करा सकती हैं, जहां शायद गाजीउद्दीन खुद अपनी योजनाएं बनाते होंगे।
लेकिन इतिहास सिर्फ मुगलों तक सीमित नहीं। गाजियाबाद का जलालाबाद क्षेत्र मराठा सेना के जनरल महादजी सिंधिया की बेटी बालाबाई की जागीर था। एक महिला योद्धा की जागीर! यह अपने आप में गाजियाबाद की उदार और समावेशी संस्कृति को दर्शाता है।
गाजीउद्दीन की कब्र: उपेक्षा का शिकार
GT रोड पर बोझा गांव के पास गाजीउद्दीन की कब्र आज खामोशी से वक्त की मार झेल रही है। जिस शख्स ने इस शहर को उसका नाम दिया, उसकी याद आज बदहाली की कगार पर है। रखरखाव के अभाव में यह कब्र न केवल उपेक्षित है, बल्कि यह सवाल भी उठाती है कि हम अपने इतिहास को कितना संजोते हैं? गाजियाबाद, जो कभी राजाओं और सम्राटों का गढ़ था, आज अपने ही नायकों को भूलता जा रहा है।
आज का गाजियाबाद: इतिहास और आधुनिकता का मेल
आज गाजियाबाद दिल्ली-एनसीआर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। 14 नवंबर 1976 को जब एन.डी. तिवारी ने इसे मेरठ से अलग कर एक नया जिला बनाया, तब से यह शहर तेजी से बदला। लेकिन इस बदलाव में कहीं न कहीं इसकी पुरानी रूह दब सी गई है। मॉल्स, मेट्रो और मल्टीनेशनल कंपनियों के बीच गाजियाबाद का वो पुराना आलम चार गेटों वाला शहर, गाजीउद्दीन की हवेली, और समुद्रगुप्त का अश्वमेध यज्ञ कहीं खो सा गया है।
क्यों है गाजियाबाद हटकर?
गाजियाबाद सिर्फ एक शहर नहीं, बल्कि इतिहास का एक जीवंत पन्ना है। यह वह जगह है जहां गुप्तकाल के राजा, मुगल वजीर, और मराठा योद्धा एक साथ सांस लेते हैं। यह वह शहर है जो 2500 ईसा पूर्व से लेकर आज तक की कहानियों को अपने सीने में समेटे है। और हां, यह वह शहर है जो आपको ट्रैफिक में फंसने के बाद भी अपनी कहानियों से मोह लेता है।
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