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Ghaziabad News- "जब सवालों ने खोली अस्पताल की हकीकत: एमएमजी में गुणवत्ता की कसौटी पर बहस"

जिला एमएमजी अस्पताल का यह वाकया हमें सोचने पर मजबूर करता है। गुणवत्ता कोई एक दिन का लक्ष्य नहीं, बल्कि निरंतर प्रयासों का परिणाम है। एनक्वास की यह जांच सिर्फ अंकों का खेल नहीं, बल्कि उन लाखों मरीजों के भरोसे की कसौटी हैं

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Kapil Mehra
Sunil Kumar
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गाजियाबाद, वाईबीएन संवाददाता

गाजियाबाद जिला एमएमजी अस्पताल, जो आम लोगों के लिए स्वास्थ्य का आलम और उम्मीद का ठिकाना है, सोमवार सुबह एक अनोखे दौर से गुजरा। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की तीन सदस्यीय नेशनल क्वालिटी एश्योरेंस स्टैंडर्ड (एनक्वास) टीम ने अस्पताल की स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता का आकलन करने के लिए कदम रखा। लेकिन जो हुआ, वह न तो किसी स्क्रिप्ट का हिस्सा था, न ही किसी की उम्मीद। यह कहानी है सवालों, जवाबों और एक फार्मासिस्ट के गुस्से की, जिसने गुणवत्ता की कसौटी को एक नया आयाम दे दिया।

टीम का आगमन: मिशन गुणवत्ता

सुबह के ठीक 9 बजे, राजस्थान के डॉ. दिनेश सिंह गुर्जर, हरियाणा की सुनीता दुहन और दिल्ली की डॉ. रश्मि ने अस्पताल में प्रवेश किया। सबसे पहले उन्होंने मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) डॉ. अखिलेश मोहन और मुख्य चिकित्सा अधीक्षक (सीएमएस) डॉ. राकेश कुमार सिंह के साथ एक बैठक की। माहौल औपचारिक था, बातें कागजी आंकड़ों और मौखिक समीक्षा तक सीमित थीं। अस्पताल की सेवाओं, संसाधनों और मरीजों की सुविधाओं पर चर्चा हुई। लेकिन असली कहानी तो तब शुरू हुई, जब यह टीम कागजों से निकलकर अस्पताल के गलियारों में उतरी।

फोटो जर्नलिस्ट सुनील कुमार

टीकाकरण कक्ष: सवालों का तूफान

टीम का अगला पड़ाव था टीकाकरण कक्ष नंबर 25, जहां एंटी-रेबीज वैक्सीन दी जाती है। जैसे ही डॉ. दिनेश और सुनीता कक्ष के सामने पहुंचे, वहां मरीजों की भीड़ और अव्यवस्था ने उनका ध्यान खींचा। उन्होंने वहां मौजूद फार्मासिस्ट से कुछ बुनियादी सवाल पूछे—वैक्सीन की उपलब्धता, मरीजों की संख्या, और प्रक्रिया की समयबद्धता के बारे में। लेकिन सवालों का यह सिलसिला फार्मासिस्ट को रास नहीं आया।"मैं सामने खड़े मरीजों को देखूं या आपके सवालों के जवाब दूं?" फार्मासिस्ट का यह तल्ख जवाब हवा में तैर गया। माहौल तनावपूर्ण हो गया। टीम ने शांत रहते हुए समझाया कि सवालों का मकसद केवल कमियां ढूंढना नहीं, बल्कि सुधार की राह तलाशना है। लेकिन फार्मासिस्ट का रवैया नहीं बदला।

नाराजगी और कार्रवाई: एक सबक

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फार्मासिस्ट के इस व्यवहार से एनक्वास टीम नाराज होकर आगे बढ़ गई। लेकिन मामला यहीं खत्म नहीं हुआ। सीएमएस डॉ. राकेश कुमार सिंह ने तुरंत फार्मासिस्ट को कार्यालय में तलब किया। कड़ी फटकार के साथ उन्हें दो दिन की जबरन छुट्टी पर भेज दिया गया। यह कार्रवाई न केवल फार्मासिस्ट के लिए, बल्कि पूरे अस्पताल स्टाफ के लिए एक सख्त संदेश थी गुणवत्ता के सवालों का जवाब देना सिर्फ औपचारिकता नहीं, जिम्मेदारी है।

फोटो जर्नलिस्ट सुनील कुमार

मिशन सात मई: गुणवत्ता का लेखा-जोखा

सीएमओ डॉ. अखिलेश मोहन ने बताया कि एनक्वास टीम 7 मई तक अस्पताल में रहेगी। इस दौरान वे ओपीडी, इमरजेंसी, लैब, टीकाकरण, और अन्य सेवाओं का गहन निरीक्षण करेंगे। हर विभाग को अंकों के आधार पर आंका जाएगा, और अंत में एक विस्तृत रिपोर्ट केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को भेजी जाएगी। यह रिपोर्ट न केवल अस्पताल की मौजूदा स्थिति को उजागर करेगी, बल्कि भविष्य में सुधार के लिए दिशा-निर्देश भी देगी।

सवालों से सुधार की राह

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यह घटना सिर्फ एक फार्मासिस्ट के गुस्से की कहानी नहीं है। यह उस बड़ी हकीकत को उजागर करती है, जो सरकारी अस्पतालों में व्याप्त है—काम का बोझ, संसाधनों की कमी, और कभी-कभी जवाबदेही का अभाव। एनक्वास जैसे निरीक्षण न केवल कमियों को सामने लाते हैं, बल्कि सुधार का रास्ता भी दिखाते हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या हम सवालों का सामना करने को तैयार हैं? क्या हम सुधार को सिर्फ कागजों तक सीमित रखेंगे, या इसे जमीनी हकीकत बनाएंगे?

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